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namaz ki shart o ka bayan (what is namaz) Part-06

नमाज की शर्तो के बयान में से नमाज की पहली शर्त का बयान हम अपनी पिछली पोस्‍ट में बयान कर चुके है अब यहा पर अगली नमाज की शर्तो का बयान किया जायेगा जिसे

namaz ki shart o ka bayan

  what is namaz? हिस्सा-06

नमाज की शर्तो के बयान में से नमाज की पहली शर्त का बयान हम अपनी पिछली पोस्‍ट में बयान कर चुके है अब यहा पर अगली नमाज की शर्तो का बयान किया जायेगा जिसे आप मुलाअजा करें

namaz ki shart o ka bayan

  • नमाज़ की दूसरी शर्त
    • सतरे औरत

 "यानि बदन का वह हिस्सा जिसका छुपाना फर्ज़ है"

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरआन मजीद में इरशाद फरमाता है कि 

कंज़ुल ईमान:---  हर नमाज़ के वक्त कपड़ा पहनों

📕📚पारा 8 सूरह अल एअराफ आयत 31

''सतरे औरत" सतर यानि छुपाना यानि मर्द और औरत के बदन, का वह हिस्सा जिसको खोलना या खुला रखना ऐबदार है, और उस हिस्से को छुपाना लाज़मी और ज़रुरी है, लिहाज़ा अब सतरे औरत का माना येह हुआ कि मर्द और औरत के बदन (शरीर) का वोह हिस्सा (भाग) कि जिस पर पर्दा वाजिब है, और जिसको खोलना या खुला रखना ऐब और शर्म का बाइस है, और औरत को औरत छुपाने की चीज़ इस लिए कहते हैं कि वोह वाक़ई वास्तव में छुपाने की चीज़ है यानि औरत औरत है, इमाम तिरमिज़ी ने हजरते अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि

"ह़दीस:---- हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि, औरत औरत है यानि छुपाने की चीज़ है जब वोह निकलती है तब शैतान उसकी तरफ देखता है"

📕📚जामेअ तिरमिज़ी जिल्द 2 सफह 392 ह़दीस 1176

मस्अला:- मर्द के लिए नाफ़ के नीचे से घुटनों के नीचे तक का बदन छुपाना फर्ज़ है, नाफ़ दाखिल नहीं और घुटने उसमें दाखिल हैा 

📕📚दुर्रे मुख़्तार व रद्दुल मुह़तार जिल्द 2  सफह 93
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 481
📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 45


मस्अला:- औरत के लिए पूरा बदन छुपाना फर्ज़ है लेकिन मुंह की टकली यानि चेहरा, दोनों हाथों की हथेलियां, और दोनों पांव के तल्वे का छुपाना फर्ज़ नहीं, यानि  हालते नमाज़ में औरत का चेहरा दोनों हथेलियां, और दोनों तल्वे खुले होंगे तो नमाज़ हो जायेगीा

📕📚दुर्रे मुख़्तार जिल्द 2 सफह 95
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 481
📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 45


मस्अला:- सतरे औरत हर हाल में वाजिब है, चाहे नमाज़ में हो या न हो, किसी के सामने बगैर शरई मजबूरी के खोलना जायज़ नहीं, बल्कि तन्हाई में भी अपना हिस्सा ए सतर खोलना जायज़ नहीं, सतर हर हाल में फर्ज़ है जिसकी फर्ज़ियत को तमाम फुक़हा ने साबित किया हैा

📕📚दुर्रे मुख़्तार व रद्दुल मुह़तार जिल्द 2 सफह 93/97
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 480
📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 45


मस्अला :- औरत अगर इतना बारीक कपड़ा कि जिस से बदन चमकता हो यानि बदन नज़र आता हो पहन कर नमाज़ पढ़ी तो नमाज़ नहीं होगी और ऐसा कपड़ा सतर के लिए काफी नहीा

📕📚फतावा रज़विया श़रीफ़ जिल्द 3 सफह 1
📕📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 58
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 480


