qaida e akhirah फर्ज़ क़ाद ए आख़िरा,नमाज़ का छटा (06) :- यानि आखिरी का'दा जिसके बाद सलाम फेर कर नमाज़ पूरी की जाती है
namaz k faraiz
नमाज़ के फर्ज़ों का बयान
(qaida e akhirah - क़ाद ए आख़िरा)
क़ाद ए आख़िरा qaida e akhirah किसे कहते हैं?
फर्ज़ क़ाद ए आख़िरा,नमाज़ का छटा (06) :- यानि आखिरी का'दा जिसके बाद सलाम फेर कर नमाज़ पूरी की जाती है
रकाअत मुकम्मल करने के बाद जब अत्तहियात दुरुद शरीफ़ वगैरह पढ़ने बैठते हैं उसी को क़ादा ए आख़िरा qaida e akhirah कहते हैं
काद ए आख़िरा qaida e akhirah में कितनी देर बैठना फर्ज़ है?
मस्अला:- नमाज़ की रकाअतें पूरी करने के बाद काद ए आख़िरा qaida e akhirah में इतनी देर बैठना फर्ज़ है, जितनी देर में पूरी अत्तहियात पढ़ ली जाऐ यानि लफ्ज़े "अत्तहियात "التحیات " से लेकर लफ्ज़े "रसूलुहू "رسوله" आख़िरी तक पूरा पढ़ लिया जाए
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1,हिस्सा 03 सफह 515
मस्अला:--- क़ाद ए आख़िरा qaida e akhirah में पूरा तशह्हुद यानि अत्तहियात पढ़ना वाजिब है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1,हिस्सा 3 सफह 518
मस्अला:- तशह्हुद पढ़ते वक़्त उसके माना (अर्थ)का क़स्द (इरादा) ज़रुरी है यानि तशह्हुद (अत्तहियात) पढ़ते वक़्त येह इरादा करे कि मैं अल्लाह तआला की ह़म्द यानि तारीफ़ करता हूं और अल्लाह के महबूब हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में सलाम अर्ज़ करता हूं और साथ में अपने ऊपर और अल्लाह के नेक बंदों (औलिया अल्लाह ) पर सलाम भेजता हूं और तशह्हुद (अत्तहियात ) पढ़ते वक़्त मेराज का वाक़िअ की हिकायत मद्दे'नज़र हो
📕📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1,सफह 72
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1,हिस्सा 3 सफह 520
मस्अला:- अत्तहियात पढ़ते वक़्त हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की सूरते मुबारका को अपने दिल में हाजि़र जाने और हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का तसव्वुर (ख़्याल) अपने दिल में जमा कर जब अत्तहियात में ""अस्सलामु अलैका अय्यूहन नबिय्यू"" पढ़े तो यक़ीन करे कि मेरा येह सलाम हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को पहुंचता है और रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मेरे सलाम का जवाब अपनी शाने- करम के लायक़ अता फरमाते हैं
📕📚अह़याउल उलूम जिल्द 1 सफह 107
मस्अला:- काद ए आखिरा qaida e akhirah में तशह्हुद (अत्तहियात) के बाद दुरुद शरीफ़ और दुआए मासूरह पढ़ना सुन्नत है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 531
मस्अला:- अफ़ज़ल येह है कि दरूद शरीफ़ में दरूदे इब्राहिमी पढ़ें
📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 81
मस्अला:-दरूद शरीफ़ के बाद दुआ ए मासूरह अरबी में ही पढ़े,अरबी के अलावा दूसरी किसी ज़बान (भाषा ) में पढ़ना मकरुह है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1,हिस्सा 3 सफह 534
का'दा में हाथ की उंगलियों को कैसे रखना चाहिए?
मस्अला:- का'दा में हाथ की उंगलियों को अपनी हालत पर छोड़ना यानि उंगलियां न खुली हुई हों और न मिली हुई हो, का'दा में उंगलियों से घुटने पकड़ना नहीं चाहिए, बल्कि उंगलियां रान पर घुटनों के क़रीब रखना चाहिए
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1,हिस्सा 3 सफह 530
अत्तहियात(attahiyat-Tashahhud)
تشہد اور درود وسلام
اَلتَّحِيَّاتُ لِلّٰهِ وَالصَّلَوٰتُ وَالطَّـيِّـبَاتُ اَلسَّلَامُ عَلَيْكَ اَيُّـهَا الـنَّبِىُّ وَرَحْمَةُ اللّٰهِ وَبَـرَكَاتُهٗ اَلسَّلَامُ عَـلَـيْـنَا وَعَلٰى عِبَادِ اللّٰهِ الصّٰلِحِيْنَ اَشْهَدُ اَنْ لَّآ اِلٰهَ اِلَّا اللّٰهُ وَاَشْهَدُ اَنَّ مُـحَمَّدًا عَـبْدُهٗ وَرَسُوْلُهٗ.
