namaz ki sunnate wajibat mustahab वाजिबाते नमाज़ का करना, नमाज़ के सहीह होने के लिए ज़रुरी है, अगर इन वाजिबों में से कोई एक भी वाजिब भूलकर छूट जाए ..
हिस्सा-10
नमाज़ के वाजिबात (वाजिब)
नमाज में कितने वाजिब होते हैं?
wajibat वाजिबाते नमाज़ का करना, नमाज़ के सहीह होने के लिए ज़रुरी है, अगर इन वाजिबों में से कोई एक भी वाजिब भूलकर छूट जाए तो सजद ए सहू करना wajib वाजिब होगा,यानि सजद ए सहू करने से नमाज़ दुरुस्त हो जायेगी,और अगर सजद ए सहू वाजिब wajib था और सजद ए सहू नहीं किया तो नमाज़ नहीं होगी, और अगर किसी एक वाजिब को क़स्दन यानि जानबूझकर छोड़ दिया तो सजद ए सहू करने से भी नमाज़ सहीह नहीं होगी, दुबारा नमाज़ पढ़ना वाजिब होगा, इसलिए वाजिबाते नमाज़ खूब अच्छी तरह ज़िहन में बसा लें ताकि आप की नमाज़ सहीह हो वाजिबाते wajibat नमाज़ येह है
- तकबीरे तैह़रीमा में लफ्ज़ "अल्लाहु अकबर" कहना,
- सूर ए फातिह़ा पूरी पढ़ना यानि पूरी सूरत से एक लफ़्ज़ भी न छूटे
- सूर-ए-फातिहा के साथ सूरत मिलाना, यानि एक बड़ी आयत या तीन छोटी आयतें मिलाना
- फर्ज़ नमाज़ की पहली दो रकाअतों में अल्ह़म्दु शरीफ़ (सूर ए फातिहा ) के साथ सूरत मिलाना
- नफ़्ल, सुन्नत, और वित्र, नमाज़ की हर रकाअत में अल्ह़म्दु शरीफ़ (सूर-ए-फातिहा ) के साथ सूरत मिलाना
- सूर-ए-फातिहा (अल्हम्दु शरीफ )का सूरत से पहले पढ़ना
- सूरत से पहले सिर्फ एक ही मर्तबा अल्ह़म्दु शरीफ़ पढ़ना
- अल्ह़म्दु शरीफ़ (सूर-ए-फातिहा )और सूरत के दरमियान वक़्फ़ा (गैप) न करना यानि सूर-ए-फातिहा के बाद "आमीन" और सूर-ए-फातिहा से पहले "बिस्मिल्लाह" के सिवा कुछ न पढ़ना
- क़िराअत यानि नमाज़ में क़ुरआन पढ़ने के बाद फौरन रुकूअ करना
- क़ौमा यानि रुकूअ के बाद सीधा खड़ा होना
- हर एक रकाअत में सिर्फ एक ही रुकूअ करना
- एक सजदा के बाद फौरन दूसरा सजदा करना कि दोनों सजदों के दरमियान कोई रुक्न फासिल न हो
- मर्दों को सजदा में दोनों पांव की तीन तीन उंगलियों के पेट ज़मीन से लगाना
- औरतों के लिए वाजिब नहीं
- जल्सा यानि दोनों सजदों के दरमियान सीधा बैठना
- हर रकाअत में 2 मर्तबा सजदा करना, दो से ज़्यादा सजदे न करना,
- तादीले अरकान यानि रुकूअ, सुजूद,क़ौमा,और जल्सा, में कम से कम 1 मर्तबा ""सुब्हान अल्लाह"" कहने मैं जितना वक़्त लगता है उतनी देर ठहरना
- दूसरी रकाअत से पहले क़ादा न करना यानि 1 रकाअत के बाद कादा न करना और खड़ा हो जाना
- क़ाद ए उला दो रकाअत पर करना अगरचे नफ्ल नमाज़ हो
- क़ादा ए उला और क़ादा ए आख़ीरा में पूरा तशह्हुद (अत्तहियात )पढ़ना इस तरह कि एक लफ्ज़ भी न छूटे
- फर्ज़, वित्र,और सुन्नते मुअक्किदा के क़ादा ए उला में तशह्हुद (अत्तहियात ) के बाद कुछ भी न पढ़ना