मस्अला:- अगर औरत इतना बारीक दुपट्टा ओढ़ कर नमाज़ पढ़े जिस से बालों की सियाही दिखाई दे तो नमाज़ न होगीा

📕📚फतावा रज़विया श़रीफ़ जिल्द 2 सफह 1
📕📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 58
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 481


मस्अला:- औरत का चेहरा अगरचे औरत नहीं है लेकिन गैर महरम के सामने चेहरा खोलना मना है और उसके चेहरे की तरफ़ नज़र करना और देखना गैर महरम मर्द के लिए जायज़ नहीा

📕📚दुर्रे मुख़्तार जिल्द 2 सफह 97
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 484


मस्अला:---- कुछ लोग कहते हैं कि अगर तहबन्द (लुंगी) के नीचे अंडर वियर नहीं पहना तो नमाज़ नहीं होती यह बिलकुल ग़लत है सही मस्अला यह है कि नमाज़ हो जायेगी

📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 45

  • नमाज़ की तीसरी शर्त इस्तिक़बाले क़िब्ला

    • इस्तिक़बाले क़िब्ला यानि नमाज़ में क़िब्ला (खाना ए काबा ) की तरफ़ मुंह करना

हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने 16 या 17 महीना तक बैतुल मुक़द्दस की तरफ़ नमाज़ पढ़ी और हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को पसंद येह था कि काबा शरीफ़ क़िब्ला हो, अल्लाह तआला क़ुरआन मजीद में इरशाद फरमाता है कि

"तर्जुमा कंजुल इमान:- हम तुम्हारे चेहरे का आसमान की तरफ़ बार बार उठना देख रहे हैं तो ज़रूर हम तुम्हें उस क़िब्ला की तरफ़ फेर देंगे जिस में तुम्हारी ख़ुशी है, तो अभी अपना चेहरा मस्जिदे ह़राम की तरफ़ फेर दो और ऐ मुसलमानों! तुम जहाँ कहीं हो अपना मुंह उसी की तरफ़ कर लो और बेशक वह लोग जिन्हें किताब अता की गई है वह ज़रूर जानते कि येह तबदीली उनके रब की तरफ़ से ह़क़ है और अल्लाह उनके आमाल से बे ख़बर नहीं"

📕📚पारा 2 सूरह बक़रा आयत नं 144


तफ़सीर व शाने नुज़ूल:- जब हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मदीना मुनव्वरह में तशरीफ़ लाए तो उन्हें बैतुल मुक़द्दस की तरफ़ मुंह कर के नमाज़ पढ़ने का हुक्म दिया गया और नबी ए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के हुक्म की पैरवी करते हुए उसी तरफ़ मुंह कर के नमाज़ें अदा करना शुरू कर दीं अलबत्ता हुज़ूर पुर नूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की खवाहिश (रिज़ा) येह थी कि खाना ए काबा को मुसलमानों का क़िब्ला बना दिया जाए, इसकी वजह यह नहीं थी कि बैतुल मुक़द्दस को क़िब्ला बनाया जाना हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को न पसंद था बल्कि उसकी एक वजह यह थी कि खाना ए काबा ह़ज़रते इब्राहिम अलैहिस्सलाम और उनके अलावा कसीर (ज़्यादा तर) अम्बिया ए किराम का क़िब्ला था, और एक वजह यह भी थी कि बैतुल मुक़द्दस की तरफ़ मुंह कर के नमाज़ पढ़ने की वजह से यहूदी फ़ख्र व गुरुर में मुब्तिला हो गये और यूँ कहने लगे थे कि मुसलमान हमारे दीन की मुख़ालिफ़त करते हैं लेकिन नमाज़ हमारे क़िब्ला की तरफ़ मुंह कर के पढ़ते हैं, एक दिन नमाज़ की ह़ालत में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इस उम्मीद में बार बार आसमान की तरफ़ देख रहे थे कि क़िब्ला की तबदीली का हुक्म आजाये, इस पर नमाज़ के दौरान ये आयते करीमा नाज़िल हुई  जिस में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की रिज़ा को रिज़ा ए इलाही क़रार देते हुए और आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के चेहर ए अनवर के ह़सीन अन्दाज़ को क़ुरआन में बयान करते हुए हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ख़वाहिश और ख़ुशी के मुताबिक़ खाना ए काबा को क़िब्ला बना दिया गया

