--> रमज़ान मुबारक RAMADAN MUBARAK हिस्‍सा - 02 | Islam Religion History
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रमज़ान मुबारक RAMADAN MUBARAK हिस्‍सा - 02

 रमज़ान मुबारक

 रमज़ान मुबारक

 मसाइले रोज़ा-

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हिस्‍सा - 02

मसाइले रोज़ा

रोजा कैसे टुट सकता है?

मसअला _ शकर वगैरह एसी चीज़ें जो मुंह में रखने से घुल जाती है,मुंह में रखी और थूक निगल गया तो रोज़ा जाता रहा,यूंही दांतों के दरमियान कोई चीज़ चने के बराबर या ज़्यादा थी उसे खा गया या कम ही थी मगर मुंह से निकाल कर फिर खा ली या दांतों से खून निकल कर हलक़ से नीचे उतरा और खून थूक से ज़्यादा या बराबर था या कम था मगर उसका मज़ा हलक़ में महसूस हुआ तो इन सब सूरतों में रोज़ा जाता रहा,और अगर कम था और मज़ा भी महसूस ना हुआ तो नहीं

📕बहारे शरीअत जिल्द,1 हिस्सा 5 सफह 986


मसअला – मुबालग़े के साथ इस्तिंजा किया और हकना रखने की जगह तक पानी पहुंच गया रोज़ा टूट गया

📕बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 116


पाखाने के सुर्ख मक़ाम तक पानी पहुंचा तो रोज़ा टूट जायेगा लिहाज़ा बड़ा इस्तिंजा करने में इस बात का ख्याल रखें कि फ़ारिग होने के बाद जब मक़ाम धुलना हो तो चंद सिकंड के लिये सांस को रोक लिया जाये ताकि मक़ाम बंद हो जाये अब जल्दी जल्दी धोकर पानी पूरी तरह से पोंछ लिया जाये क्योंकि अगर पानी के क़तरे वहां रह गये और खड़े होने में वो क़तरे अंदर चले गये तो रोज़ा टूट जायेगा,इसीलिए आलाहज़रत अज़ीमुल बरकत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि रमज़ान भर बैतुल खला एक कपड़ा साथ लेकर जायें जिससे कि आज़ा के पानी को खड़े होने से पहले सुखा सकें


मसअला – औरत का बोसा लिया मगर इंज़ाल ना हुआ तो रोज़ा नहीं टूटा युंही अगर औरत सामने है और जिमअ के ख्याल से ही इंज़ाल हो गया तब भी रोज़ा नहीं टूटा

📕बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 113


मसअला – औरत का बोसा लिया या छुवा या मुबाशिरत की या ग़ले लगाया औरत इंज़ाल हो गया तो रोज़ा जाता रहा  औरत ने मर्द को छुआ और मर्द को इंज़ाल हो गया रोज़ा ना टूटा और मर्द ने औरत को कपड़े के ऊपर से छुआ और उसके बदन की गर्मी महसूस ना हुई तो अगर इंज़ाल हो भी गया तब भी रोज़ा ना टूटा

📕बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 117


मसअला – औरत ने मर्द को सोहबत करने पर मजबूर किया तो औरत पर क़ज़ा के साथ कफ्फारह भी वाजिब है मर्द पर सिर्फ क़ज़ा

📕बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 122


मसअला – औरत को मुअय्यन तारीख पर हैज़ आता था आज हैज़ आने का दिन था उसने कस्दन रोज़ा तोड़ दिया मगर हैज़ ना आया तो कफ्फारह नहीं सिर्फ क़ज़ा करेगी युंही सुबह होने के बाद पाक हुई और नियत कर ली तो आज का रोज़ा नहीं होगा

📕बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 123/119


मसअला _  मर्द नें पैशाब के सुराख में पानी या तेल डाला तो रोज़ा ना गाय,और अगर औरत नें शरमगाह में टपकाया तो जाता रहा

