क़िराअत kiraat, रुकू rukoo, सजदा sajda meaning
namaz k faraiz
नमाज़ के फर्ज़ों का बयान
-नमाज़ का तीसरा फर्ज़ क़िराअत यानि नमाज़ में क़ुरआन पढ़ना
नमाज़ की हालत में कुरआन पढना किराअत kiraat कहा जाता हैा किसी भी नमाज में किराअत kiraat करना फर्ज हैा चाहे वोह नमाज अकेले में पढते हो या जमाअत के साथ पढते हैा हां मगर जमाअत में किराअत kiraat , आवाज के साथ पढी जाती है, और अकेले में किराअत kiraat, अपनी आवाज खुद सेन सके एसी आवाज में पढी जाती हैा
क्या नमाज़ में कुरआन शरीफ देखकर किराअत kiraat करने से नमाज टूट जाएगी?
मस्अला:- नमाज़ में क़ुरआन शरीफ़ देखकर क़िराअत kiraat करने से नमाज़ टूट जाएगी, यूंही अगर मेह़राब वगैरह में लिखा हुआ है तो उसे देखकर पढ़ने से भी नमाज़ टूट जाएगी
📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 70
मस्अला:- अगर "सना" और अउज़'बिल्लाह और बिस्मिल्लाह शरीफ़, पढ़ना भूल गया और क़िराअत kiraat शुरू कर दी तो अब "सना" और अउज़'बिल्लाह और बिस्मिल्लाह न पढ़ें इसी तरह "सना" पढ़ना भूल गया और अउज़'बिल्लाह पढ़ना शुरू कर दिया तो अब "सना" न पढ़ें
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1, हिस्सा 3, सफह 524
खुलासा येह है कि निय्यत बांधने के बाद सबसे पहले "सना" पढ़ें फिर अउज़'बिल्लाह और बिस्मिल्लाह शरीफ़ पढ़ कर क़िराअत kiraatशुरू करें, बहुत सारे लोग पहले अउज़'बिल्लाह और बिस्मिल्लाह पढ़ते हैं फिर "सना" पढ़ते हैं येह तरीक़ा ग़लत है, सही यही है कि "सना" से पहले कुछ नहीं पढ़ना है "सना" पढ़ने के बाद अउज़'बिल्लाह और बिस्मिल्लाह शरीफ़ पढ़ना है फिर क़िराअत शुरू करें
क्या इमाम बुलंद आवाज से किराअत शरू कर दे तो, मुक्तदी का ''सना'' पढना जरूरी है?
मस्अला:- इमाम ने बुलंद आवाज़ से क़िराअत kiraat शुरू कर दी तो अब मुक़्तदी "सना" न पढ़े और अगर क़िराअत kiraatआहिस्ता पढ़ता हो जैसे ज़ुहर असर की नमाज़ में क़िराअत kiraat आहिस्ता होती है तो इस में ""सना ""पढ़ सकता है
📕📚रद्दुल मुह़तार जिल्द 2, सफह 232
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1, हिस्सा 3, सफह 523
मस्अला:- क़िराअत खत्म होते ही फौरन रुकूअ करना वाजिब है
📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 70
नमाज़ में सुरे ए फातिहा के बाद भूलकर सूरत मिलाना भूल गये तो?
मस्अला:- नमाज़ में अल्ह़म्दु शरीफ़ के बाद सहवन यानि भूलकर सूरत मिलाना भूल गया, तो अगर रुकूअ में याद आ जाए तो फौरन खड़ा होकर सूरत पढ़े फिर दोबारा रुकुअ करे और नमाज़ मुकम्मल कर के आखि़र में सजद ए सहू कर लें नमाज़ हो जायेगी, और अगर सजदे में याद आए तो सिर्फ आखि़र में सजद ए सहू कर ले नमाज़ हो जाएगी और नमाज दोबारा पढ़ने की ज़रूरत नहीं
📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 639
जुहर और असर की नमाज़ो में बुलंद आवाज के साथ किराअत कर दी तो?