- 4 रकाअत वाली नमाज़ में तीसरी रकाअत पर क़ादा न करना और चौथी रकाअत के लिए खड़ा हो जाना
- हर वोह नमाज़ जिस में बुलंद आवाज़ से क़िराअत होती है जैसे मगरिब इशा फजर वगैरह में बुलंद आवाज़ से ही क़िराअत करना
- हर सिर्री नमाज़ में यानि जिस नमाज़ में आहिस्ता आवाज़ में क़िराअत होती है जैसे ज़ुहर असर वगैरह में आहिस्ता क़िराअत करना
- वित्र नमाज़ में दुआ ए क़ुनूत की तकबीर यानि ""अल्लाहु अकबर"" कहना
- वित्र नमाज़ में दुआ ए क़ुनूत पढ़ना
- ईद की नमाज़ में छे (6) ज़ाइद (Extra) तकबीरें कहना
- ईद की नमाज़ में दूसरी रकाअत के रूकूअ में जाने के लिए "अल्लाहु अकबर" "तकबीर" कहना
- आयते "सजदा" पढ़ी तो सजद ए तिलावत करना
- सहृव (गलती ) हुई हो तो सजद ए सहू करना
- हर फर्ज़ और हर वाजिब का उसकी जगह (स्थान ) पर होना
- दो फर्ज़ या दो वाजिब वो किसी फर्ज़ या वाजिब के दरमियान तीन तस्बीह़ यानि तीन मरतबा "सुब्हान अल्लाह" कहने में जितन वक़्त लगता है उतनी देर वक़्फ़ा न होना
- इमाम क़िराअत पढ़े चाहे बुलंद आवाज़ से पढ़े चाहे आहिस्ता आवाज़ से पढ़े तब मुक़्तदी का चुप रहना और कुछ भी न पढ़ना
- क़िराअत के इलावा तमाम वाजिबात यानि वाजिब कामों में मुक़्तदी का इमाम की मुताबेअत करना
- दोनों सलाम में लफ्ज़ ""अस्सलामु"" कहना और अलैकुम कहना वाजिब नहीं
📕📚 मोमिन की नमाज़ सफह 88
उपर लिखे सभी वाजिबाते नमाज़ wajibat e namaz हैं, इन में कोई भी वाजिब wajib भूल से छूट जाए तो सजद ए सहू sajda e sahw करने से नमाज़ हो जायेगी, और अगर जानबूझकर छोड़ दिया तो सजद ए सहू sajda e sahw से भी नमाज़ नहीं होगी यहाँ पर सिर्फ 35 वाजिबात जो ख़ास ख़ास थे उसकाे लिख दिया गया है,
नोट- आपको अगर तफ़सीली मालूमात की ज़रूरत हो तो बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 में वाजिबाते नमाज़ का बयान पढ़ें
नमाज़ की सुन्नतें
- नमाज़ में सुन्नतों sunnate का ख़्याल रखना ज़रुरी है, क्योंकि सुन्नतों sunnato को मुकम्मल तौर से अदा करने वाला सवाब पायेगा,और सुन्नते अदा किए बगैर नमाज़ कामिल नहीं होगी यानि सवाब कम हो जायेगा,
- सुन्नत को जानबूझकर छोड़ना शरीयत की नज़र में बहुत बुरा है सुन्नतों sunnato को हमेशा छोड़ने वाला और इसकी आदत बनाने वाला अज़ाब का ह़क़दार है इसलिए इस पोस्ट को दो तीन बार पढ़ कर ज़िहन में बसा लें और सवाब की नियत से दोस्तों तक भी पहुंचायें,सुन्नतें ये हैं:-
- तकबीरे तैह़रीमा के लिए दोनों हाथ उठाना जब हम नमाज़ शुरू करने के लिए "अल्लाहु अकबर" कहते हैं उस को तकबीरे तैह़रीमा कहते हैं
- तकबीर से पहले कान तक हाथ उठाना