📕फतावा हिन्दिया जिल्द,1 सफह 204


मसअला – रमज़ान के दिनों में ऐसा काम करना जायज़ नहीं जिससे रोज़ा ना रख सके बल्कि हुक्म ये है कि अगर रोज़ा रखेगा और कमज़ोरी महसूस होगी और खड़े होकर नमाज़ ना पढ़ सकेगा तो भी रोज़ा रखे और बैठ कर नमाज़ पढ़े लेकिन ये तब ही है जब कि बिल्कुल ही खड़ा ना हो सके वरना बैठकर नमाज़ ना होगी

📕बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 126


मगर मआज़ अल्लाह आज की अवाम का ख्याल तो ये है कि रमज़ान इबादत के लिए नहीं बल्कि कमाने के लिए आता है,ऐसा लगता है कि रमज़ानुल मुबारक के रोज़े फर्ज़ नहीं हुई है बल्कि रमज़ान में काम फर्ज़ हुआ है, 10 घंटा काम करने वाला 12 घंटे काम करता है 12 घंटे वाला 16 घंटा और कुछ तो रातो दिन पैसा कमाने में जुट जाते हैं,और रोज़ा भी नहीं रखते, जबकि हुक्म तो ये है कि नान-बाई मजदूर और हर मेहनत कश आदमी सिर्फ आधे दिन ही काम करे और आधे दिन आराम करे ताकि रोज़ा रख सके,मगर मआज़ अल्लाह सुम्मा मआज़ अल्लाह आजके नाम निहाद मुसलमानो को ना तो रोज़े की खबर है और ना नमाज़ की फिक्र दिन भर उसी तरह खाना पीना जैसे कि कोई बात ही नहीं और उस पर तुर्रा ये कि हम मुसलमान हैं जन्नती हैं अगर दीन पर बात आई तो जान दे देंगे सर कटा देंगे अरे जिन कमबख़्तों से दिन भर भूखा प्यासा नहीं रहा जाता वो गर्दन क्या खाक कटायेंगे,मौला ऐसों को हिदायत अता फरमाये



दुआ में याद अल्‍लाह ने चाहा तो फिर नये हिस्‍सों के साथ मिलेंगे ....

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अजबुज ज़न्ब
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क़यामत - बरहक़ है और अपने वक़्त पर ज़रूर ज़रूर आयेगी जो इसका इंकार करे या ज़र्रा बराबर भी शक करे काफिर है,क़यामत में सज़ा और जज़ा जिस्म व रूह दोनों पर होगा तो जो ये कहे कि वहां सिर्फ रूह होगी जिस्म नहीं वो भी काफिर है और जो रूह जिस जिस्म में थी उसी के साथ हश्र होगा ये नहीं कि नया जिस्म पैदा करके उसमें रूह डाली जाये अगर चे उसका जिस्म जला दिया जाये या पानी में बहा दिया जाये या मुख्तलिफ जानवरों की गिज़ा बन जाये,जिस्म की रीढ़ की हड्डी में कुछ ऐसे बारीक अज्ज़ा होते हैं जिनको -अजबुज ज़न्ब- कहते हैं जो ना तो दूरबीन से नज़र आते हैं ना उन्हें आग जला सकती है और ना ज़मीन उसे गला सकती है और मौला तआला इस पर क़ादिर है कि उसके इसी तुख्म से सारे अज्ज़ा को मिलाकर फिर खड़ा कर दे और क्यों ना हो कि जो खालिक़े क़ायनात पहली बार बगैर शक्लो सूरत के एक इंसान को पैदा कर सकता है उसका उसी इंसान को उसी हैबत पर दोबारा वुजूद में लाना कौन सा मुश्किल काम है

📕📚 बहारे शरियत,हिस्सा 1,सफह 28/35

मौला अपने बन्दों को किस तरह क़यामत में ज़िंदा करेगा उसको जानने के लिए ये रिवायत पढ़िये