मस्अला:- अगर सिर्री नमाज़ में यानि जिस नमाज़ में आहिस्ता आवाज़ में क़िराअत kiraat होती है जैसे ज़ुहर और असर नमाज़ में इमाम ने भूलकर एक आयत बुलंद आवाज़ से क़िराअत kiraat कर दी तो सजद ए सहू वाजिब हो गया, अगर सजद ए सहू न किया या जानबूझकर बुलंद आवाज़ से पढ़ा तो नमाज़ का दूबारा पढ़ना वाजिब है
📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3, सफह 93
सूर ए फातिहा के बाद पढी जाने वाली सूरत से बिस्मिल्लाह पढना कैसा है?
मस्अला:- सूरह फातिहा के शुरू में बिस्मिल्लाह पढ़ना सुन्नत है, और सूर ए फातिहा के बाद अगर कोई सूरत या किसी सूरत की इब्तिदाई आयतें पढ़ें तो उनसे पहले तस्मिया यानि बिस्मिल्लाह पढ़ना मुस्तहब है यानि पढ़े तो अच्छा है और अगर न पढ़े तो हर्ज नहीं
📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 67
मस्अला:- नमाज़ की हर रकाअत में इमाम और अकेले नमाज़ पढ़ने वाले को सूर ए फातिहा के बाद "आमीन" कहना सुन्नत है
📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 72
फर्ज नमाज की आखिरी दो रकाअतो में भुलकर सुरे ए फातिका के बाद सूरत पढी तो?
मस्अला:- अगर किसी ने फर्ज़ नमाज़ की आखिरी दो रकाअतों में भूलकर या जानबूझकर अल्ह़म्दु शरीफ़ के बाद कोई एक सूरत मिलाई या कुछ आयतें पढ़ी तो कोई ह़रज नहीं ,नमाज़ में कुछ ख़राबी न आयी और सजद ए सहू करने की भी ज़रूरत नहीं
📕📚अह़कामे शरीयत सफह 110
मस्अला:- अउज़'बिल्लाह सिर्फ पहली रकाअत में ,और हर रकाअत के शुरू में बिस्मिल्लाह शरीफ़ पढ़ना मसनून है
📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 72
क्या नमाज में कयाम के सिवा बिस्मिल्लाह पढ सकते है?
मस्अला:- क़याम के सिवा रुकूअ सूजूद और क़ुऊद यानि क़ाईदा में किसी जगह बिस्मिल्लाह शरीफ़ पढ़ना जायज़ नहीं कि येह क़ुरआन की आयत है और नमाज़ में क़याम के सिवा और जगह क़ुरआन की आयत पढ़ना मना है, अगर पढ़ी तो सजद ए सहू वाजिब हो गया
📕📚अलमलफ़ूज़ हिस्सा 3,सफह 43
इतना ख़्याल रखें कि नमाज़ में सिर्फ सूर ए फातिहा या कोई सूरत या आयत पढ़ने के शुरू में ही बिस्मिल्लाह शरीफ़ पढ़नी है बाकी रुकुअ सजदा या जब अत्तहियात पढ़ने बैठते हैं कहीं भी बिस्मिल्लाह पढ़ना जायज़ नहीं,
ज़बान से जिस सूरत का एक लफ्ज़ निकल जाए उसी का पढ़ना जरूरी है?
मस्अला:- ज़बान से जिस सूरत का एक लफ्ज़ निकल जाए उसी का पढ़ना लाज़िम है, ख्वाह वोह सूरत पहली या दूसरी रकाअत में पढ़ चुका हो या न पढ़ा हो हर हाल में उसी सूरत को पढ़ना लाजि़म है
📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3,सफह 135-136
नमाज़ में बिस्मिल्लाह शरीफ़ बुलंद आवाज़ से पढ़ना कैसा है?