- तकबीर कहते वक़्त सर न झुकाना बल्कि सीधा रखना बहुत लोग सर झुका कर "अल्लाहु अकबर" कहते हैं ये सुन्नत के ख़िलाफ़ है
- हथेलियों और उंगलियों के पेट क़िब्ला रू होना
- हाथों की उंगलियां अपने हाल पर छोड़ना यानि उंगलियाँ न कुशादा करना और न खूब मिली हुई रखना
- औरत के लिए सुन्नत है कि मूंढ़ों (कंधों ) तक दोनों हाथ उठाऐ
- वित्र नमाज़ में तकबीरे कुनूत से पहले कान तक दोनों हाथ उठाना
- हर तकबीर में लफ़्ज़ "अल्लाहु अकबर" की "र" ( ر ) को जज़म पढ़ना यानि "अल्लाहु अकबरो" न कहना बल्कि "अल्लाहु अकबर" कहना
- हर तकबीरे इंतिक़ाल के वक़्त एक फेल (काम) से दूसरे फेल काम यानि (रुकूअ से सीधा खड़ा होने के लिए फिर सजदा में जाने के लिए फिर सजदा से उठने के लिए वगैरह वगैरह जो "अल्लाहु अकबर" कहा जाता है उसी को तकबीरे इंतिक़ाल कहते हैं )जाने की इब्तिदा (शुरुआत ) के साथ ही लफ़्ज़े "अल्लाह" की अलिफ़ (ا ) शुरू करना और फैल के ख़त्म होने के साथ ही लफ़्ज़े "अकबर" की "रे" (ر ) को ख़त्म करना
- इमाम का बुलंद आवाज़ से अल्लाहु अकबर कहना
- इमाम की तकबीरात की आवाज़ मुक़तदियों तक पहुंचाने के लिए मुकब्बिर (आवाज़ पहुंचाने वाला मुक़तदी ) मुकर्रर करना
- तकबीरे तैह़रीमा के बाद हाथ न लटकाना और फौरन बांध लेना, मर्द नाफ़ पर और औरत सीना पर बांधे
- कुछ लोग तकबीरे तैह़रीमा में कानों से हाथ लाकर लटकाते हैं फिर नियत बांधते हैं ये सुन्नत के ख़िलाफ़ है
- क़याम में दोनों पांव के पंजों के दरमियान चार अंगुल का फासला (अंतर )रखना
- क़याम में थोड़ी देर तक एक पांव पर ज़ोर (वज़न ) देना फिर थोड़ी देर दूसरे पांव पर ज़ोर देना
- "सना" और आऊज़बिल्लाह और बिस्मिल्लाह पढ़ना और सबको आहिस्ता आवाज़ से पढ़ना
- पहले "सना" पढ़ना, फिर बाद में पूरी "आऊज़बिल्लाह" और उसके बाद "बिस्मिल्लाह" पढ़ना ,और हर एक का, एक के बाद दूसरे को फौरन पढ़ना यानि वक़्फ़ा न करना
- सूर ए फातिहा के ख़त्म होने पर "आमीन" कहना और "आमीन" को आहिस्ता आवाज़ से कहना
- पहली रकाअत के बाद हर रकाअत के शुरू में बिस्मिल्लाह पढ़ना
- रुकूअ में जाने के लिए "अल्लाहु अकबर" कहना
- रुकूअ में कम से कम 3 मर्तबा "सुब्हाना-रब्बियल-अज़ीम" कहना
- मर्द के लिए रुकूअ में घुटनों को हाथ से पकड़ना और हाथ की उंगलियाँ खूब खुली हुई रखना
- औरत के लिए रुकूअ में घुटनों पर सिर्फ हाथ रखना और घुटनों को नहीं पकड़ना और हाथ की उंगलियाँ कुशादा न करना बल्कि मिली हुई रखना
- मर्द रुकूअ में खूब झुके कि उसकी पीठ सीधी हो जाऐ
- औरत रुकूअ में सिर्फ इतना झुके कि हाथ घुटनों तक पहुंच जाए
- मर्द रुकूअ में सर को न झुकाऐ और न ही ऊंचा रखे बल्कि पीठ के बराबर में रखे
