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हुज़ूर मालिको मुख़्तार हैं

अक़ाऐद  हुज़ूर मालिको मुख़्तार हैं

अक़ाऐद

 हुज़ूर मालिको मुख़्तार हैं

वैसे तो आज की पोस्ट  2 हिस्से( भाग) में भेजने के लाऐक़ थी पर मौज़ू अएसा है कि बात एक बार में ही पूरी हो जानी चाहिये बस आप लोग पढ़ लीजियेगा इन्शाअल्लाह आपका इमान ताज़ा हो जायेगा

हुज़ूर मालिको मुख़्तार हैं

इस मसले पर भी बद अक़ीदा वहाबी देवबंदी अपनी जिहालत दिखाता रहता है और आये दिन सुन्नियों को कुछ ऐसी दलीलों को बता बताकर बहकाता रहता है "मसलन नबी को अगर इख़्तियार होता तो अपने चचा अबू तालिब से इतनी मुहब्बत रखने के बावजूद क्यों उनको ईमान नहीं दिलवा पाए" इसी तरह की और भी कुछ बातें हैं जो अक्सर बेशतर सुनने में आती रहती हैं,बेशक आक़ाए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम अल्लाह की अता से मालिको मुख़्तार हैं जिसे जो चाहें अता कर दें और जिससे जो चाहें छीन लें और क़ुरानो हदीस उनके इख़्तियार की दलीलों से पुर है,कुछ झलकियां मुलाहज़ा फरमाएं

1. निकाह में लाओ जो औरतें तुमको खुश आएं दो दो तीन तीन और चार चार 

📕📚 पारा 4,सूरह निसा,आयत 3


अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने तमाम मुसलमानों को ये हुक्म दिया है कि अगर सबमें इंसाफ़ कर सको तो 4 बीवियां एक साथ रख सकते हो वरना एक ही काफी है और ये क़ानून सब के लिए बराबर है और क़यामत तक के लिए है मगर इसके खिलाफ जब हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपनी प्यारी बेटी हज़रते फातिमा ज़ुहरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा का निकाह मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से किया तो फ़रमाया कि ऐ अली जब तक फ़ातिमा तुम्हारे निक़ाह में है तुमको दूसरा निकाह हराम है,और आपके इस फैसले के खिलाफ़ ना तो मौला अली ने कुछ कहा ना तो किसी सहाबी ने और तो और खुद रब्बे ज़ुल्जलाल ने भी ऐतराज़ नहीं किया कि ऐ नबी हम तो चार औरतों को एक साथ रखने का हुक्म दे रहे हैं और आप दूसरी को ही हराम किये देते हैं,ये है इख़्तियारे मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम

📕📚 मिश्क़ात,बाबुल मनाक़िबे अहले बैत


2. और दो गवाह कर लो मर्दों में से 

📕📚पारा 3,सूरह बक़र,आयत 282


शरई गवाही के लिए 2 मुसलमान आक़िल बालिग़ मुत्तक़ी होने चाहिए ये फरमान क़ुरान का है मगर हुज़ूर ने हज़रते खुज़ैमा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की अकेले की गवाही को 2 मुसलमान मर्दों की गवाही के बराबर क़रार दिया,ये है इख़्तियारे मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम

📕📚 खसाइसे कुबरा,जिल्द 2,सफह 263


3. दिन भर में 5 वक़्त की नमाज़ फ़र्ज़ है अगर कोई इंकार करे तो काफ़िर हो जाए मगर एक सहाबी इस शर्त पर ईमान लाये कि वो दिन भर में 2 वक़्त की ही नमाज़ पढ़ेंगे और हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उन्हें इजाज़त अता फरमाई

📕📚 सल्तनते मुस्तफा,सफह 27


4. जब हज फ़र्ज़ हुआ तो एक सहाबी ने कहा कि क्या हर साल फ़र्ज़ है इस पर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि अगर हम हां कह दें तो हर साल फ़र्ज़ हो जाएगा