बुखारी व मुस्लिम शरीफ में है कि एक शख्स बहुत ही गुनाहगार था जब वो मरने लगा तो अपनी औलाद को वसीयत की कि मेरे मरने के बाद मुझे दफ्न ना करना बल्कि जला देना और मेरी राख के 2 हिस्से करना एक हिस्से को हवाओं में उड़ा देना और दूसरे हिस्से को पानी में बहा देना,उसकी औलाद ने ऐसा ही किया मौला ने हवा को हुक्म दिया कि इसके सारे ज़र्रात को मिला दो और पानी को हुक्म दिया कि इसके सारे ज़र्रात को मिला दो तो दोनों ने ऐसा ही किया,जब उसके जिस्म के दो हिस्से बन गये तो मौला ने दोनों को मिलाकर उसमें रूह लौटाई और फरमाया कि तेरी ऐसी वसीयत करने की क्या वजह थी हालांकि वो सब जानता है,तो बन्दा अर्ज़ करता है कि मौला मैं बहुत ही गुनहगार था मुझे यही खौफ था कि अगर मुझे अज़ाब दिया गया तो दुनिया का सबसे ज़्यादा अज़ाब मुझ पर होगा तो तेरे इसी खौफ से मैंने ऐसा फैसला किया तो मौला फरमाता है कि तेरे इसी खौफ ने आज तुझे बचा लिया और वो बख्शा गया क्योंकि खुदा से डरना ही तो सारी इबादत की अस्ल है

📕📚 अहवाले बर्ज़ख,सफह 12

और ये रिवायत तो क़ुर्आन से साबित है,पढ़िये

हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने एक दिन समुन्दर के किनारे एक मरे हुए शख्स को देखा जिसकी लाश को मछलियां खा रही थीं फिर कुछ देर बाद उसी लाश पर कुछ परिंदे भी आ गए और उन्होंने भी उस लाश को खाना शुरू कर दिया फिर कुछ जंगली जानवर आये और उन्होंने भी कुछ खाया,जब आपने ये मंज़र देखा तो आपके दिल में ये शौक़ पैदा हुआ कि मैं अपनी आंख से देखना चाहता हूं कि मौला तआला किस तरह मुर्दो को ज़िन्दा फरमायेगा और आपने बारगाहे खुदावन्दी में अपनी आरज़ू पेश कर दी,ख्याल रहे कि आपको खुदा की कुदरत पर शक नहीं था क्योंकि आपने काफिरो से खुदा की यही सिफत बयान की थी "कि मेरा रब वो है जो मारता है और जिलाता है" अगर आपको इस बात में शक होता तो हरगिज़ आप ऐसा नहीं कहते बल्कि सिर्फ अपनी आंखों से रब की कुदरत का मुशाहद करना चाहते थे,और ये भी ख्याल रहे कि अगर आपको इस बात में शक होता तो यक़ीनन आप पर खुदा का इताब होता मगर हरगिज़ ऐसा नहीं हुआ बल्कि मौला फरमाता है "ऐ खलील तुम 4 परिंदो को मिलाकर अलग अलग पहाड़ो पर रख दो फिर उनको बुलाओ तो वो तुम्हारे पास दौड़ते हुए आयेंगे" हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने मोर-कबूतर-मुर्ग-कव्वा इन चारों को कीमा बनाकर सबको एक साथ मिला दिया फिर उन सब में से 4 हिस्से करके 4 अलग अलग पहाड़ियों पर रख दिए और सबका सर अपने पास रख लिया,अब जिस परिन्दे को आप आवाज़ देते तो उसके पूरे अज्ज़ा चारो पहाड़ियों में से उड़ते हुए आते आपकी आंखों के सामने सब इकठ्ठा होता आप उस पर जैसे ही सर का टुकड़ा लगते वो ज़िंदा होकर उड़ जाता

📕📚 खज़ाएनुल इरफान,सफह 66




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Islam Religion History: रमज़ान मुबारक RAMADAN MUBARAK हिस्‍सा - 02
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