चुनान्चेह आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम नमाज़ ही में खाना ए काबा की तरफ़ फिर गये (मुंह कर लिया), मुसलमानों ने भी हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के साथ उसी तरफ़ रुख किया और ज़ुहर की दो रकाअतें बैतुल मुक़द्दस की तरफ़ हुईं और दो रकाअतें खाना ए काबा की तरफ़ मुंह कर के अदा की गई

📕📚तफ़सीरे सिरात़ुल जिनान पारा 2 सूरह बक़रा आयत नं 144

इस आयत से मालूम हुआ कि अल्लाह तआला को अपने ह़बीब सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की रिज़ा बहुत पसंद है और अल्लाह तआला अपने ह़बीब सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की रिज़ा को पूरा फरमाता है, इमाम फखरुद्दीन राज़ी रहमतुल्लाही तआला अलैहि फरमाते हैं कि

बेशक अल्लाह तआला ने अपने ह़बीब सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की वजह से क़िब्ला तबदील फरमाया और इस आयत में यूँ नहीं फरमाया कि हम तुम्हें उस क़िब्ला की तरफ़ फेर देंगे जिस में मेरी रिज़ा है बल्कि यूँ इरशाद फरमाया कि

तो ज़रूर हम तुम्हें उस क़िब्ला की तरफ़ फेर देंगे जिस में तुम्हारी खुशी है तो गोया कि इरशाद फरमाया अऐ महबूब सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम हर कोई मेरी रिज़ा का तलबगार है और मैं दोनों जहाँ में तेरी रिज़ा चाहता हूँ

📕📚तफ़सीरे कबीर सूरह बक़रा आयत 143


मस्अला:- हमारा क़िब्ला खाना ए काबा है, खाना ए काबा के क़िब्ला होने से मुराद सिर्फ काबे की इमारत नहीं बल्कि वह फिज़ाएँ जो काबा की इमारत के अतराफ़ में यानि मुहाज़ात में पाई जाती हैं इसी तरह सातों ज़मीन से लेकर अर्शे आज़म तक क़िब्ला ही क़िब्ला है

📕📚रद्दुल मुह़तार जिल्द 2 सफह 141
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 488


मस्अला:- अगर किसी ने बुलन्द पहाड़ पर या बहुत गहरे कुवें में नमाज़ पढ़ी और काबे की तरफ़ मुंह किया तो उसकी नमाज़ हो जायेगी, हालांकि काबे की इमारत की तरफ़ तवज्जो न हुई लेकिन फिज़ा की तरफ़ पाई गई

📕📚रद्दुल मुह़तार जिल्द 2 सफह 141
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 488


मस्अला:- अगर कोई शख्स ऐसी जगह पर है कि वहाँ क़िब्ला की पहचान न हो कि किधर है, न वहाँ कोई ऐसा मुसलमान है जो उसे क़िब्ला की दिशा ( सिम्त ) बता दे न वहाँ मस्जिदें मेहराबें हैं कि उस से पता चल जाए, न चांद सूरज सितारे निकले हुए हों या निकले हुए तो हों मगर उसको इतना इल्म नहीं कि उनसे सही दिशा ( सिम्त ) मालूम कर सके, तो ऐसे श़ख्स के लिए हुक्म है कि वोह अच्छी तरह सोंचे और जिधर क़िब्ला होने पर दिल जमे, उधर ही मुंह कर के नमाज़ पढ़ ले उसके ह़क़ में वही क़िब्ला है

📕📚दुर्रे मुख़्तार व रद्दुल मुह़तार जिल्द 2 सफह 143
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 489


