🌹🌹235 वाँ उर्से जमाली मुबारक हो🌹🌹 ___ तारीख़े विसाल 3/सफरुल मुज़फ्फर 1209हिजरी ___ मुख़्तसर हालात सिलसिला सक़लैनिया के बत्तीसवें शैख़े...
🌹🌹235 वाँ उर्से जमाली मुबारक हो🌹🌹
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तारीख़े विसाल 3/सफरुल मुज़फ्फर 1209हिजरी
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मुख़्तसर हालात
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अज़ : मुफ़्ती फ़हीम अहमद सक़लैनी अज़हरी ककराला
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आप का नाम सय्यद जमालुल्लाह है। आप के अलक़ाब मुहियुस्सुन्नह, मुरव्वजुश्शरीअह, क़ुतबुल इरशाद, क़ैमे शरीअत, गौसे ज़माँ, क़ुतबे आलम, हाफिज़, मुहियुद्दीन और सुल्तानुल औलिया हैं। आप की पैदाइश 11/रबीउल अव्वल 1137हिजरी/ 7/नवम्बर 1724ईसवी को क़स्बा गुजरात शाह दौला इलाक़ए पंजाब (मौजूदा पाकिस्तान) में हुई। आप सहीहुन् नसब सादात इज़ाम से हैं। आप सय्यदना हुज़ूर गौसे आज़म की औलाद से हैं। आप के वालिद मुहतरम का नाम हज़रत सय्यद सुल्तान शाह क़ादरी उर्फ सय्यद मुहम्मद रौशन शाह क़ादरी था। आप अपने वक़्त के वली कामिल और मशहूर बुज़रुग थे। आप का मज़ार शरीफ क़स्बा गुजरात शाह दौला, इलाक़ा पंजाब पाकिस्तान में है।
आप की विलादत के चंद दिन बाद अमीरुल मुमिनीन हज़रत मौला अली रदियल्लाहु अन्हु और सय्यदना हुज़ूर गौसे आज़म ने अपना लुआबे दहन आप के मुँह में डाला। चुनांचे उस की बरकत से आप पर जज़बो बे ख़ुदी की कैफ़ियत पैदा हो गई। कुछ अर्सा बाद क़स्बा वज़ीराबाद तशरीफ लाए और क़ुरआन करीम हिफ्ज़ किया, उस के बाद तकमीले उलूम की। उस के बाद दहली तशरीफ लाए और एक मस्जिद में क़याम किया जहाँ आप रोज़ाना दो क़ुरआन अज़ीम ख़त्म फरमाते। आप का महबूब मश्गला इल्मे दीन हासिल करना, क़ुरआन करीम की तिलावत करना, दीगर इबादातो रियाज़त में वक़्त गुज़रता था।
शुरू में आप सिलसिला बैअत में मुंसलिक होने को गैर ज़रूरी तसव्वुर फरमाते थे। चुनांचे आप एक रात इबादत में मश्ग़ूल थे कि गैब से आवाज़ आई: जमालुल्लाह! अगरचे तिलावते क़ुरआन अज़ीम अकमल इबादत है मगर बगैर बैअते शैख़ के हुसूले विलायत मुमकिन नहीं। आप ने अपने उस्ताज़े मुहतरम से जिक्र किया। सुबह को आप के उस्ताज़ ख़्वाजा मुहम्मद बाक़ी बिल्लाह दहलवी की दरगाह शरीफ पहुँचे जहाँ चौबीस साल से हज़रत पीर क़ुतबुद्दीन अशरफ हैदर हुसैन दहलवी मुक़ीम थे। हाफिज़ साहब उन से मुरीद हो गए और चंद दिन बाद हज़रत शाह क़ुतबुद्दीन ने आप को जुम्लह सलासिले तरीक़त की इजाज़त और ख़िलाफत इनायत फरमाई। आप अपने शैख़ की ख़िदमत में रहकर औरादो वज़ाइफ, ज़िक्रो फिक्र और इबादतो रियाज़त करने लगे। चुनांचे जब पीर क़ुतबुद्दीन हिन्दुस्तान छोड़कर मदीना तय्यबा जाने तगे तो हाफिज़ साहब को खिरक़ए ख़िलाफत और जानशीनी अता कर के इरशाद फरमाया अए हाफिज़ जमालुल्लाह! तुम दहली छोड़ दो और सूबा कठेर (रूहेलखण्ड)जा कर क़ौमे अफ़गान की इस्लाह करो। आप मुस्तफाबाद (मौजूदा रामपुर) तशरीफ लाए और यहाँ खामोशी से नवाब फैज़ुल्लाह ख़ाँ वालिए रामपुर के लश्कर में मुलाज़िमत इख़्तियार कर ली।
एक दिन आप के कमालात और फयूज़ातो बरकात से पर्दा हटा और ख़ल्क़े ख़ुदा आप की ख़िदमत में जौक़ दर जौक़ आना शुरू हो गई और आपने मख़लूक़े ख़ुदा की हिदायतो इस्लाह और रहनुमाई का काम शुरू कर दिया, आप मरजए ख़लाइक़ बन गए। ख़ुदा के बेशुमार बंदों ने आप से फवाइदे रूहानी हासिल किए और दूसरों तक उन्हें पहुँचाया और बिहम्दु लिल्लाह आज तक ये सिलसिला बाक़ी है और आगे बढ़ रहा है और बफैज़ाने हाफिज़ शाह जमालुल्लाह आगे बढ़ता ही रहेगा। इन्शा अल्लाह,
वालिए रामपुर नवाब फैज़ुल्लाह खाँ भी आप से बैअतो इरादत का शर्फ रखते थे उन्हीं के अर्ज़ करने पर हाफिज़ साहब ने 1179हिजरी में शहर का ताना बाना दुरुस्त कर के मुस्तफाबाद के नाम से रामपुर को बसाया।
3/सफरुल मुज़फ्फर 1209हिजरी/ 1794ईसवी को आप का विसाल हुआ। मज़ार शरीफ रामपुर में मरजए ख़लाइक़ है।
तज़किरह मशाइख़े क़ादरिया मुजद्दिदया,शराफतिया, सफ्हा: 52,53
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📖पेशकश📖
अस्सक़लैन फाउंडेशन क़स्बा ककराला ज़िला बदायूँ शरीफ
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