हिस्सा_02 ईद का दिन खुशी का दिन क्यो है मीलाद शरीफ- मीलाद शरीफ और क़ुर्आन तर्जुमा कंज़ुल ईमान और उन्हें अल्लाह के दिन की याद दिला 📕 पा...
हिस्सा_02
ईद का दिन खुशी का दिन क्यो है
हिस्सा_02
ईद का दिन खुशी का दिन क्यो है
मीलाद शरीफ-मीलाद शरीफ और क़ुर्आन
तर्जुमा कंज़ुल ईमान
और उन्हें अल्लाह के दिन की याद दिला
📕 पारा 13,सूरह इब्राहीम,आयत 5
अल्लाह के दिन से मुराद वो दिन हैं जिस में मौला तआला ने अपने बन्दों पर नेमतें नाज़िल फरमाई जैसा कि बनी इस्राईल पर मन व सल्वा नाज़िल फरमाना और उनको दरिया से पार कराना,जैसा कि खुद हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का क़ौल क़ुर्आन में मौजूद है मौला फरमाता है कि
तर्जुमा कंज़ुल ईमान
ईसा बिन मरियम ने अर्ज़ की ऐ अल्लाह ऐ हमारे रब हम पर आसमान से एक ख्वान उतार कि वो हमारे लिए ईद हो
📕 पारा 7,सूरह मायदा,आयत 114
मुफस्सेरीन फरमाते हैं कि जिस दिन आसमान से ख्वान नाज़िल हुआ वो दिन इतवार का था और आज भी ईसाई उस दिन खुशी यानि छुट्टी मनाते हैं,सोचिये कि हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ख्वान के नाज़िल होने पर तो ईद का हुक्म नाज़िल फरमा रहे हैं तो क्या माज़ अल्लाह हमारे नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की विलादत एक खाने से भरे तश्त से भी कम है कि हम उस पर खुशी नहीं मना सकते,यक़ीनन मेरे आक़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम दुनियाये जहान की सारी नेमतों से बढ़कर हैं ये मैं नहीं कह रहा बल्कि खुद रब्बे क़ायनात फरमा रहा है,पढ़िये
तर्जुमा कंज़ुल ईमान
बेशक अल्लाह का बड़ा एहसान हुआ मुसलमानों पर कि उनमे उन्हीं में से एक रसूल भेजा जो उन पर उसकी आयतें पढ़ते हैं और उन्हें पाक करते हैं और उन्हें किताब और हिक़मत सिखाते हैं
📕 पारा 4,सूरह आले इमरान,आयत 164
मौला ने इंसान को कैसी कैसी नेमतें अता फरमाई है,उसकी आंख कान नाक मुंह ज़बान दिल जिगर उसके हाथ पैर उसकी सांसें,मैंने शायद किसी मैगज़ीन में पढ़ा था किसी मेडिकल रिसर्चर का बयान है कि एक इंसान के जितने भी आज़ा हैं वैसे तो उनकी कोई कीमत नहीं सब अनमोल है मगर फिर भी मेडिकल साइंस एक इंसान को तक़रीबन 300 करोड़ रूपये की मिल्क समझती है सुब्हान अल्लाह,हर इंसान 300 करोड़ रूपये का फिर उस पर जो रब ने नेमतें दी उस के मां-बाप भाई-बहन दोस्त-अहबाब नाते रिश्तेदार वो अलग फिर उस पर ये कि उसे ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए कितने ही साज़ो सामान से नवाज़ा,मगर कसम उस रब्बे क़ायनात की पूरा क़ुर्आन उठाकर देख लीजिये कि क्या कहीं उसने अपनी किसी भी नेमत पर एहसान जताया हो नहीं बल्कि अगर जताया है तो अपने महबूब सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को जब बन्दों के दर्मियान भेजा तब जताया है,अब बताईये क्या जिस नेमत को देने पर वो खुद फरमा रहा है कि "मैंने एहसान किया बन्दों पर" ज़रा सोचिये कि कैसी ही अज़ीम नेमत है मेरे मुस्तफा जाने रहमत सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की विलादत,ख्वान के आसमान से आने पर तो ईद मनायी गयी तो फिर मुस्तफा जाने रहमत सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के आने पर ईद मनाना शिर्क कैसे हो गया,जबकि मौला खुद अपनी दी हुई नेमतों का चर्चा करने का हुक्म दे रहा है,फरमाता है
तर्जुमा कंज़ुल ईमान
और अपने रब की नेमत का खूब चर्चा करो
📕 पारा 30,सूरह वद्दोहा,आयत 11
क्या महबूबे दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से बढ़कर भी कोई नेमत हो सकती है,नहीं नहीं नहीं और हरगिज़ नहीं,तो हम सुन्नी रब की दी हुई उसी अज़ीम नेमत का चर्चा करते हैं तो हम मुश्रिक कैसे हो गए बल्कि हक़ तो ये है कि जो उसकी दी हुई नेमत का चर्चा नहीं करते वो एहसान फरामोश गद्दार हैं जहन्नम के हक़दार हैं _____________
