हिस्सा_3 शाने ग़ौसे आज़म- ______________ 6. इल्म हासिल करने के लिए आपकी वालिदा ने आपको बग़दाद शरीफ भेजा और आपको खर्च के लिए 40 दीनार दिए ...
हिस्सा_3
शाने ग़ौसे आज़म-
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6. इल्म हासिल करने के लिए आपकी वालिदा ने आपको बग़दाद शरीफ भेजा और आपको खर्च के लिए 40 दीनार दिए जो कि आपकी मां ने आपकी सदरी में छिपा दिए मगर ये वसीयत की कि कैसा भी मौक़ा आये हमेशा सच ही बोलना,आप लश्कर के साथ जंगल से गुज़र रहे थे कि डाकुओं ने हमला करके सबको लूटना शुरू कर दिया,अब जो भी डाकू आपके पास आकर पूछता कि क्या तुम्हारे पास भी कुछ है तो आप फरमाते कि हां मेरे पास 40 दीनार हैं जो कि मेरी सदरी में सिल दिए गए हैं मगर आपकी बात सुनकर हर डाकु यही सोचता कि बच्चा है शायद तफरीहन कह रहे हों,युंही सबसे आखिर में जब डाकुओं के सरदार ने हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से वही सवाल किया तो आपने उसको भी वही बता दिया,अब जब आपकी सदरी को खोला गया तो वहां से 40 दीनार बरामद हो गए ये देखकर डाकुओं के सरदार ने कहा कि जब तुम्हारी मां ने इसे छिपा दिया था तो हमें बताने की क्या ज़रूरत थी इस पर आप फरमाते हैं कि मेरी मां ने मुझसे कहा था कि बेटा कभी झूठ मत बोलना लिहाज़ा मैंने सच सच आपको बता दिया,ये सुनकर डाकुओं का सरदार जिसका नाम अहमद बदवी था ज़ारो क़तार रोने लगा और बोला कि एक मां की बात इस बच्चे से नहीं टाली गई और एक हम हैं कि अपने रब की कितनी ही बात को टालते चले आ रहे हैं और वहीं उसने आपके हाथ पर तौबा की उसका पूरा गिरोह भी ताईब हुआ और सारा माल काफिले वालों को लौटा दिया,हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि मेरे ज़रिये हिदायत पाने वाला ये पहला गिरोह था
📕 नफहातुल इंस,सफह 757
इस रिवायत से 2 बातों का पता चलता है पहली ये कि इंसान पर कैसा भी वक़्त आ जाये मगर उसे हर हाल में सच ही बोलना चाहिये क्योंकि बज़ाहिर अगर झूठ से उस वक़्त निजात मिल भी जाए मगर आगे ज़रूर ज़रूर वो किसी बड़ी मुश्किल में फंसेगा और सच बोलकर हो सकता है कि उस वक़्त उसको तकलीफ पहुंच जाए मगर आईन्दा के लिए राहत ही राहत है और दूसरी ये कि इल्म सीखना कितना ज़रूरी है कि एक मां अपने बच्चे को सिर्फ इल्मे दीन के लिए अपने से दूर भेज रहीं हैं और वो भी किस बच्चे को जो पैदाइशी वली हैं,याद रखें बग़ैर इल्म के कोई हरगिज़ हरगिज़ वली नहीं हो सकता हां ये अलग बात है कि कभी कभार ऐसा होता है कि अल्लाह को कोई बन्दा पसंद आ जाए वो उसे इल्मे लदुन्नी अता फरमाता है फिर विलायत देता है मगर इल्म देता ज़रूर है,इससे आजकल के वो नाम निहाद सूफी सबक लें जिन्हें खुद तो वुज़ू और ग़ुस्ल के मसायल नहीं पता और झोला छाप पीर बनकर बैठे हैं ये भी याद रहे कि पीर के लिए आलिम होना शर्त है यानि बग़ैर इल्म के कोई पीर भी नहीं बन सकता
7. आपने 40 साल तक इशा के वुज़ू से फज्र की नमाज़ अदा की है
📕 तारीखुल औलिया,सफह 40
8. हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि 1 लाख से भी ज़्यादा लोगों ने मेरे हाथ पर तौबा की है और तक़रीबन 500 से ज़्यादा यहूदो नसारा ने इस्लाम क़ुबूल किया है
📕 मिर्रातुल असरार,सफह 566
9. हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का लक़ब मोहिउद्दीन पड़ने की वजह आप खुद ही फरमाते हैं कि एक मर्तबा मैं नंगे पैर जुमे के दिन जंगल के रास्ते से बग़दाद आ रहा था,रास्ते में मुझे एक बहुत कमज़ोर और लागर शख्स मिला जो कि उठकर खड़ा भी ना हो सकता था,उसने मुझे आवाज़ देकर बुलाया मैं उसके पास पहुंचा तो कहने लगा कि ऐ अब्दुल क़ादिर मैं निहायत ही कमज़ोर हूं तुम मुझे सहारा देकर खड़ा कर दो,फरमाते हैं कि मैंने जैसे ही हाथ देकर उसे उठाया वो तंदरुस्त हो गया और खूबसूरत शक्ल ज़ाहिर होने लगी अब उसने कहा कि क्या आप मुझे जानते हैं मैंने कहा नहीं तो कहा कि मैं दीने इस्लाम हूं मैं ऐसा ही कमज़ोर था जैसा कि आपने मुझे देखा मगर रब ने आपकी वजह से मुझे ज़िन्दगी बख्शी आप मोहिउद्दीन यानि दीन को ज़िंदा करने वाले हैं,फरमाते हैं कि फिर मैं वहां से जामा मस्जिद पहुंचा नमाज़ पढ़ी उसके बाद लोग हुजूम दर हुजूम चले आते हैं और हर कोई या शैख मोहिउद्दीन कहकर पुकारता है हालांकि इस बात का ज़िक्र अब तक मैंने किसी से ना किया था
📕 नफहातुल इंस,सफह 769
हदीसे पाक में आता है कि जब अल्लाह किसी को अपना खास क़ुर्ब अता फरमाता है तो हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम को बुलाता है और फरमाता है कि ऐ जिब्रील मैं फलां बन्दे से मुहब्बत करता हूं तो अब तुम भी उससे मुहब्बत रखो और आसमान में निदा कर दो कि फरिश्ते भी उससे मुहब्बत करें तो हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम जाकर फरिश्तों में ये ऐलान करते हैं कि अल्लाह तआला फलां बन्दे से मुहब्बत करता है और मैं भी उससे मुहब्बत करता हूं और तुम सब भी उससे मुहब्बत करो फिर आकर इसी तरह ज़मीन पर भी ऐलान किया जाता है और इस तरह उस बन्दे की मक़बूलियत तमाम जहान में फैल जाती है, ऐसी मक़बूलियत की जीती जागती मिसाल मेरे पीरो मुर्शिद सुल्तानुल इस्लाम हुज़ूर ताजुश्शरिया दामत बरकातोहुमुल आलिया की ज़ाते बा बरकात थी कि आप जहां से गुज़र जाते थे अल्लाह जाने कहां से मख्लूक़ उनके दीदार को उमड़ पड़ती थी,और आपके विसाल पर आखरी दीदार करने के लिए जिस तरह लोग जमा हुए कभी ना जमा हुए थे,
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