मस्अला:- अगर सोंचकर क़िब्ला तय कर के नमाज़ पढ़ी नमाज़ पढ़ने के बाद मालूम हुआ कि क़िब्ला की तरफ़ नमाज़ नहीं पढ़ी थी, तो अब दुबारा पढ़ने की ज़रूरत नहीं, नमाज़ हो गई

📕📚तनवीरुल अबसार किताबुस्सलात जिल्द 2 सफह 143
📕📚फतावा रज़विया श़रीफ़ जिल्द 1 सफह 661


मस्अला:- अगर वहाँ कोई श़ख्स क़िब्ला की दिशा ( सिम्त ) जानने वाला था, लेकिन इसने उससे मालूम नहीं किया और खुद गौर कर के किसी एक तरफ़ मुंह कर के नमाज़ पढ़ ली तो अगर क़िब्ला की तरफ़ मुंह था तो नमाज़ हो गई वर्ना नहीं

📕📚रद्दुल मुह़तार जिल्द 2 सफह 143


मस्अला:- अगर नमाज़ी ने बिला उज्र  (बगैर किसी मजबूरी के) क़िब्ला से क़स्दन (जानबूझकर) सीना फेर दिया अगरचे फौरन ही फिर क़िब्ला की तरफ़ हो गया उसकी नमाज़ फ़ासिद (टूट गई) हो गई, और अगर बिना इरादे के फिर गया, और तीन तस्बीह पढ़ने के वक्त की मिक़दार तक उस का सीना क़िब्ला से फिरा हुआ रहा, तो भी उसकी नमाज़ फासिद (टूट गई) हो गईा 

📕📚मुनयतुल मुस्ल्ली सफह 193


मस्अला:- अगर नमाज़ी ने क़िब्ला से सीना नहीं फेरा बल्कि सिर्फ चेहरा फेरा, तो उस पर वाजिब है कि अपना चेहरा फ़ौरन  क़िब्ला की तरफ़ कर ले, इस सूरत में उसकी नमाज़ फासिद न होगी बल्कि हो जायेगी, लेकिन बिला उज्र ऐसा करना मकरुह हैा

📕📚मुनयतुल मुस्ल्ली सफह 193
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 491
📕📚  मोमिन की नमाज़ सफह 51


मस्अला:- नमाज़ अल्लाह ही के लिए पढ़ी जाऐ और अल्लाह ही के लिए सजदा हो न कि काबा को, अगर किसी ने मआज़अल्लाह काबा के लिए सजदा किया, तो यह ह़राम और गुनाहे कबीरा है, और अगर काबा की इबादत की नियत की जब तो खुला काफिर है, किअल्लाह के अलावा किसी की इबादत करना कुफ्र हैा

📕📚दुर्रे मुख़्तार जिल्द 2 सफह 134
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 487


मस्अला:- काबा के अन्दर नमाज़ पढ़ी, तो जिस रुख चाहे पढ़े, और काबा की छत पर भी नमाज़ हो जायेगी, मगर उस की छत पर चढ़ना ममनूअ हैा

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 487


  • नमाज़ की चौथी शर्त
    • वक़्त

यानि कि जिस वक़्त की नमाज़ पढ़ी जाए उस नमाज़ का वक़्त होना जरूरी है,अल्लाह तआला क़ुरआन मजीद में इरशाद फरमाता है कि


"बेशक नमाज़ ईमान वालों पर अल्लाह तआला ने मुक़र्ररह वक़्तों पर फर्ज़ किया है"

📕📚पारा 5 सूरह निसा आयत 103

दिन व रात में कुल कितनी नमाज है?

