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हिस्सा-9 Deeni Malumat in Hindi शादी (Shadi)

हिस्सा-09 शादी-

हिस्सा-09
शादी-
तलाक़ का शरई हुक्म
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शरियत के खिलाफ कोई भी फैसला हमें हरगिज़ मंज़ूर नहीं


वो मर्द और औरतें जो इस्लाम के खिलाफ बोले मुसलमान के नाम पर कलंक है एक बदनुमा दाग है उन्हें मुसलमान समझा ही ना जाये क्योंकि वो काफिरो मुर्तद हैं

📕 तम्हीदे ईमान,सफह 41


निकाह से जहां दो अजनबी एक होते हैं वहीं उस रिश्ते को तोड़ देने का नाम तलाक़ है,हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि


तमाम हलाल चीज़ों में अल्लाह को सबसे ज़्यादा ना पसन्द तलाक़ है

📕 अबू दाऊद,जिल्द 1,सफह 296


हालांकि तलाक़ एक जायज़ चीज़ है मगर इसका इस्तेमाल खास दुश्वारियों और परेशानियों में करने का ही हुक्म है ये नहीं कि बात बात में शौहर अपनी बीवी को तलाक़ देता बैठा रहे,क्योंकि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि


फिर अगर वो तुम्हे पसंद ना आये तो क़रीब है कि कोई चीज़ तुम्हे ना पसंद हो और अल्लाह उसमे बहुत भलाई रखे

📕 पारा 4,सूरह निसा,आयत 19


मतलब ये कि कोई इंसान सिर्फ ऐबों का मुजस्समा तो नहीं हो सकता अगर उसमे कुछ बुराई होगी तो अच्छाई भी ज़रूर होगी तो अगर औरत में ऐसी कोई खराबी नज़र भी आती है तो शौहर को उसकी खूबियों पर भी नज़र करनी चाहिए,लेकिन अगर फिर भी तलाक़ की नौबत आ ही जाए तो एक ही तलाक़ देनी चाहिए ताकि सुलह समझौते का रास्ता खुला रहे,जैसा कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि

Deni Malumat in Hindi,


तलाक़ दो बार तक है फिर भलाई के साथ रोक लेना है या भलाई के साथ छोड़ देना फिर अगर शौहर ने उसे तलाक़ (तीसरी) दी तो अब वो औरत उसे हलाल ना होगी यहां तक कि दूसरे शौहर के पास रहे 

📕 पारा 1,सूरह बक़र,आयत 229,230


तलाक़ की 3 किस्में हैं,रजई-बाइन-मुगलज़ा 


1. रजई - वो तलाक़ है कि औरत फिलहाल निकाह से नहीं निकलती,हां इद्दत गुज़र जाए और वापस ना लाये तो बाहर हो जाएगी शौहर को इद्दत के अंदर बग़ैर निकाह के उसे लौटाने का हक़ रहता है


2. बाइन - वो तलाक़ है कि औरत निकाह से तो फौरन निकल जाती है मगर औरत की मर्ज़ी से शौहर फिर उसे निकाह में ला सकता है इद्दत के अंदर हो या इद्दत के बाद,ये भी याद रहे कि किनाया के 200 अलफाज़ हैं जिनसे तलाक़ हो सकती मसलन अगर तलाक़ की नीयत से ये कहा कि तू मुझ पर हराम है तो तलाक़े बाइन हो गयी युंही ये कहा कि तू मेरे घर से निकल जा तो अगर तलाक़ की नीयत से कहा तो बाइन हो गयी,लिहाज़ा मुसलमान अपने गुस्से पर काबू रखना सीखें वरना तलाक़ की नियत से उन 200 अलफाज़ में से कुछ भी कहेगा तो तलाक़े बाइन हो जायेगी


3. मुगलज़ा - वो तलाक़ है कि औरत निकाह से फौरन बाहर हो गयी अब बग़ैर हलाला के उसके लिए हलाल ना होगी,मुगलज़ा तीन तलाक़ों से होता है अब ये तीन चाहे बरसों के फासले पर दी हो मसलन एक 20 साल पहले दी फिर कुछ दिन बाद एक और देदी अब जब भी तीसरी बार कहेगा तो मुगलज़ा हो जायेगी,या फिर इकठ्ठा दी यानि युं कहा कि मैंने तुझको तलाक़ दी तलाक़ दी तलाक़ दी या युं कहा कि मैंने तुझको 3 तलाक़ दी तो हर सूरत में मुगलज़ा वाक़ेय हो जायेगी,क्योंकि रब ने तीनो तलाक़ों का हुक़्म बयान किया मगर कोई शर्त नहीं लगाई कि एक ही मजलिस में हो या अलग अलग,और इस हुक्म की तामील हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के ज़माने मुबारक से हो रहा है जैसा कि सहाबियाये रसूल हज़रत फातिमा बिन्त क़ैस रज़ियल्लाहु तआला अन्हा अपना तलाक़ का वाक़िया बयान करती हैं कि