attahiyat Tashahhud Translate meaning in Urdu
(میری) تمام قولی، فعلی اور مالی عبادتیں اللہ ہی کے لیے ہیں، اے نبی! آپ پر سلام ہو اور اللہ کی رحمت اور اس کی برکات ہوں، ہم پر اور اللہ کے (دیگر) نیک بندوں پر بھی سلام ہو، میں گواہی دیتا ہوں کہ اللہ کے سوا کوئی معبود نہیں اور میں گواہی دیتا ہوں کہ محمد صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم اس کے بندے اور اس کے رسول ہیں۔
attahiyat Tashahhud Translate meaning in hindi
तमाम कॉली, फाअली, और माली ईबादते अल्लाह ही के लिए है, ऐ नबी आप पर सलाम हो (मेरी) ओर अल्लाह की रहमत और इसकी बरकत होा, हम पर और अल्लाह के (दीगर) नेक बन्दो पर भी सलाम हो, मै गवाही देता हॅू कि अल्लाह के सिवाय कोई माअबुद नही और मैं गवाही देता हॅू कि मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैय व सल्लम इसके बन्दे और इसके रसुल हैा
मस्अला:- अत्तहियात पढ़ते वक़्त जब "अशहदुअल'ला'इलाहा इल्लल्लाहो" पढ़े तब दाहिने (Right) हाथ की छंगुलियां यानि छोटी उंगली और उसके पास वाली उंगली को लफ्ज़े "ला" पर बंद करे, और और बीच की उंगली का अंगूठे के साथ हलक़ा (Round) बांधकर शहादत की उंगली यानि पहली उंगली को उठाए और जब लफ्ज़े "इल्ला" पढ़े तब शहादत की उंगली नीचे कर ले और हाथ की हथेली पहले की तरह फौरन सीधी कर ले
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1,हिस्सा 3 सफह 530
अत्तहियात पढ़ते वक्त शहादत की उंगली कब उची व निचे करनी चाहिए?
मस्अला:- कुछ लोग लफ्ज़े "इल्ला" पढ़ने के बाद शहादत की उंगली को नीचे कर लेते हैं मगर मुठ्ठी बाँधे रखते हैं, और हथेली सीधी नहीं करते, येह तरीक़ा ग़लत है मुठ्ठी खोलकर उंगलियाँ क़िब्ला रू यानि क़िब्ला की तरफ़ कर देना चाहिए
अत्तहियात में शहादत की उंगली उठाने की अह़ादीसे करीमा में बहुत फ़ज़ीलत आई है
ह़दीस:- ह़ज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि
उंगली से इशारा करना शैतान पर धारदार हथियार से ज़्यादा सख़्त है
📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 82
ह़दीस:- ह़ज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि
वोह शैतान के दिल में खौफ़ डालने वाला है
📕📚मोमिन की नमाज़, सफह 82
मस्अला:- फर्ज़ नमाज़ में काद ए आख़िरा के अलावा दुरूद शरीफ़ नहीं पढ़ा जाएगा
📕📚मोमिन की नमाज़, सफह 82
वोह मुक़तदी जिस की कुछ रकाअतें छूट गई हों, वोह क़ाद ए आख़िरा में क्या करे?
मस्अला:- वोह मुक़तदी जिस की कुछ रकाअतें छूट गई हों, वोह क़ाद ए आख़िरा में सिर्फ तशह्हुद (अत्तहियात) ही पढ़े और तशह्हुद (अत्तहियात) को ठहेर ठहेर कर पढ़े ताकि इमाम के सलाम फेरने के वक़्त तक तशह्हुद से फारिग हो जाऐ और अगर इमाम के सलाम फेरने से पहले तशह्हुद( अत्तहियात) पढ़ने से फारिग हो गया तो कल्म ए शहादत की तकरार करे, यानि अशहदू से रसूलुहू:-- اَشْہَدُ اَنْ لاَ اِلٰہَ اللّٰہُ وَاَشْھَدُ اَنَّ مُحَمَّدً عَبْدُہ وَرَسُوۡلَہٗ का जुम्ला बार बार (Repeat) पढ़ता रहे
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1,हिस्सा 3 सफह 520
मस्अला:-दोनों क़ा'दों में पूरा तशह्हुद (अत्तहियात) पढ़ना वाजिब है अगर किसी भी कादा में तशह्हुद (अत्तहियात) का कोई हिस्सा पढ़ना भूल जाए तो सजद ए सहू वाजिब है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1,हिस्सा 3 सफह 518
मस्अला:- मुक़तदी अभी अत्तहियात पूरी करने ना पाया था कि इमाम तीसरी रकाअत के लिए खड़ा हो गया या सलाम फेर दिया तो मुक़तदी हर हाल में अत्तहियात पूरा करे अगरचेह उसमें कितनी ही दैर हो जाए
📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3,सफह 319
मस्अला:- कादा में नज़र गोद की तरफ़ करना मुस्तहब है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1,हिस्सा 3 सफह 538
अगर सजद ए सहू वाजिब हुआ तो क़ादा ए आख़िरा के वक्त सजद ए सहु कैसे होगा?