दिन व रात में कुल पांच वक़्त की नमाज़ें फर्ज़ हैं नीचे पांचों नमाज़ों के नाम तह़रीर कर रहा हूँ जिसे न याद हो वह याद कर ले,

  1. फज़र
  2. ज़ुहर
  3. असर 
  4. मग़रिब
  5. इशा

फजर का वक़्त

तुलू ए सुबह सादिक़ से आफ़ताब की किरन चमकने तक है, यानि उजाला होने से फजर का वक़्त शुरू होता है और सूरज निकलने से पहले तक रहता है लेकिन ख़ूब उजाला होने पर पढ़ना मुस्तहब है

📕📚मुख़्तसरुल क़ुदूरी सफह 153
📕📚 बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 447

ज़ुहर का वक़्त

आफ़ताब ढ़लने से उस वक़्त तक है, कि हर चीज़ का साया ऐलावा साऐ असली के दो चंद हो जाये,यानि ज़ुहर का वक़्त सूरज ढलने के बाद शुरू होता है और ठीक दोपहर के वक़्त किसी चीज़ का जितना साया होता है उसके अलावा उसी चीज़ का दोगुना साया हो जाए तो ज़ुहर का वक़्त ख़त्म हो जाता है मगर छोटे दिनों में अव्वल वक़्त और बड़े दिनों में आखिरे वक़्त पढ़ना मुस्तहब है

📕📚मुख्तसरुल क़ुदूरी सफह 153
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 449

असर का वक़्त

ज़ुहर का वक़्त ख़त्म हो जाने से असर का वक़्त शुरू हो जाता है और सूरज डूबने से पहले तक रहता है, मगर असर में ताख़ीर हमेशा मुस्तहब है लेकिन इतनी ताख़ीर भी न करें कि सूरज की टिकिया में ज़र्दी आ जाए

📕📚मुख्तसरुल क़ुदूरी सफह 254
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 450

मग़रिब का वक़्त

ग़ुरुब आफ़ताब से ग़ुरुबे शफ़क़ तक है, यानि मग़रिब का वक़्त सूरज डूबने के बाद से शुरू हो जाता है और उत्तर दक्खिन फैली हुई सफेदी के ग़ायब होने से पहले तक रहता है, मगर अव्वल वक़्त पढ़ना मुस्तहब और ताख़ीर मकरुह

📕📚मुख्तसरुल क़ुदूरी सफह 154
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 450

इशा का वक़्त

इशा का वक़्त उत्तर दक्खिन फैली हुई सफेदी के गायब होने से शुरू होता है और सुबह उजाला होने से पहले तक रहता है लेकिन तिहाई रात तक ताख़ीर मुस्तहब और आधी रात तक मुबाह और आधी रात के बाद मकरुह है

📕📚फतावा रज़विया श़रीफ़ जिल्द 5 सफह 153
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 451


मस्अला:- रात और दिन में तीन वक़्त ऐसे हैं कि उस में कोई भी नमाज़ न फर्ज़, न वाजिब,न नफ्ल न अदा न क़ज़ा यूँही सजद ए तिलावत, व सजद ए सहू, भी जायज़ नहीं है, 

📕📚दुर्रे मुख़्तार व रद्दुल मुह़तार जिल्द 2 सफह 37
📕📚फतावा रज़विया श़रीफ़ जिल्द 5 सफह 122
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 454


मस्अला:- सूरज निकलने के वक़्त तक़रीबन 20 मिनट, यानि जब सूरज का किनारा ज़ाहिर हो उस वक़्त से लेकर तक़रीबन 20 मिनट कोई भी नमाज़ पढ़ना जायज़ नहीं,

मस्अला:- और इसी तरह सूरज डूबने के वक़्त तक़रीबन 20 मिनट, यानि जब सूरज पर नज़र ठहरने लगे, उस वक़्त से लेकर डूबने तक कोई भी नमाज़ पढ़ना जायज़ नहीं,

मस्अला:- और इसी तरह ठीक दोपहर के वक़्त तक़रीबन 40 से पचास मिनट तक कोई भी नमाज़ पढ़ना जायज़ नहीं, हाँ अगर उस दिन असर की नमाज़ नहीं पढ़ी है तो सूरज डूबने के वक़्त पढ़ ले, मगर इतनी देर करना सख्त गुनाह है,

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह  454


मस्अला:-  अगर नमाज़े जनाज़ह मकरुह वक़्त में लाया गया तो उसी वक़्त पढ़ लें कोई कराहत नहीं, कराहत इस सूरत में होगी कि पहले से जनाज़ह तय्यार मौजूद था, लेकिन इतनी ताख़ीर की कि मकरुह वक़्त आ गया, 