मस्अला:- नमाज़ में बिस्मिल्लाह शरीफ़ बुलंद आवाज़ से पढ़ना मना है, सिर्फ तरावीह़ में जब क़ुरआन मजीद मुकम्मल किया जाए तो सूर ए बक़रा से सूर ए नास़ तक किसी एक सूरत पर बिस्मिल्लाह शरीफ़ बुलंद आवाज़ से पढ़ ली जाए कि खत्म पूरा हो, और हर सूरह पर बुलंद आवाज़ से पढ़ना मना है मज़हबे ह़नफ़ी के खिलाफ़ है
📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3, सफह 484
नमाज़ का चौथा फर्ज़ यानि रुकूअ
रुकूअ का अदना दर्जा ये है कि इतना झुके कि हाथ बढ़ाएं तो हाथ घुटने को पहुंच जाए, और रुकूअ का कामिल दर्जा यह है कि पीठ सीधी बिछा दें, रुकूअ हमारे नबी हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और आपकी उम्मते मुस्लिमा के ख़साइस से है, रुकूअ शबे मेअराज के बाद अता हुआ, बल्कि मेराज की सुबह को जो पहली नमाज़े जोहर पढ़ी गई तब तक रुकूअ ना था, उसके बाद असर की नमाज़ में इसका हुक्म आया और हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और सहाब ए किराम ने अदा फरमाया अगली शरीयतों में से किसी भी शरीअ़त में रुकूअ न था
📕📚 फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 2 सफह 182
मस्अला:- नमाज़ की हर रकाअत में सिर्फ एक ही रुकूअ करें, अगर भूल कर दो मरतबा रुकूअ कर लिया तो सजद ए सहू वाजिब हो गया
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1, हिस्सा 3, सफह,519
मस्अला:- रुकूअ में कम से कम 1 मर्तबा "सुब्हानअल्लाह " कहने में जितना वक़्त लगता है इतनी देर ठहरना वाजिब है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 518
मस्अला:- रुकूअ में 3 मर्तबा ''सुब्हाना रब्बियल अज़ीम" कहना सुन्नत है, 3 मर्तबा से कम कहने में सुन्नत अदा न होगी और 5 मर्तबा कहना मुस्तहब है
📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 73
रुकूअ में "सुब्हाना रब्बियल अज़ीम" पढते वक्त क्या सावधानी बरते?
मस्अला:- रुकूअ में "सुब्हाना रब्बियल अज़ीम"( سبحان ربی العظیم) कहते वक़्त "अज़ीम" (عظیم) की (ज़ो ظ) को खूब एहतियात यानि सावधानी से अदा करें, कुछ लोग ज़ो (ظ) के बजाय जीम (ج) अदा करते हैं, यानी अज़ीम (عظیم) के बजाय अजीम (عجیم) पढ़ते हैं और येह सख़्त गुनाह है, क्योंकि अज़ीम (عظیم) और अजीम (عجیم) के मानों में ज़मीन आसमान जितना फर्क़ है इस फर्क को समझें,
सुब्हान'रब्बियल'अज़ीम" (سبحان ربی العظیم) का माना यह है कि पाक है मेरा रब जो बुजुर्ग (महान) अज़मत वाला है
- अज़ीम (عظیم) का माना :- बड़ा- बुजुर्ग - अज़मत वाला, वगैरह होता है
- अजीम (عجیم)के माना:- गूंगा, जो बोल न सके होते हैं
लिहाज़ा अल्लाह तआला के लिए अजीम (عجیم) लफ्ज़ की निस्बत करना सख़्त मना है
📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 74
मस्अला:- अगर कोई शख़्स हर्फे ज़ोय (ظ) अदा न कर सके वोह "सुब्हान'रब्बियल'अज़ीम"( سبحان ربی العظیم) की जगह पर सुब्हान रब्बियल करीम कहे
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 525
मर्द व औरत के लिए रूकूअ का हुक्म
मस्अला:--- रुकूअ में जाने के लिए "अल्लाहु अकबर" कहना सुन्नत है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1,हिस्सा 3 सफह 525
मस्अला:--- मर्दों के लिए सुन्नत है कि रुकूअ में घुटनों को हाथों से पकड़े और हाथ की उंगलियों का खूब खुली रखें
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1,हिस्सा 3 सफह 525
मस्अला:- औरतों के लिए सुन्नत येह है कि रुकूअ में घुटनों को हाथ से न पकड़ें बल्कि घुटनों पर हाथ रखें और हाथ की उंगलियों को ज़्यादा कुशादा यानि चौड़ी न करें
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 525
मस्अला:- मर्दों के लिए सुन्नत है कि हालते रुकूअ में टांगें सीधी रखें,अक्सर लोग रुकूअ में टांगे कमान की तरह टेढ़ी कर देते हैं येह मकरुह है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 525
मस्अला:- मर्दों के लिए सुन्नत है कि रुकूअ में पीठ खूब बिछी हुई रखें यहां तक कि अगर पानी का प्याला पीठ पर रख दिया जाए तो ठहर जाए यानि रुका रहे,
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 526
रूकु में पीठी सीधी रखना क्या जरूरी है?
