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abdul qadir jilani सय्यिद अब्दुल क़ादिर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हिस्सा-01

  हिस्सा-01 पीरे ला सानी, महबूबे सुब्ह़ानी, सय्यिदना, शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी बगदादी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु _____________ नाम मुबारक:--- स...

  हिस्सा-01

पीरे ला सानी, महबूबे सुब्ह़ानी, सय्यिदना, शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी बगदादी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु

allah wala

_____________

नाम मुबारक:--- सय्यिद अब्दुल क़ादिर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु 


कुन्नियत:--- अबू मुहम्मद


लक़ब:---  मोहिउद्दीन (दीन को ज़िंदा करने वाला) ग़ौसे आज़म/ महबूबे सुब्हानी/ पीराने पीर तस्तगीर"


मक़ामे विलादत :--- ईरान के एक शहर गीलान ( जीलान) नाम है


वालिद का नाम:--- अबु सालेह मूसा (जंगी दोस्त)


वालिदा का नाम:---  उम्मुल खैर फातिमा


विलादत:--- 01 रमज़ानुल मुबारक,470 हिजरी


विसाल:---  11/4/561 हिजरी,


मज़ार शरीफ़:--- बग़दाद


उम्र शरीफ़:--- 91 साल


बीवियां :--- 04 


औलाद:--- 49 


मज़हब:--- हम्बली

हुज़ूर गौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु पैदाइशी वली हैं, और आप हसनी हुसैनी सय्यिद हैं, आपके बदन मुबारक पर कभी मख्खी नहीं बैठी,और आपने एक ही वक़्त में 70 लोगों के यहाँ  इफ्तार किया, आपकी तक़रीर में साठ- साठ, सत्तर - सत्तर, हज़ार की भीड़ (मजमा) हुआ करता था, आप की विलादत जब हुई उस वक़्त आप की वालिदा ( माँ )की उम्र शरीफ़ 60 साल थी, तमाम उम्मत का इज्माअ है कि आप ग़ौसे आज़म हैं,और  हुज़ूर गौसे आज़म फरमाते हैं कि मेरी नज़र हमेशा लौह़े महफूज़ पर लगी रहती है,आपने इरशाद फरमाया कि मुरीद को हर हाल में अपने पीर की तरफ़ ही रुजू करना चाहिए ,अगरचेह उसका पीर करामत से खाली हुआ तो क्या हुआ, मैं तो खाली नहीं हूँ, उसे मैं अता करुंगा, आप से बे शुमार करामतें ज़ाहिर हैं, चंद  करामतें आप की ख़िदमत में पेश करता हूँ, पढ़ें और अपने ईमान को ताज़ा करें


📕 तारीखुल औलिया,सफह 24-54

📕 अलमलफूज़,हिस्सा 3,सफह 56

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,पेज 129


नं-01:--- जिस साल हुजूर गौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की विलादत हुई उस साल पूरे जीलान में 1100  बच्चे पैदा हुए और सब लड़के ही थे, और सब के सब अल्लाह के वली हुई


📕📚 हमारे गौसे आज़म सफह 59


नं- 02:--- अभी आप का बचपना था यानि कि जब आपकी दूध पीने की उम्र शरीफ़ थी, तो अक्सर आप दाई की गोद से गायब हो जाते, और फिर कुछ देर बाद आ भी जाया करते,जब आप कुछ बड़े हुए तो एक दिन आपकी दाई ने पूछा कि ऐ बेटा अब्दुल क़ादिर ये बताओ कि जब तुम छोटे थे तो अक्सर मेरी गोद से गायब हो जाते थे, आखिर तुम जाते कहां थे,तो हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि दाई मां, मैं आपसे खेलने की गर्ज़ से सूरज के पीछे छिप जाया करता था, जब आप मुझे ढूंढती और ना पातीं तो फिर मैं खुद ही आ जाया करता,तो वो फरमातीं हैं कि क्या अब भी आपका वही हाल है तब हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि, नहीं- नहीं, वो तो मेरा बचपना और कमज़ोरी का आलम था ,अब तो हाल ये है कि उस जैसे हज़ारों सूरज अगर मुझमे समा जायें तो कोई ढूंढ़ने वाला उन्हें ढूंढ़ नहीं सकता कि कहां खो गया


📕 हमारे ग़ौसे आज़म,सफह 211


नं-03:---  जब हुज़ूर गौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु अपनी माँ के पेट में थे तो एक साइल (भीखारी) ने आकर आवाज़ लगाई जब उस बदबख़्त ने देखा कि औरत अकेली है तो अंदर घुसा चला आया,उसी वक़्त ग़ैब से एक शेर नमूदार हुआ और उस खबीस को  चीर-फाड़ कर गायब हो गया


📕 महफिले औलिया,सफह 211


नं-04:---  जब हुज़ूर गौसे आज़म 4 साल के हुए तो आपकी वालिदा ने बिस्मिल्लाह ख्वानी के लिए आपको मक़तब (मदरसा) में भेजा जब आपके उस्ताद ने फरमाया कि बेटा पढ़ो ''बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम'' तो आपने बिस्मिल्लाह से जो पढ़ना शुरू किया तो पूरे 18 पारे पढ़कर सुना दिया,उस्ताद ने हैरत से पूछा कि बेटा ये आपने कब और कहां से याद किया तो हुज़ूर ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि मेरी मां 18 पारों की हाफिज़ा हैं जिसे वो अक्सर पढ़ा करती हैं, यह 18 पारे मैंने तो अपनी माँ के पेट में रहते हुए सब सुन, सुनकर याद कर लिया


📕 शाने ग़ौसे आज़म,सफह 15


और येह हक़ीक़त भी है कि जब औरत का ह़मल 4 माह का हो जाता है तो फिर उसके अंदर रुह़ डाल दी जाती है, बिला शुभह वो अपने माँ बाप की हरकतों से ही तरबियत पाता है, अगर आजकल के बच्चे बेह़या और नालायक निकलते हैं तो कहीं न कहीं उसके ज़िम्मेदार उसके माँ बाप ही होते हैं, अक्सर देखा गया है कि औरतों को जैसे हमल ठहरता है, अब वो घर के काम काज बहुत कम करती हैं, और फिल्म (पिक्चर) सीरियल वगैरह देखा करती हैं, और उनको येह खयाल तक नहीं आता कि इसका असर हमारे बच्चों पर पड़ने वाला है, फुक़हा फरमाते हैं कि ह़मल की ह़ालतों में औरतों को हमेशा ब वुज़ू रहना चाहिए, झूठ, चुगली, गीबत, और तमाम गुनाहों से दूर रहना चाहिए, और हर वक़्त ज़िक्रो अज़कार करती रहें ,उठती ,बैठती दुरुद शरीफ़ वगैरह पढ़ती रहना चाहिए, ताकि बच्चों पर अच्छा असर पड़े लिहाज़ा अगर आप चाहते हैं कि आप की औलादें आपकी फरमा बरदारी करें और नेक पैदा हों तो सबसे पहले अपने आपको बदलना होगा जब आपके घर का माहौल इस्लामी होगा तो यक़ीनन आप की औलादें भी नेक पैदा होंगी, इंशाअल्लाह

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