- औरत रुकूअ में "सर" को पीठ की महाज़ से ऊंचा रखे
- मर्द रुकूअ में अपनी टांगे बिलकुल न झुकाऐ बल्कि बिलकुल सीधी रखे
- औरत रुकूअ में टांगे झुकी हुई रखें मुर्दों की तरह सीधी न रखे
- इमाम का रुकूअ से खड़ा होने के लिए बुलंद आवाज़ से "समिअल्लाहु'लिमन'हमिदह " कहना
- मुक़तदी का रुकूअ से खड़ा होने के लिए "अल्ला'हुम्मा- रब्बना-व-लकल-हम्द"" मुक़तदी आहिस्ता आवाज़ से कहे
- मुन्फ़रिद यानि तन्हा नमाज़ पढ़ने वाला रुकूअ से खड़ा होने के लिए दोनों कहना
- समिअल्लाहु लिमन हमिदह की "ह" (ہ) को साकिन पढ़ना और दाल को खींच कर न पढ़ना
- समिअल्लाहु की सीन (س) को रुकूअ से सर उठाने के साथ शुरू करना और हमिदह की ह (ہ ) को सीधा खड़ा होने के साथ ख़त्म करना
- रुकूअ से खड़ा होते वक़्त और खड़ा होने के बाद क़ौमा में हाथ न बांधना बल्कि हाथ को लटके हुए छोड़ना
- सजदा में जाने के लिए और सजदा से उठने के लिए "अल्लाहु अकबर" कहना
- रुकूअ के बाद कौमा से सजदा में जाते वक़्त ज़मीन पर पहले दोनों घुटनों को रखना, फिर दोनों हाथ फिर नाक फिर पेशानी रखना,
- दोनों सजदों के बाद क़याम में खड़ा होने के लिए उठ़ते वक़्त पहले पेशानी को उठाना, फिर नाक उठाना, फिर दोनों हाथ फिर दोनों घुटनें उठाना
- सजदा में कम से कम तीन मरतबा "सुब्हाना-रब्बियल-आला" कहना
- सजदा में दोनों पांव की दसों उंगलियों के पेट ज़मीन से लगाना और उंगलियों के सर (नोक ) क़िब्ला रू होना
- सजदा में दोनों हाथ की उंगलियां मिली हुई और क़िब्ला रू होना
- मर्द को सजदा में बाज़ू को करवट से और पेट को रान से जुदा रखना
- औरत सिमट कर सजदा करे यानि बाज़ू को करवट से,पेट को रान से,रान को पिंडलियों से,और पिंडलियों को ज़मीन से मिला दे
- मर्द सजदा में कलाइयाँ और कोहनियां ज़मीन पर न बिछाएं बल्कि हथेलियां ज़मीन पर रखकर कोहनियों को ऊपर उठाऐ रखें
- औरत सजदा में कलाईयां और कोहनियां बिछाए यानि ज़मीन से लगाए रखना
- दोनों सजदों के दरमियान जलसा में मर्द इस तरह बैठे कि बायां (Left) क़दम बिछाकर उस पर बैठे और दायां क़दम इस तरह खड़ा रखे कि पांव की उंगलियाँ क़िब्ला रू हों
- औरत जलसा में दोनों पांव दाईं तरफ़ निकाल दे,और बाईं सुरीन चूतड़ के सहारे ज़मीन पर बैठे औरत क़ा'दा में भी (तशह्हुद-अत्तहिय्यात) में भी इसी तरह बैठे
- दोनों सजदों के बाद क़याम के लिए खड़ा होते वक़्त पंजों के बल घुटनों पर दोनों हाथ रख कर खड़ा होना
- का'दा में मर्द उसी तरह बैठे जैसे दोनों सजदों के दरमियान जल्सा में बैठता है यानि बायां पांव बिछाकर उसपर बैठे और दायाँ पांव खड़ा रखे
- औरत क़ा'दा में जल्सा की हालत में जिस तरह बैठती है उसी तरह बैठे