अबू दाऊद, तिर्मीज़ी, नसाई, इब्ने माजा, और दारमी, ने ह़ज़रते अबू मस'ऊद रज़ियल्लाहु तआला अन्हू से रिवायत की, कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया है कि
ह़दीस:- उस शख्स़ की नमाज़ ना काफी है यानि मुकम्मल नहीं जो रुकूअ वोह सुजूद में पीठ सीधी ना करे
📕📚माख़ूज़ बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 526
मस्अला:- मर्दों के लिए सुन्नत है कि रुकूअ में "सर" न झुकायें और न ऊंचा रखें बल्कि पीठ के बराबर हो
📕📚हिदाया जिल्द 1 सफह 50
मस्अला:- औरतों के लिए सुन्नत है कि रुकूअ में थोड़ा झुके यानि सिर्फ इतना झुके कि हाथ घुटनों तक पहुंच जाए और पीठ भी सीधी न करें और घुटनों पर ज़ोर न दें बल्कि महज़ हाथ रख दें और हाथों की उंगलियां मिली हुई रखें और पांव भी झुके हुए रखें मर्दों की तरह टांगे खूब सीधी न करें
📕📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 74
मस्अला:- रुकूअ से उठते वक़्त हाथ न बांधना बल्कि लटके हुए छोड़ देना सुन्नत है
📕📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 73
रुकू में क्या पढे?
मस्अला:- रुकूअ से उठते वक़्त इमाम का समि'अल्लाहु'लिमन'हमिदह"( سمع الله لمن حمدہ) कहना और मुक़तदी का "अल्ला'हुम्मा'रब्बना'व'लकल'हम्द" اللھم ربنا ولک الحمد ) कहना सुन्नत है, और मुन्फ़रिद यानि अकेले नमाज़ पढ़ने वाले को दोनों कहना सुन्नत है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 527
मस्अला:- मुन्फ़रिद यानि अकेले नमाज़ पढ़ने वाला"समी'अल्लाहु'लिमन'हमिदह" سمع الله لمن حمدہ कहता हुआ रुकूअ से उठे और सीधा खड़ा होकर "अल्ला'हुम्मा'रब्बना'व'लकल'हम्द اللھم ربّنا ولک الحمد "कहें
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 528
मस्अला:-समि'अल्लाहु'लिमन'ह़मिदह" سمع الله لمن حمدہ की "हे"(ہ) को साकिन पढ़ें यानि "हमिदहू" न पढ़ें बल्कि हमिदह पढ़ें,और दाल को भी खींचकर ना बढ़ाएं इस तरह़ पढ़ना सुन्नत है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 527
मस्अला:- सिर्फ रब्बना लकल ह़म्द- ربنا لک الحمد कहने से भी सुन्नत अदा हो जाएगी मगर वाव (و) मिलाना बेहतर है यानि रब्बना व लकल ह़म्द, ربنا ولک الحمد कहना और शुरू में "अल्ला'हुम्मा" (اللھم) कहना ज़्यादा बेहतर है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह, 527
रूकू में नजर कहा रखे?
बुखारी और मुस्लिम ने ह़ज़रते अबू ह़ुरैरह रज़ियल्लाहु तआला अन्हू से रिवायत है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया
ह़दीस:- जब इमाम समिअल्लाहु लिमन हमिदह कहे तो अल्ला'हुम्मा रब्बना व लकल ह़म्द कहो कि जिसका क़ौल फरिशतों के क़ौल के मुवाफ़िक़ हुआ,उसके अगले गुनाहों की मग़फिरत हो जाएगी
📕📚सही बुखारी शरीफ़ जिल्द 1 सफह 279 ह़दीस 796
मस्अला:- रुकूअ की ह़ालत में पुश्ते क़दम की तरफ़ नज़र करना मुस्तहब है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 538
मस्अला:- इमाम ने रुकूअ से खड़े होते वक़्त भूलकर "समी'अल्लाहु लिमन'हमिदह, की जगह "अल्लाहु अकबर" कहा तो नमाज़ हो जाएगी सजद ए सहू की भी ज़रुरत नहीं
📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3, सफह 647
मस्अला:- सुन्नत येह है कि समि'अल्लाहु'लिमन'हमिदह" की सीन" (س) को रुकूअ से सर उठाने के साथ कहें और "हमिदह" حمدہ की "ह" (ہ) को सीधा खड़ा होने के साथ खत्म करें
📕📕फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3, सफह 65
रूकू में कितनी देर रहना वाजिब है?