मस्अला:- अगर सजद ए सहू वाजिब हुआ तो क़ादा ए आख़िरा में "अत्तहियात" के बाद एक सलाम फेरने के बाद सजद ऐ सहू करना चाहिए, दूसरा सलाम फेरना मना है, अगर क़सदन यानि जानबूझकर दोनों तरफ़ सलाम फेर दिया तो अब सजद ए सहव् न हो सकेगा बल्कि नमाज़ को दूबारा पढ़ना वाजिब है
📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 638
क़ाद ए उला qaida e ola किसे कहते हैं?
मस्अला:- क़ाद ए उला qaida e ola वाजिब है यानि दो रकाअत पर बैठना वाजिब है अगरचेह नफ़्ल नमाज़ हो
इमाम क़ाद ए उला भुल गया तो क्या करें?
नमाज़ का सातवाँ फर्ज़
खुरूज बे सुन्एही क्या है?
"यानि अपने इरादे से नमाज़ से बाहर आना- नमाज़ पूरी करना"
मस्अला:- पहली मरतबा लफ़्ज़ "अस्सलामु " कहते ही इमाम नमाज़ से बाहर हो जायेगा, अगरचे -"अलैकुम"- न कहा हो उस वक़्त अगर कोई मुक़्तदी जमाअत में शामिल हुआ तो इक़तिदा सही नहीं होगी
मस्अला:- सिर्फ "अस्सलामु" कहना तह़रीम ए नमाज़ से बाहर कर देता है
📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 2,सफह 344
मस्अला:- दोनों सलाम में लफ़्ज़ "अस्सलामु" कहना वाजिब है "अलैकुम कहना वाजिब नहीं
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 518
मस्अला:-नमाज़ पूरी करने के लिए ""अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह"" कहना सुन्नत है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 535
मस्अला:- नमाज़ पूरी करने के लिए अगर कोई ""अलैकुमुस्सलाम"" कहे तो येह मकरूह है और आखिर में व बराकातुह भी न मिलाना चाहिए
मस्अला:- नमाज़ पूरी करने के लिए 2 मर्तबा ""अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह"" कहना सुन्नत है, पहले दाईं (Right) तरफ़ फिर बाईं (Left) तरफ़ सलाम फेरना येह भी सुन्नत है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 536
मस्अला:- सुन्नत येह है कि इमाम दोनों सलाम बुलंद आवाज़ से कहे, लेकिन दूसरा सलाम पहले सलाम की निस्बत कम आवाज़ से हो
मस्अला:- दाहिनी (Right) तरफ़ सलाम फेरने में चेहरा इतना घुमाना चाहिए कि पीछे वालों को दायाँ रुख़्सार यानि गाल नज़र आए और बाएं (Left) तरफ़ के सलाम में बायां नज़र आए
मस्अला:- इमाम के सलाम फेर देने से मुक़्तदी नमाज़ से बाहर (Exist) नहीं होगा जब तक कि मुक़्तदी खूद सलाम न फेरे
मस्अला:- मुक़्तदी को इमाम से पहले सलाम फेरना जायज़ नहीं
मस्अला:- जब इमाम सलाम फेर दे तो मुक़्तदी भी सलाम फेर दे, लेकिन अगर मुक़्तदी ने तशह्हुद यानि अत्तहियात अभी पूरा न पढ़ पाया था कि इमाम ने सलाम फेर दिया तो मुक़्तदी इमाम का साथ न दे, बल्कि वाजिब है कि वोह तशह्हुद यानि अत्तहियात पूरा कर के सलाम फेरे
मस्अला:- इमाम, सलाम फेरने में दाईं तरफ़ सलाम फेरते वक़्त उन मुक़्तदीयों के सलाम (खि़ताब ) की नियत करे जो दाईं तरफ़ हैं और बाएं तरफ़ सलाम फेरते वक़्त बाईं तरफ़ वाले मुक़्तदीयों की नियत करें, खास तौर से दोनों सलामों में किरामन कातीबीन यानि (इन्सान के अमलों को लिखने वाले फरिश्ते) और उन फरिश्तों की नियत करे जिसको अल्लाह तआला ने हिफ़ाज़त के लिए मुक़र्रर किया है,और नियत में कोई तादाद (संख्या) मुतअय्यन न करे