- क़ा'द ए ऊला के बाद तीसरी रकाअत के लिए उठते वक़्त ज़मीन पर हाथ रखकर न उठना बल्कि दोनों हथेलियां घुटनों पर रखकर घुटनों पर ज़ोर (वज़न )देकर खड़ा होना
- का'दा में दायाँ हाथ दाईं रान पर,और बायां हाथ बाईं रान पर रखना, इस तरह कि उंगलियों के सिरे (अंत भाग) घुटनों के क़रीब हों और तमाम उंगलियाँ क़िब्ला रू हो
- क़ा'दा में हाथ की उंगलियों को अपनी हालत पर छोड़ना,यानि हाथ की उंगलियों को न कुशादा रखना और न मिली हुई रखना बल्कि उंगलियों को अपने हाल पर रखना
- नवाफ़िल (नफ़्ल )और सुन्नते ग़ैर मुअक्किदह के क़ा'द ए ऊला में तशह्हुद (अत्तहिय्यात ) के बाद दुरुद शरीफ़ और दुआ ऐ मासूरह पढ़ना,दुरुद में दुरुदे इब्राहीमी पढ़ना अफ़ज़ल है
- हर नमाज़ के क़ा'द ए आख़ीरा में तशह्हुद (अत्तहिय्यात ) के बाद दुरुद शरीफ़ और दुआ ए मासूरा पढ़ना
- तशह्हुद (अत्तहिय्यात) में "अश्हदू'अल'ला'इलाहा'इल्लल्लाह पढ़ते वक़्त लफ़्ज़े "ला" पर दाईं (Right) हाथ की छंगुलिया यानि आखिरी छोटी उंगली और उसके पास वाली उंगली को बंद करना और बीच की उंगली का अंगूठे के साथ हल्का (Round) बांधकर शहादत की पहली उंगली उठाना और जब लफ़्ज़े इल्ला पढ़े तब शहादत की उंगली जो उठी हुई थी उसको नीचे कर लेना, और हाथ की हथेली मिस्ले साबिक़ पहले की तरह सीधी कर लेना
- नमाज़ पूरी करने के लिए "अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह" कहना
- सलाम दो मरतबा कहना, पहले दाईं तरफ़ और फिर बाईं तरफ़ मुंह कर के कहना
- इमाम दोनों सलाम बुलंद आवाज़ से कहे, लेकिन दूसरा सलाम पहले सलाम की ब'निस्बत कम आवाज़ से हो
- सलाम फेरने में चेहरा इतना घुमाना चाहिए कि दाईं तरफ़ सलाम फेरने में पीछे वालों को दायाँ रुख़्सार (गाल) नज़र आऐ, और बाईं तरफ़ सलाम फेरने में पीछे वालों को बायां रुख़्सार (गाल ) नज़र आऐ
- सलाम के बाद इमाम का दायें बायें या मुक़तदियों की तरफ़ घूमकर दुआ मांगना और दाईं तरफ़ घूमना अफ़ज़ल है
- सलाम के बाद हाथ उठा कर दुआ मांगना और दुआ पूरी कर के मुंह पर हाथ फेरना
📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 91
नमाज़ के मुस्तहब
नमाज़ में जितनी चीज़ें मुस्तहब mustahab हैं उनका करना बहुत ही अच्छा है और करने वाला सवाब पायेगा, और मुस्तहब mustahab चीज़ों को मुकम्मल तौर से अदा करने से नमाज़ अकमल और मक़बूल होगी,लेकिन जाने अन्जाने में मुस्तहब mustahab चीज़ों को छोड़ने से किसी तरह़ का भी कोई गुनाह और किसी क़िस्म का कोई अज़ाब और इताब भी नहीं होगा,फिर भी मुस्तहब को भी अदा करने की कोशिश करनी चाहिए ताकि नमाज़ के सवाब में इज़ाफ़ा हो