📕📚रद्दुल मुह़तार जिल्द 2 सफह 43
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 454


मस्अला:- मकरुह वक़्त में यानि सूरज डूबने के वक़्त 20 मिनट और इसी तरह सूरज निकलने के वक़्त 20 मिनट और ठीक दोपहर में 40 से 50 मिनट मकरुह वक़्त जो होता है इस में क़ुरआन मजीद की तिलावत न करना बेहतर है बहारे शरीयत में है कि इन वक़्तों में क़ुरआन की तिलावत बेहतर नहीं, बेहतर येह है कि ज़िक्रो अज़कार दुरुद शरीफ़ वगैरह में मशगूल रहे, लेकिन अगर कोई पढ़े तो कोई ह़रज नहीं

📕📚दुर्रे मुख़्तार जिल्द 2 सफह 44
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 455
📕📚अनवारुल ह़दीस सफह 210

  • नमाज़ की पांचवी शर्त

    • निय्यत

"यानि नमाज़ पढ़ने की निय्यत होनी चाहिए"

ह़दीस:- हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया आमाल का दारो मदार निय्यत पर है, और हर शख्स के लिए वोह है जो उसने निय्यत की

📕📚सही बुखारी श़रीफ़ जिल्द 1 सफह 5 ह़दीस 01


मस्अला:- निय्यत के तअल्लुक़ से ज़रूरी मसाइल तहरीर कर रहा हूँ पढ़ें और दोस्तों तक पहुँचायें

मस्अला:- निय्यत दिल के पक्के इरादे को कहते हैं महज़ ( सिर्फ) जानना निय्यत नहीं, जबतक कि इरादा न हो

📕📚तनवीरुल अबसार जिल्द 2 सफह 111
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 492
📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 52
📕📚हमारा इस्लाम हिस्सा 3 सफह 144


मस्अला:- ज़बान से निय्यत करना मुस्तहब है नमाज़ की निय्यत करने के लिए अरबी ज़बान में ज़रूरी नहीं, किसी भी ज़बान (भासा) में निय्यत कर सकता है अलबत्ता अरबी ज़बान में निय्यत करना अफ़ज़ल है

📕📚दुर्रे मुख़्तार जिल्द 2 सफह 113
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 492
📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 53
📕📚हमारा इस्लाम हिस्सा 3 सफह 144


मस्अला:- तकबीरे तह़रीमा यानि अल्लाहु अकबर ) कहते वक़्त निय्यत का मौजूद होना ज़रुरी है

📕📚मुनयतुल मुस्ल्ली सफह 232


मस्अला:- निय्यत में ज़बान का एतबार नहीं बल्कि दिल के पक्के इरादे का ही एतबार है, मसलन ज़ुहर की नमाज़ का इरादा किया और ज़बान से असर का लफ़्ज़ निकल गया, तो भी ज़ुहर की नमाज़ अदा हो जायेगी, 

📕📚दुर्रे मुख़्तार व रद्दुल मुह़तार जिल्द 2 सफह 112


मस्अला:- निय्यत का अदना दर्जा येह है कि अगर उस वक़्त कोई पूछे कि कौन सी नमाज़ पढ़ने जा रहा है,? तो बगैर सोंचे समझे फौरन बता दे, कि फ़लां वक़्त की फ़लां नमाज़ पढ़ने जा रहा हूँ, और अगर सोंच कर बताया तो नमाज़ न हुई

📕📚दुर्रे मुख़्तार जिल्द 2 सफह 113
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 492


मस्अला:- फर्ज़ नमाज़ में फर्ज़ की निय्यत ज़रूरी है,आम तौर से निय्यत कर लेना काफ़ी नहीं

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 493


मस्अला:- फर्ज़ नमाज़ में येह भी ज़रूरी है कि उस ख़ास नमाज़ की निय्यत करे, मसलन आज की ज़ुहर की या फलां वक़्त की फर्ज़ नमाज़ पढ़ता हूँ