मस्अला:- मुक़्तदी भी हर तरफ़ के सलाम में उस तरफ़ वाले मुक़्तदीयों और फरिश्तों की नियत करें,और जिस तरफ़ इमाम हो उस तरफ़ के सलाम में इमाम की भी नियत करे, और अगर इमाम इसके सामने हो तो दोनों सलामों में इमाम की नियत करे
मस्अला:- मुन्फ़रिद यानि अकेला नमाज़ पढ़ने वाला दोनों सलामों में सिर्फ फरिश्तों की नियत करे
मस्अला:- सलाम के बाद सुन्नत येह है कि इमाम दाईं या बाईं तरफ़ को घूम जाऐ लेकिन दाईं तरफ़ घूमना अफ़ज़ल है,और इमाम घूम कर मुक़्तदीयों की तरफ़ मुंह कर के बैठ सकता है,जबकि कोई मुक़्तदी उस्के समाने नमाज़ में न हो,यहाँ तक कि पिछली सफ़ में भी कोई नमाज़ न पढ़ रहा हो
मस्अला:- सलाम फेरने के बाद इमाम का क़िब्ला की तरफ़ मुंह कर के बैठा रहना हर नमाज़ में मकरूह है, उत्तर या दक्षिण दिशा की तरफ़ या मुक़्तदीयों की तरफ़ मुंह करे,और अगर कोई मुक़्तदी उसके सामने नमाज़ पढ़ रहा है अगरचे आखिरी सफ़ में हो तो सलाम के बाद इमाम मुक़्तदीयों की तरफ़ मुंह न करे बहरहाल सलाम के बाद इमाम का फिरना मत्लूब है अगर न घूमा और क़िब्ला रू बैठा रहा तो सुन्नत का तर्क और कराहत में मुब्तिला हुआ
📕📚📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 74
मस्अला:- पहले सलाम में दाईं शाना यानि कंधा (Shoulder) और दूसरे सलाम में बाईं कंधे की तरफ़ नज़र करना मुस्तहब है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 538
मस्अला:- मुन्फ़रिद यानि अकेला नमाज़ पढ़ने वाला बगैर दाएं बाएं मुड़े उसी जगह बैठ कर दुआ मांगे तो जायज़ है
मस्अला:- ज़ोहर- मग़रिब- और इशा-के फर्ज़ नमाज़ के बाद मुख़्तसर दुआ कर के सुन्नत नमाज़ पढ़े और ज़्यादा लम्बी दुआओं में मशगूल न हो
मस्अला:- जिन फर्ज़ नमाज़ों के बाद सुन्नतें हैं उनमें फर्ज़ नमाज़ के बाद कलाम यानि बातचीत न करना चाहिए, अगरचे बातचीत करने से सुन्नतें तो अदा हो जाएंगी मगर सवाब कम हो जाएगा और सुन्नतें पढ़ने में ताखीर देर करना मकरूह है, फर्ज़ और सुन्नतों के दरमियान बड़े-बड़े लम्बे विर्द और वज़ाइफ़ की भी इजाज़त नहीं
मस्अला:- अफ़ज़ल येह है कि जहां फर्ज़ नमाज़ पढ़ी हो वहीं सुन्नते न पढ़े बल्की दाएं बाएं या आगे पीछे हट कर या घर जाकर पढ़ें
मस्अला:- अफ़ज़ल येह है कि फजर नमाज़ के बाद वहीं बैठा रहे और तुलूअ़ अफ़ताब तक ज़िक्रो अज़कार दुरूद शरीफ़ वगैरह और क़ुरआन शरीफ़ की तिलावत में मशगूल रहे
मस्अला:- नमाज़ के बाद दुआ मांगना सुन्नत है, हाथ उठा कर दुआ मांगना और दुआ के बाद मुंह पर हाथ फेरना येह भी सुन्नत है
📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह72/73
मस्अला:- हाथ उठा कर दुआ मांगते वक़्त दोनों हाथों में कुछ फासला (अंतर )हो बिल्कुल मिला नहीं देना चाहिए
📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 121
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