रमज़ान मुबारक
रमज़ान मुबारक
तरावीह
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नमाज़े तरावीह़ मर्द व औरत सबके लिए सुन्नते मुअक्किदह है इसका छोडना जायज़ नहीं,
📕दुर्रे मुख्तार जिल्द 2, सफह 596
📕बहारे शरीअत हिस्सा,4 सफह 688
📕हमारा इस्लाम सफह 252
हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम नें खुद तरावीह़ की नमाज़ पढ़ी और इसे बहुत पसंद फरमाया
📕बहारे शरीअत हिस्सा 4,सफह 688
हज़रते अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने कहा कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम नें इरशाद फरमाया कि, जो शख्स सच्चे दिल से सवाब की नियत से तरावीह़ की नमाज़ पढे़ तो उसके अगले गुनाह बख्श दिऐ जाते हैं
📕मुस्लिम शरीफ,जिल्द 1 सफह 259
📕मिशकात शरीफ सफह 114
📕अनवारूल ह़दीस सफह 115
तरावीह जमाअत से पढ़ना सुन्नते कफाया है:-
तरावीह जमाअत से पढ़ना सुन्नते कफाया है, यानि अगर मस्जिद के सब लोग छोड़ देंगे तो सब गुनहगार होंगे और अगर किसी एक नें घर में तन्हा पढ़ ली,तो गुनहगार नहीं मगर ऐसे शख्स का जिसके वजह से जमाअत बड़ी होती हो,कि अगर वह छोड़ देगा तो लोग कम हो जायेंगे,तो उसे बिला उज़्र जमाअत छोड़ने की इजाज़त नहीं,
📕फतावा हिन्दिया जिल्द,1 सफह 116
📕बहारे शरीअत हिस्सा,4 सफह 691
तरावीह में एक बार क़ुरआन मजीद खत्म करना सुन्नते मुअक्किदह है और दो मरतबा फज़ीलत और तीन मरतबा अफज़ल- लोगों की सुसती की वजह से खत्म को तरक न करें
📕दुर्रे मुख्तार जिल्द 1 सफह 601
अगर एक खत्म करना हो तो बेहतर है कि 27 वें शब में खत्म हो फिर अगर इस रात में या इस के पहले खत्म हो तो तरावीह आखिर रमज़ान तक बराबर पढ़ते रहें कि सुन्नते मुअक्किदह है
📕बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफह 690
📕फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 118
नाबालिग के पीछे बालिग की तरावीह ना होगी यही सही़ है
📕बहारे शरीअत जिल्द 1 हिस्सा 4 सफह 692
📕फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 85
तरावीह़ बैठ कर पढ़ना बिला उज़्र मकरूह है बल्कि बाज़ के नज़दीक तो होगी ही नहीं,
📕दुर्रे मुख्तार जिल्द 2 सफह 603
📕बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफह 693
मुक़तदी को ये जायज़ नहीं कि बैठा रहे जब इमाम रुकू करने को हो तब ऐ खड़ा हो ये मुनाफिक़ीन से मुशाबहत है अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है मुनाफिक़ जब नमाज़ को खड़े होते हैं तो थके जी से
📕बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफह 693
तरावीह पढ़ाने वाले को एक बार बिस्मिल्लाह शरीफ बुलंद यानि तेज़ आवाज़ से पढ़ना सुन्नत है और हर सूरत की इबतिदा में आहिस्ता पढ़ना मुस्तहब है,कुछ जगहों पर कहते हैं कि 114 बार बिस्मिल्लाह शरीफ तेज़ यानि बुलंद आवाज़ से पढी जाऐ वरना खत्म नही होगा ऐ बे असल है इस से बचना चाहिए,
📕बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफह 694
शबीना की एक रात की तरावीह में पूरा क़ुरआन पढ़ा जाता है,जिस तरह आजकल रिवाज है कि कोई बैठा बातें कर रहा है,कुछ लोग लेटे हैं,कुछ लोग चाय पी रह है,कुछ लोग मस्जिद के बाहर हुक़्क़ा पी रहे हैं और जब जी में आया एक आद्ध रकाअत में शामिल भी हो गये य नाजायज़ है,
📕बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफह 695
हमारे इमामे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु रमज़ान शरीफ में 61 खत्म किया करते थे, तीस दिन में,और तीस रात में और एक तरावीह में, और 45 साल ईशा के वज़ू से नमाज़े फज्र पढ़ी है
📕बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफह 695
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