📕📚तनवीरुल अबसार जिल्द 2 सफह 117/123


मस्अला:- फर्ज़ नमाज़ में सिर्फ इतनी निय्यत करना कि आज की फर्ज़ नमाज़ पढ़ता हूँ काफी नहीं, बल्कि नमाज़ को मुक़र्रर करना होगा कि आज की ज़ुहर या असर या ममग़रिब की फर्ज़ नमाज़ पढ़ता हूँ

📕📚दुर्रे मुख़्तार जिल्द 2 सफह 123
📕📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 66


मस्अला:- वाजिब नमाज़ में वाजिब की निय्यत करें, और उसे मुक़र्रर भी करें, मसलन नमाज़े ईदुल फित्र, ईदुल अज़हा, वित्र, वगैरह वगैरह

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 498
📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 54


मस्अला:- तरावीह में तरावीह की निय्यत, या क़यामुल लैल की निय्यत करे तरावीह के अलावा बाकी सुन्नतों में भी सुन्नत की निय्यत करें

📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 54


मस्अला:- निय्यत में अफ़ज़ल है कि रकाअत की तादाद कि भी निय्यत कर ले, लेकिन ज़रूरी नहीं, अगर तादादे रकाअत में ग़लती हुई मसलन तीन रकाअत फर्ज़ ज़ुहर की पढ़ता हूँ या चार रकाअत फर्ज़ मग़रिब की निय्यत की और ज़ुहर की चार रकाअतें पढ़ीं और मग़रिब की तीन रकअतें पढ़ीं तो नमाज़ हो गई

📕📚दुर्रे मुख़्तार व रद्दुल मुह़तार जिल्द 2 सफह 120
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 494


मस्अला:- मुक़तदी को इमाम की इक़तेदा की निय्यत भी ज़रूरी है

📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 54


मस्अला:----मुक़तदी ने इक़तेदा करने की निय्यत से येह निय्यत की कि जो इमाम की नमाज़ है वही मेरी नमाज़, तो जायज़ है,


📕📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 67


मस्अला:---- इमाम की इक़तेदा की निय्यत में  येह मालूम होना ज़रूरी नहीं कि इमाम कौन है, ज़ैद है या उमर है, सिर्फ येह निय्यत काफी है कि इस इमाम के पीछे


📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 497


मस्अला:---- अगर मुक़तदी ने यह निय्यत की कि ज़ैद की इक़तेदा करता हूँ, और बाद में मालूम हुआ कि इमाम ज़ैद नहीं बल्कि उमर था, तो इक़तेदा सही नहीं,

📕📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1 हिस्सा 67


मस्अला:- इमाम को मुक़तदी की इमामत करने की निय्यत करना ज़रुरी नहीं, यहाँ तक कि अगर इमाम ने येह इरादा किया कि मैं फ्लां शख्स का इमाम नहीं हूँ और उस शख्स ने इस इमाम की इक़तेदा की तो नमाज़ हो जायेगी, 

📕📚दुर्रे मुख़्तार जिल्द 2 सफह 121
📕📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 66


मस्अला:- अगर किसी की फर्ज़ नमाज़ क़ज़ा हो गई हो, और वोह नमाज़ की क़ज़ा पढ़ता हो तो क़ज़ा नमाज़ पढ़ते वक़्त दिन और नमाज़ का तअय्युन करना जरूरी है, मसलन फ्लां दिन की फ्लां नमाज़ की क़ज़ा, इस तरह निय्यत होना जरूरी है, अगर मुतलक़न किसी वक़्त की क़ज़ा नमाज़ की निय्यत की और दिन का तअय्युन न किया या सिर्फ मुतलक़न क़ज़ा नमाज़ की निय्यत की तो काफी नहीं,
📕📚दुर्रे मुख़्तार जिल्द 2 सफह 119
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 494