मस्अला:- रुकूअ से फारिग़ होकर सजदा में जाने से पहले कम से कम एक मर्तबा "सुब्हानअल्लाह" कहने में जितना वक़्त लगता है उतनी देर खड़ा रहना वाजिब है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 518
बहुत सारे लोग रुकूअ से थोड़ा सर उठाते हैं और सजदे में चले जाते हैं उनकी नमाज़ नहीं होती, क्योंकि रुकूअ से सजदे में जाने से पहले सीधा खड़ा होना वाजिब है
मस्अला:- अगर किसी ने भूलकर रुकूअ में "सुब्हाना' रब्बियल आला" या सजदे में "सुब्हाना रब्बियल अज़ीम" पढ़ा तो सजद ए सहू की ज़रूरत नहीं नमाज़ हो जाएगी
📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3, सफह 647
नमाज़ का पांचवा फर्ज़ यानि सजदा
सजदे में जिस्म के आठ आ'ज़ा ज़मीन से लगना चाहिए वोह आठ आज़ा येह हैं
- नं.01:- पेशानी
- नं.02:- नाक
- नं.03/04:-दोनों हाथों की हथेलियां
- नं.05/06:- दोनों घुटने
- नं.07/08:- दोनों पांव यानि पैरों की उंगलियां
📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 76
कुल आठ आज़ा ए जिस्म ज़मीन से सजदे की ह़ालत में लगाना चाहिए, बंदा सजदे की ह़ालत में रब से बहुत क़रीब होता है इमाम मुस्लिम ने ह़ज़रते अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु तआला अन्हू से रिवायत की है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया है कि
बंदे को खुदा से सबसे ज़्यादा क़ुर्ब कब होता है?
ह़दीस:- बंदे को खुदा से सबसे ज़्यादा क़ुर्ब, यानि नज़दीकी सजदे की ह़ालत में होती है
📕📚सहीह मुस्लिम शरीफ़ सफह 250/ ह़दीस 482
मस्अला:- अल्लाह तआला के सिवा किसी को भी सजदा करना जायज़ नहीं, अल्लाह के अलावा किसी को इबादत की नियत से सजदा करना शिर्क है, और ताज़ीम का सजदा करना ह़राम है
📕📚अज़्ज़ुबदतुज्ज़कीया ले तह़रीमे सुजूदित तहीया/ इमाम अह़मद रज़ा बरेलवी
सजदे में पॉव की अंगुलिया कहा रखे?
मस्अला:- पांव की एक उंगली का पेट ज़मीन से लगना फर्ज़ है, अगर किसी ने इस तरह़ सजदा किया कि दोनों पांव ज़मीन से उठे रहे तो नमाज़ नहीं होगी बल्कि अगर सिर्फ उंगलियों की नोक ज़मीन से लगी तो भी नमाज़ नहीं होगी इसका ख़ास ख़्याल रखें
📕📚दुर्रे मुख़्तार जिल्द 2 सफह 251/249/167
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 513
देखा गया है कि इस मस्अले से काफ़ी लोग गाफि़ल हैं वोह पैरों की उंगलियों के सिर्फ सिरे ज़मीन से लग जाने को सजदा समझते हैं, और कुछ का तो सिर्फ अंगूठे का सिरा ही ज़मीन से लगता है और बाकी उंगलियां ज़मीन को छूती भी नहीं इस सूरत में न सजदा होता है और न नमाज़, सजदे में पैर की उंगलियों के सिर्फ सिरे नहीं बल्कि उंगलियों पर ज़ोर देकर उसे यानि मोड़कर क़िब्ला की तरफ़ उंगलियों का पेट ज़मीन से लगाना चाहिए सजदे में कम से कम एक एक उंगली का पेट ज़मीन से लगाना फर्ज़ है और पांव की अक्सर उंगलियों का पेट ज़मीन पर जमा होना वाजिब है
📕📚ग़लत फेहमियां और उनकी इस्लाह सफह 29
मस्अला:- सजदा में दोनों पांव की दसों उंगलियों के पेट ज़मीन से लगना सुन्नत है और हर पांव की तीन तीन उंगलियां ज़मीन पर लगना वाजिब है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 530"
मस्अला:- सजदा में दसों उंगलियों का क़िब्ला रु यानि क़िब्ले की तरफ़ होना भी सुन्नत है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 530
मस्अला:- हर रकाअत में 2 मर्तबा सजदा करना फर्ज़ है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 513
मस्अला:- एक सजदा के बाद फौरन दूसरा सजदा करना वाजिब है यानि दोनों सजदों के दरमियान कोई रुक्न फासिल न हो
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 518
मस्अला:- एक रकाअत में दो ही सजदा करना और दो से ज़्यादा सजदा न करना वाजिब है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 519
सजदे मे क्या पढे?