खुलासा ये है कि नमाज़ में, मुस्तहब mustahab को मुकम्मल तौर से अदा करने पर सवाब बढ़ जाता है,और छोड़ने पर कोई पकड़ वो गुनाह नहीं होगा, मैं नमाज़ के मुस्तहब तह़रीर कर रहा हूँ बस आप पढ़ें और मुझे अपनी दुआओं में याद रखें
- अरबी ज़बान (भाषा ) में निय्यत करना
- मर्द तकबीरे तैह़रीमा के वक़्त हाथ कपड़े से बाहर निकाले औरत हाथ बाहर न निकाले
- ह़ालते "क़याम" में सजदा की जगह की तरफ़ नज़र रखना
- सूर ए फातिहा के बाद किसी सूरत को शुरू से पढ़ते वक़्त तस्मिया यानि बिस्मिल्लाह शरीफ़ पढ़ना
- पहली रकाअत की क़िराअत दूसरी रकाअत की क़िराअत से थोड़ी ज़्यादा होना
- जब मुकब्बिर (तकबीर कहने वाला )ह़य्या-अलल-फलाह़ कहे तब इमाम और मुक़तदियों का खड़ा होना
- मुक़तदी का इमाम के साथ नमाज़ शुरू करना
- जहां तक हो सके खांसी को रोकना
- जमाही आऐ तो उसे दफ़अ़ करना
- रुकूअ में 3 मर्तबा से ज़्यादा और कम से कम 5 बार सुब्हाना-रब्बीयल-अज़ीम पढ़ना
- रुकूअ में क़दम की पुश्त पर नज़र रखना
- सजदा में 3 मर्तबा से ज़्यादा और कम से कम 5 मर्तबा सुब्हाना- रब्बीयल आला पढ़ना
- सजदा में नाक की तरफ़ नज़र रखना
- इमाम और मुक़तदी दोनों को दोनों सजदों के दरमियान अल्लाहुम्मग़फ़िरली कहना
- जिस क़ा'दा में दुरुद शरीफ़ पढ़ने का हुक्म है उसमें दुरुदे इब्राहीम पढ़ना
- दुरुद शरीफ़ में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और ह़ज़रते इब्राहीम अलैहिस्सलातो वस्सलाम के मुबारक नामों के आगे (पहले) लफ़्ज़ "सय्यिदिना" कहना
- क़ा'दा की ह़ालत में गोद की तरफ़ नज़र रखना
- पहले सलाम में दायें कंधा की तरफ़ और दूसरे सलाम में बायें कंधा की तरफ़ नज़र करना
- जिस जगह (स्थान ) पर फर्ज़ नमाज़ पढ़ी हो उस जगह से दायें बायें या आगे पीछे हट कर सुन्नत पढ़ना
जमाही रोकने का मुजर्रब तरीक़ा
अगर नमाज़ की ह़ालत में जमाही (Yawn) आऐ तो जमाही को रोकना चाहिये,जमाही रोकने के लिए मुंह को ज़ोर से बंद कर लेना चाहिए अगर मुंह बंद करने से भी जमाही न रुके तो होंठ (लब Lip)को दांत के नीचे दबाना चाहिए और अगर इस तरीके से भी जमाही न रुके तो अगर हालते क़याम में है तो दाहिने हाथ की हथेली की पुश्त (Back Side)से मुंह ढांक लेना चाहिए और कयाम के अलावा की हालत में बायें हाथ की हथेली की पुश्त से मुंह ढांक लेना चाहिए, और जमाही रोकने का मुजर्रब तरीक़ा येह है कि दिल में येह ख़याल करें कि अम्बिया ए किराम खुसूसन हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को जमाही नहीं आती थी येह ख़्याल (विचार) करते ही इंशाअल्लाह जमाही रुक जाएगी
📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 97
🌹والله تعالیٰ اعلم بالصواب🌹
हिस्सा-11 to be continued.... हिस्सा-09
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