मेरे शौहर (हज़रत आमिर शोअबी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु) ने मुझे इकठ्ठी 3 तलाक़ दी तो अल्लाह के रसूल सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने तीनो तलाक़ नाफिज़ फरमा दी 

📕 इब्ने माजा,सफह 147


इसी तरह 1 साथ 3 तलाक़ों का कई मुआमला ज़मानये नब्वी में पेश आया जिस पर आपने 3 तलाक़ों का ही हुक्म दिया,और बाद के मुहद्देसीन हज़रात ने भी इसी पर अमल किया जिसके लिए काफी हवाले मौजूद हैं मसलन

📕 अबू दाऊद,जिल्द 1,सफह 300 

📕 मूता इमाम मालिक,सफह 284 

📕 ताहावी,जिल्द 2,सफह 33 

📕 फत्हुल क़दीर,जिल्द 3,सफह 469

📕 अहकामुल क़ुरान,जिल्द 1,सफह 388


हां ये अलग बात है की इकट्ठी 3 तलाक़ देना गुनाह है और हालते हैज़ व हालते हमल में तलाक़ देना नाजायज़ है इस पर हुज़ूर ने नाराज़गी का इज़हार भी किया मगर फरमाते हैं कि अगर हालते हैज़ में भी 3 तलाक़ दी तो तीनो नाफिज़ हो जायेगी लेकिन अगर तीन नहीं दी तो रजअत यानि लौटाये दोबारा उसको निकाह में लाना वाजिब है

📕 दारक़ुतनी,जिल्द 2,सफह 433

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 5,सफह 604


औरत नमाज़ नहीं पढ़ती,शौहर के लिए बनाव सिंगार नहीं करती,शौहर को या घर वालों को तंग करती है इन सूरतों में तलाक़ दे सकते हैं युंही अगर शौहर जिमअ पर क़ादिर नहीं या कोई फरायज़ से औरत को रोकता है तो औरत तलाक़ ले सकती है

📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 8,सफह 5


हलाला - अब अगर मुगलज़ा हो गयी तो बग़ैर हलाला के औरत शौहर पर हलाल ना होगी,मतलब ये कि चुंकि तलाक़ दी है तो तलाक़ की इद्दत गुज़ारेगी जो कि 3 हैज़ है अब ये हैज़ चाहे तीन महीनो में आये या फिर तीन साल में,3 हैज़ आ गए इद्दत पूरी हो गयी या फिर हमल से थी तो हैज़ तो आएगा नहीं तो अब बच्चे की विलादत ही इद्दत है अब अगर बच्चा तलाक़ देने के 1 दिन बाद ही हो जाए इद्दत पूरी हो गयी अब वो दूसरे से निकाह करेगी उससे सोहबत होगी फिर वो तलाक़ देगा तो अब उसकी इद्दत गुज़ारेगी यानि फिर से 3 हैज़,अब पहले शौहर से निकाह कर सकती है,अगर चे देखने में ये कानून सख्त है मगर इससे भी ज़्यादा सख़्त ये है कि एक मर्द सब कुछ बर्दाश्त कर सकता है मगर अपनी बीवी को ग़ैर के बिस्तर में नहीं बर्दाश्त कर सकता,तो ये सज़ा अस्ल में उस मर्द के लिए है कि जिसने शरीयत को मज़ाक बनाया कि अगर चाहता तो एक तलाक़ देकर फिर से रुजू कर सकता था मगर नहीं अपनी मर्दानगी में या अपनी जिहालत में 3 क्या कइयों तलाक़ दे बैठा तो अब शरीयत से खेलने का अंजाम भी बर्दाश्त करे,ये भी याद रहे कि दूसरे शौहर से सिर्फ निकाह करके तलाक़ ले लेने से वो निकाह नहीं होगा बल्कि एक बार सोहबत करनी फर्ज़ होगी,और ये भी याद रहे कि अगर बग़ैर हलाला किये शौहर ने अपनी बीवी को रखा तो जो कुछ होगा सब ज़िना खालिस होगा और बच्चे सब हरामी पैदा होंगे

📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 8,सफह 126


अब जिस मसले पर क़ुरान हदीस और इज्माअ सबका मुत्तफिक़ फैसला हो उस पर कुछ जाहिलों की वजह से इन्कार नहीं किया जा सकता और क़यामत तक उसमे फेर बदल नामुमकिन है,चाहे कुछ नाम निहाद मुसलमान हों या फिर काफिरो मुर्तद लोग जो भी इसमें फेर बदल की कोशिश करेगा वो ज़िल्लतों रुस्वाई के गढ़े में समा जाएगा,अल्लाह ने जो क़ानून हमारे लिए बनाया है उसमें बिला शुबह भलाई ही भलाई है,लिहाज़ा ऐसी बे ग़ैरत औरतों और जाहिल मर्दों और ऐसी सरकार का कोई भी क़ानून जो कि इस्लाम के खिलाफ होगा हरगिज़ हरगिज़ हरगिज़ हमें मंज़ूर नहीं


दुआ में याद अल्‍लाह ने चाहा तो फिर नये हिस्‍सों के साथ मिलेंगे ....

फिर से पढने के लिए यहा क्लिक करें ......  हिस्‍सा - 01
 

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नाम

"235 वाँ उर्से जमाली मुबारक हो",1,आसमानी किताबें (Aasmani Kitabe),10,आसमानी किताबें 4 Aasmani Kitabe,1,इस्तेखारये ग़ौसिया,1,इस्लामिक महीना,7,एतेक़ाफ,1,क्‍या नमाज़ में कुरआन शरीफ देखकर किराअत kiraat करने से नमाज टूट जाएगी?,1,ज़कात zakat,1,नमाज़े तरावीह़,1,पांच वक़्त की नमाज़ जमाअत से पढ़ने की फ़ज़ीलत,1,फ़र्ज़,1,मुस्‍तहब,1,रमज़ान मुबारक,2,रमज़ान मुबारक RAMADAN MUBARAK,2,रमज़ानुल मुबारक,1,व मुबाह का ताअरूफ,1,वज़ाइफे ग़ौसिया,1,वाजिब,2,वित्र_किसे_कहते_हैं?,1,शबे क़द्र,1,सदक़ये फित्र,1,सलातुल ग़ौसिया,1,सुन्नत,2,abdul qadir jilani ghous pak ko mohiyuddin kyo kehte hai,1,abdul qadir jilani ghous pak kon hai,1,allah wala,8,attahiyat-Tashahhud,1,Deni Malumat in Hindi,9,Does namaz mean prayer?,1,Fazilat,1,full namaz,4,haraam-kise-kehte-hai-or-namaz-rakat,1,Hiqayat,1,history,1,huzur abdul qadir jilani ghous pak k naam,1,huzur abdul qadir jilani ghous pak ka waqia,1,iblees,1,Is Shab-e-Barat 2 days?,1,islam symbol,4,islami sawal jawab,1,Islamic Haq Baat,2,jab gunah ho jaye to kya kare,1,kiraat-rukoo-sajda-meaning,1,Kya F.D. or Plicy per zakat farz hai,1,Masail e Zakat,1,Mustafa ka gharana salamat rahe,1,Naat Lyrics,3,namaz,2,namaz k faraiz,1,namaz k faraiz aur wajibat,1,namaz kayam karo,1,namaz ki shart o ka bayan,1,namaz ki sunnate wajibat mustahab,1,namaz ko jamat se padhna or 5 waqt ki namaj ka bayan (what is namaz?) Part-11,1,namaz me hath kaha bandhna chahiye,1,namaz nahi padhne walo ka anzam,1,Orto ke zever per zakat ka sharai ahkam,1,RAMADAN MUBARAK,2,ramzan mubarak,1,sadkaye fitra,1,shabe barat ki duwa or namaj ka tarika,1,takbire tehrima,1,Urs e jamali,1,wajib meaning,2,What do we pray in namaz?,1,What does namaz mean?,1,what is farz,2,What is namaz called in English?,1,What should we do during Shab-e-Barat?,1,what-is-qaida-e-akhirah,1,Which night is Shab-e-Barat?,1,zakat kis per farz hai,1,
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