मस्अला:- सजदा में कम से कम 1 मर्तबा "सुब्हान अल्लाह" कहने में जितना वक़्त लगता है इतनी देर ठहरना वाजिब है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 518
मस्अला:- सजदे में तीन मर्तबा "सुब्हाना रब्बियल आला" कहना सुन्नत है और तीन मर्तबा से कम कहने में सुन्नता अदा न होगी और 5 मर्तबा कहना मुस्तहब है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 528
मस्अला:- दोनों सजदों के दरमियान जलसा करना यानि बैठना वाजिब है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 518
मस्अला:- जलसा में यानि दोनों सजदों के दरमियान में कम से कम 1 मर्तबा "सुब्हान अल्लाह" कहने में जितना वक़्त लगता है इतनी देर ठहरना वाजिब है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 518
बहुत सारे लोग एक सजदे से थोड़ा सा सर उठायेंगे और फिर दूसरे सजदे में चले जाते हैं वोह लोग इस बात का ख़ास ख्याल रखें कि उनकी नमाज़ नहीं होती है क्योंकि दोनों सजदों के दरमियान एक तस्बीह की मिक़दार सीधा बैठना वाजिब है जैसा कि ऊपर आप ने पढ़ा
मस्अला:- सजदा में जाने के लिए और सजदा से उठने के लिए "अल्लाहु अकबर" कहना सुन्नत है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 528
मस्अला:- दोनों सजदों के दरमियान यानि जलसा में "अल्लाहुम्मग़फिरली"( اللھم اغفرلی، )कहना इमाम और मुक़तदी दोनों के लिए मुस्तहब है
📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 62
मस्अला:---- मर्द के लिए जलसा यानि नमाज़ में बैठने का सुन्नत तरीक़ा येह है कि, बायां क़दम बिछाकर उस पर बैठे और दायां पांव खड़ा रखें और पांव की उंगलियाँ क़िब्ला रु यानि क़िब्ला की तरफ़ हो,और दोनों हथेलियों को रानों पर रखे और उंगलियों को अपनी हालत (Normal position) पर छोड़ दें यानि हाथ की उंगलियां न खुली हुई रखे और न मिली हुई रखें और घुटनों को उंगलियों से न पकड़े
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1,हिस्सा 3,सफह 530
मस्अला:--- सजदा में दोनों हाथों की उंगलियां मिली हुई और क़िब्ला रू यानि क़िब्ला की तरफ़ रखना सुन्नत है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1,हिस्सा 3,सफह 530
मस्अला:--- औरतों के लिए जलसा यानि बैठने का सुन्नत तरीक़ा येह है कि दोनों पांव दाईं तरफ़ निकाल दे और बाईं सुर्रीन (चूतड़) ( Buttock) के बल ज़मीन पर बैठे
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1,हिस्सा 3 ,सफह 530
मस्अला:---- सजदा में जाते वक़्त ज़मीन पर पहले घुटने रखना, फिर हाथ, फिर नाक,और फिर पेशानी रखना सुन्नत तरीक़ा है, और सजदा से उठते वक़्त उसके बरअक्स यानि उलटा करना यानि पहले पेशानी उठाना, फिर नाक, फिर हाथ,और आखिर में घुटने उठाना सुन्नत तरीक़ा है
📕📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1,सफह 75
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1,हिस्सा 3,सफह 528
मस्अला:--- मर्द के लिए सुन्नत है कि सजदा में बाजू को करवटों से जुदा रखे, और पेट रानों से जुदा रखें, सजदे में कलाइयां और कोहनिया ज़मीन पर न बिछाए बल्कि हथेलियों को ज़मीन पर रखकर कोहनियां ऊपर उठाए रखें
📕📚 हिदाया जिल्द 1 सफह 51
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1,हिस्सा 3,सफह 529
मस्अला:--- औरत के लिए सुन्नत येह है कि वह सिमट कर सजदा करें, यानि बाज़ू को करवट से, पेट को रान से, रान को पिंडलियों से, और पिंडलियां ज़मीन से मिला दे, कोहनियां और कलाइयां ज़मीन पर बिछा दें