तर्जुमा कंज़ुल ईमान
और उन्हें अल्लाह के दिन की याद दिला
📕 पारा 13,सूरह इब्राहीम,आयत 5
अल्लाह के दिन से मुराद वो दिन हैं जिस में मौला तआला ने अपने बन्दों पर नेमतें नाज़िल फरमाई जैसा कि बनी इस्राईल पर मन व सल्वा नाज़िल फरमाना और उनको दरिया से पार कराना,जैसा कि खुद हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का क़ौल क़ुर्आन में मौजूद है मौला फरमाता है कि
तर्जुमा कंज़ुल ईमान
ईसा बिन मरियम ने अर्ज़ की ऐ अल्लाह ऐ हमारे रब हम पर आसमान से एक ख्वान उतार कि वो हमारे लिए ईद हो
📕 पारा 7,सूरह मायदा,आयत 114
मुफस्सेरीन फरमाते हैं कि जिस दिन आसमान से ख्वान नाज़िल हुआ वो दिन इतवार का था और आज भी ईसाई उस दिन खुशी यानि छुट्टी मनाते हैं,सोचिये कि हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ख्वान के नाज़िल होने पर तो ईद का हुक्म नाज़िल फरमा रहे हैं तो क्या माज़ अल्लाह हमारे नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की विलादत एक खाने से भरे तश्त से भी कम है कि हम उस पर खुशी नहीं मना सकते,यक़ीनन मेरे आक़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम दुनियाये जहान की सारी नेमतों से बढ़कर हैं ये मैं नहीं कह रहा बल्कि खुद रब्बे क़ायनात फरमा रहा है,पढ़िये
तर्जुमा कंज़ुल ईमान
बेशक अल्लाह का बड़ा एहसान हुआ मुसलमानों पर कि उनमे उन्हीं में से एक रसूल भेजा जो उन पर उसकी आयतें पढ़ते हैं और उन्हें पाक करते हैं और उन्हें किताब और हिक़मत सिखाते हैं
📕 पारा 4,सूरह आले इमरान,आयत 164
मौला ने इंसान को कैसी कैसी नेमतें अता फरमाई है,उसकी आंख कान नाक मुंह ज़बान दिल जिगर उसके हाथ पैर उसकी सांसें,मैंने शायद किसी मैगज़ीन में पढ़ा था किसी मेडिकल रिसर्चर का बयान है कि एक इंसान के जितने भी आज़ा हैं वैसे तो उनकी कोई कीमत नहीं सब अनमोल है मगर फिर भी मेडिकल साइंस एक इंसान को तक़रीबन 300 करोड़ रूपये की मिल्क समझती है सुब्हान अल्लाह,हर इंसान 300 करोड़ रूपये का फिर उस पर जो रब ने नेमतें दी उस के मां-बाप भाई-बहन दोस्त-अहबाब नाते रिश्तेदार वो अलग फिर उस पर ये कि उसे ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए कितने ही साज़ो सामान से नवाज़ा,मगर कसम उस रब्बे क़ायनात की पूरा क़ुर्आन उठाकर देख लीजिये कि क्या कहीं उसने अपनी किसी भी नेमत पर एहसान जताया हो नहीं बल्कि अगर जताया है तो अपने महबूब सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को जब बन्दों के दर्मियान भेजा तब जताया है,अब बताईये क्या जिस नेमत को देने पर वो खुद फरमा रहा है कि "मैंने एहसान किया बन्दों पर" ज़रा सोचिये कि कैसी ही अज़ीम नेमत है मेरे मुस्तफा जाने रहमत सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की विलादत,ख्वान के आसमान से आने पर तो ईद मनायी गयी तो फिर मुस्तफा जाने रहमत सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के आने पर ईद मनाना शिर्क कैसे हो गया,जबकि मौला खुद अपनी दी हुई नेमतों का चर्चा करने का हुक्म दे रहा है,फरमाता है
तर्जुमा कंज़ुल ईमान
और अपने रब की नेमत का खूब चर्चा करो
📕 पारा 30,सूरह वद्दोहा,आयत 11
क्या महबूबे दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से बढ़कर भी कोई नेमत हो सकती है,नहीं नहीं नहीं और हरगिज़ नहीं,तो हम सुन्नी रब की दी हुई उसी अज़ीम नेमत का चर्चा करते हैं तो हम मुश्रिक कैसे हो गए बल्कि हक़ तो ये है कि जो उसकी दी हुई नेमत का चर्चा नहीं करते वो एहसान फरामोश गद्दार हैं जहन्नम के हक़दार हैं
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