मस्अला:---- अगर किसी के ज़िम्मे बहुत सी नमाज़ें बाक़ी हैं और दिन तारीख़ भी याद न हो और उन नमाज़ों की क़ज़ा पढ़नी है तो उसके लिए निय्यत का आसान तरीक़ा येह है कि सब में पहली या सब में पिछली फ्लां नमाज़ जो मेरे ज़िम्मे है, उसकी क़ज़ा पढ़ता हूँ

📕📚दुर्रे मुख़्तार जिल्द 2 सफह 119
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 494
📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 54

  • नमाज़ की छट्टी शर्त

    • तकबीरे तह़रीमा

"यानि अल्लाहु अकबर कहकर नमाज़ शुरू करना"

तकबीरे तह़रीमा शराइते नमाज़ में और फराइज़े नमाज़ दोनों में शुमार होता है इंशाअल्लाह तकबीरे तह़रीमा के तमाम मसाइल और शरई अह़काम, फराइज़े नमाज़ की पोस्ट में आपकी ख़िदमत में पेश करुंगा, बस मुझ फ़क़ीर को भी अपनी दुआओं में याद रखा करें


🌹والله تعالیٰ اعلم بالصواب🌹

हिस्सा-07 to be continued....                                                                    हिस्सा-05

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"235 वाँ उर्से जमाली मुबारक हो",1,आसमानी किताबें (Aasmani Kitabe),10,आसमानी किताबें 4 Aasmani Kitabe,1,इस्तेखारये ग़ौसिया,1,इस्लामिक महीना,7,एतेक़ाफ,1,क्‍या नमाज़ में कुरआन शरीफ देखकर किराअत kiraat करने से नमाज टूट जाएगी?,1,ज़कात zakat,1,नमाज़े तरावीह़,1,पांच वक़्त की नमाज़ जमाअत से पढ़ने की फ़ज़ीलत,1,फ़र्ज़,1,मुस्‍तहब,1,रमज़ान मुबारक,2,रमज़ान मुबारक RAMADAN MUBARAK,2,रमज़ानुल मुबारक,1,व मुबाह का ताअरूफ,1,वज़ाइफे ग़ौसिया,1,वाजिब,2,वित्र_किसे_कहते_हैं?,1,शबे क़द्र,1,सदक़ये फित्र,1,सलातुल ग़ौसिया,1,सुन्नत,2,abdul qadir jilani ghous pak ko mohiyuddin kyo kehte hai,1,abdul qadir jilani ghous pak kon hai,1,allah wala,8,attahiyat-Tashahhud,1,Deni Malumat in Hindi,9,Does namaz mean prayer?,1,Fazilat,1,full namaz,4,haraam-kise-kehte-hai-or-namaz-rakat,1,Hiqayat,1,history,1,huzur abdul qadir jilani ghous pak k naam,1,huzur abdul qadir jilani ghous pak ka waqia,1,iblees,1,Is Shab-e-Barat 2 days?,1,islam symbol,4,islami sawal jawab,1,Islamic Haq Baat,2,jab gunah ho jaye to kya kare,1,kiraat-rukoo-sajda-meaning,1,Kya F.D. or Plicy per zakat farz hai,1,Masail e Zakat,1,Mustafa ka gharana salamat rahe,1,Naat Lyrics,3,namaz,2,namaz k faraiz,1,namaz k faraiz aur wajibat,1,namaz kayam karo,1,namaz ki shart o ka bayan,1,namaz ki sunnate wajibat mustahab,1,namaz ko jamat se padhna or 5 waqt ki namaj ka bayan (what is namaz?) Part-11,1,namaz me hath kaha bandhna chahiye,1,namaz nahi padhne walo ka anzam,1,Orto ke zever per zakat ka sharai ahkam,1,RAMADAN MUBARAK,2,ramzan mubarak,1,sadkaye fitra,1,shabe barat ki duwa or namaj ka tarika,1,takbire tehrima,1,Urs e jamali,1,wajib meaning,2,What do we pray in namaz?,1,What does namaz mean?,1,what is farz,2,What is namaz called in English?,1,What should we do during Shab-e-Barat?,1,what-is-qaida-e-akhirah,1,Which night is Shab-e-Barat?,1,zakat kis per farz hai,1,
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