📕📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1,सफह 75
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1,हिस्सा 3,सफह 529
मस्अला:--- दूसरी रकाअत के लिए सजदा से उठते वक़्त पंजों के बल घुटनों पर हाथ रख कर खड़ा होना सुन्नत है, लेकिन अगर कोई कमज़ोरी वगैरह कोई परेशानी की वजह से ज़मीन पर हाथ रख कर उठे तो ह़र्ज नहीं
📕📚दुर्रे मुख़्तार जिल्द 2,सफह 262
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1,हिस्सा 3,सफह 530
मस्अला:--- सजदा में नज़र नाक की तरफ़ करना मुस्तहब है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1,हिस्सा 3,सफह 538
मस्अला:--- अगर सजदा में पेशानी खूब न दबी तो नमाज़ न हुई और नाक हड्डी तक न दबी बल्कि नाक ज़मीन पर सिर्फ मस (Touch) हुई तो नमाज़ मकरूहे तैह़रीमी वाजिबुल इयादा यानि दूबारा नमाज़ पढ़ना वाजिब है
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1,हिस्सा 3,सफह 514
मस्अला:--- अगर किसी नरम चीज़ मसलन घास रुई (Cotton)कालीन वगैरह पर सजदा किया ,तो अगर पेशानी जम (set ) गई यानि इतनी दबी कि अब दबाने से न दबे तो जायज़ है वरना नहीं
📕📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1,सफह 70
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1,हिस्सा 3,सफह 514
मस्अला:--- कमानीदार स्प्रिंग वाले गद्दे (Cushion) पर पेशानी खूब नहीं दबती लिहाज़ा उस पर नमाज़ न होगी
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1,हिस्सा 3,सफह 514
मस्अला:--- गुलूबंद, पगड़ी, टोपी, या रुमाल से पेशानी छुपी हुई है तो सजदा दुरुस्त है लेकिन नमाज़ मकरूह होगी
📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3,सफह 419
मस्अला:--- अगर ऐसी जगह सजदा किया कि सजदा की जगह क़दम की जगह से 12 अंगुल से ज़्यादा ऊंची है तो सजदा न हुआ
📕📚दुर्रे मुख़्तार जिल्द 2,सफह 257
मस्अला:--- सजदा ज़मीन पर बिला हाइल करना मुस्तहब है यानि मुसल्ला या कपड़ा पर नमाज़ पढ़ने से ज़मीन पर नमाज़ पढ़ना मुस्तहब और अफ़ज़ल है
📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 1,सफह 203
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1,हिस्सा 3,सफह 538
मस्अला:--- अगर किसी मजबूरी की वजह से पेशानी ज़मीन पर नहीं लगा सकता तो सिर्फ नाक पर सजदा करें लेकिन इस हालत में सिर्फ नाक की नोक ज़मीन से मस करना काफ़ी नहीं बल्कि नाक की हड्डी का ज़मीन पर लगना ज़रूरी है
📕📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1,सफह 70
📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1,हिस्सा 3,सफह 513
मस्अला:--- किसी ने दो के बजाय तीन सजदा कर लिया तो अगर सलाम फे़रने से पहले याद आ जाए तो सजदा ए सहू करने से नमाज़ हो जायेगी,
📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3, सफह 646
मस्अला:--- और अगर सलाम फे़रने के बाद याद आया कि तीन सजदा कर लिया है तो नमाज़ का इयादा करें यानि दूबारा पढ़े
📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3,सफह 646
मस्अला:--- सजदा में जाते वक़्त दाहिनी तरफ़ ज़ोर देना और सजदा से उठते वक़्त बाएं बाजू पर ज़ोर देना मुस्तहब है
📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3,सफह 163
🌹والله تعالیٰ اعلم بالصواب🌹
हिस्सा-09 to be continued.... हिस्सा-07
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