📕📚 मिश्क़ात,बाबुल हज,सफह 222


5. एक सहाबी ने रमज़ान में रोज़े की हालत में अपनी बीवी से सोहबत कर ली तो सरकार सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उन पर कफ्फारह लाज़िम फ़रमाया कि 60 रोज़े लगातार रखो उन्होंने माज़रत चाही फिर आपने कहा कि 60 मिस्कीन को खाना खिलाओ या कपड़े पहनाओ इस पर वो बोले कि मेरी इतनी हैसियत नहीं है तो हुज़ूर ने उन्हें कुछ देर रुकने को कहा कुछ देर में ही हुज़ूर के पास एक टोकरी खजूर हदिये में आया आपने उन सहाबी से फ़रमाया कि इसे ले जा और गरीबों में बांट दे तो वो कहते हैं कि हुज़ूर मदीने में मुझसे ज्यादा गरीब कोई नहीं है तो आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मुस्कुरा देते हैं और फरमाते हैं कि ठीक है इसे ले जा खुद खा और अपने घर वालों को खिला तेरा कफ़्फ़ारह अदा हो जाएगा,ये है इख़्तियारे मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम

📕📚 बुखारी,जिल्द 1,सफह 260


6. क़ुरबानी के लिए बकरा बकरी की उम्र 1 साल मुतय्यन है कि अगर इसमें एक दिन भी कम होगा तो जानवर हलाल है मगर क़ुरबानी हरगिज़ न हुई मगर अबु दर्दा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को 6 माह के बकरी के बच्चे को क़ुरबानी के लिए इजाज़त अता फरमाई,ये है इख़्तियारे मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम

📕📚 बुखारी,जिल्द 2,सफह 834


7. मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की अस्र की नमाज़ क़ज़ा हो गयी जिस पर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने डूबे हुए सूरज को ही वापस लौटा दिया कि अली अपनी नमाज़ अदा फरमा लें

📕📚 कंज़ुल उम्माल,जिल्द 2,सफह 277


8. एक आराबी आपकी खिदमत में हाज़िर हुआ कि मुझे कुछ मोजज़ा दिखाएं तो मैं ईमान ले आऊं इस पर आप फरमाते हैं कि जा जाकर उस दरख़्त से कह कि तुझे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम बुलाते हैं जैसे ही उस आराबी ने जाकर उस पेड़ से ये कहा फ़ौरन वो दरख़्त अपनी जड़ों को घसीटता हुआ हुज़ूर की बारगाह में हाज़िर हो गया ये देखकर आराबी फ़ौरन ईमान ले आया 

📕📚 तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 203


9. एक मर्तबा अबु जहल ने हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से कहा कि अगर आप नबी हैं तो चांद के दो टुकड़े करके दिखाइये इस पर आपने उंगली के इशारे से चांद के दो टुकड़े फरमा दिए,और इसका गवाह ख़ुद क़ुराने मुक़द्दस है

📕📚 पारा 27,सूरह क़मर,आयत 1-2 

📕📚 बुखारी,जिल्द 1,सफह 546


10. किसी मुसलमान मर्द व औरत को ये हक़ नहीं पहुंचता कि जब अल्लाह व रसूल कुछ हुक्म फरमा दें तो उन्हें अपने मामले का कुछ इख़्तियार रहे

📕📚 पारा 22,सूरह अहज़ाब,आयत 36


हुज़ूर ने अपने ग़ुलाम हज़रत ज़ैद बिन हारिस रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के निकाह का पैग़ाम हज़रत ज़ैनब बिन्त हजश रज़ियल्लाहु तआला अन्हा को दिया जिस पर उन्होंने इन्कार कर दिया,इस पर ये आयत उतरी और हज़रत ज़ैनब को निकाह करना पड़ा,ये है इख़्तियारे मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम

11. सुलह हुदैबिया के मौक़े पर जब सहाबियों के पास पानी ख़त्म हो गया तो सब हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के पास पहुंचे इस पर आपने एक प्याले में अपनी उंगलियां मुबारक डुबो दी तो फ़ौरन उसमे से पानी उबलने लगा हज़रते जाबिर फरमाते हैं कि हम 1500 की तादाद में थे और उस पानी ने सबको किफ़ायत किया,ये है इख़्तियारे मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम

📕📚 बुखारी,जिल्द 1,सफह 505


12. हज़रत अब्दुल्लाह बिन उबैक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की पिण्डली टूट गयी तो आपने उस पर अपना दस्ते करम फेरा तो फ़ौरन वो पिण्डली पहले जैसी हो गयी

📕📚 बुखारी,जिल्द 2,सफह 577


13. मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की दुखती आंख में अपना लोआबे दहन डाला तो फ़ौरन उनकी आंख अच्छी हो गयी

📕📚 बुखारी,जिल्द 1,सफह 525


14. हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि अगर मैं चाहूं तो ये पहाड़ सोने के बनकर मेरे साथ साथ चलें

📕📚 मिश्क़ात,सफह 521


15. हज़रत अबु हुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि मैं अक्सर हदीसें सुनकर भूल जाता था एक मर्तबा मैंने ये बात हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को बताई तो आपने फ़रमाया कि अपनी चादर फैलाओ तो मैंने फैला दी फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपने दोनों हाथों को मिलाकर चुल्लु से कुछ डाला और कहा कि इसे अपने सीने से लगा लो तो मैंने ऐसा ही किया और उसके बाद से मैं कभी कोई बात नहीं भूला 

📕📚 बुखारी,जिल्द 1,सफह 515


16. जंगे खन्दक के रोज़ हज़रते जाबिर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने 4 किलो जौ और एक बकरी का बच्चा ज़बह करके हुज़ूर की दावत की,और हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम अपने साथ 1000 असहाब को लेकर पहुंच गए और हज़रते जाबिर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की बीवी से फ़रमाया कि इस गोश्त की हांडी को चूल्हे से ना उतरना और रोटी बनाने के लिए एक और औरत को बुलालो ये कहकर आपने आटे में और हांडी में अपना लोआबे दहन डाल दिया,हज़रते जाबिर फरमाते हैं कि सबने खाना खाया और फिर भी गुंधा हुआ आटा और हांडी में गोश्त वैसा की वैसा ही रहा और कुछ कमी ना हुई

📕📚 बुखारी,जिल्द 2,सफह 589


17. एक जंग के मौके पर जब कि खाने के सामान की तंगी हुई तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने 21 दाने खजूर पर कुछ पढ़कर दम किया और दस्तर ख्वान पर डाल दिए सबने शिकम सैर होकर खाया मगर खजूरें वैसी ही दस्तर ख्वान पर मौजूद रहीं तो आपने उन्हें एक पोटली में डालकर हज़रत अबु हुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को दी और कहा कि जब भी तुम्हे खजूरों की ज़रूरत हो इसमें से हाथ डालकर निकाल लेना मगर कभी पलटना मत,हज़रत अब हुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि मैंने ज़िन्दगी भर में उससे 120 कुन्टल खजूरें बरामद की मगर एक जंग के मौके पर वो थैली मुझसे ग़ुम हो गयी

📕📚 खसाइसे कुबरा,जिल्द 2,सफह 51 


18. मर्द को सोना पहनना हराम है मगर आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रते सुराक़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को सोने के कंगन पहनना जायज़ फ़रमाया

📕📚 सल्तनते मुस्तफा,सफह 31


19. हम देख रहे हैं बार बार तुम्हारा आसमान की तरफ़ मुंह करना तो ज़रूर हम तुम्हें फेर देंगे उस क़िब्ले की तरफ़ जिसमे तुम्हारी ख़ुशी है,अभी अपना मुंह फेर दो मस्जिदें हराम की तरफ़

📕📚 पारा 2,सूरह बक़र,आयत 144


शुरू इस्लाम में 16 या 17 महीने बैतुल मुक़द्दस ही मुसलमानो का क़िब्ला रहा और इस बात पर यहूदी मुसलमानों को ताना देते थे कि हर काम तो अपना हमसे जुदा करते हैं और नमाज़ हमारे क़िब्ला की जानिब मुंह करके पढ़ते हैं,मगर अचानक एक दिन कुछ यहूदियों ने हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को इस अंदाज़ में लअन तअन किया कि जिसका आपके क़ल्ब पर बेहद असर हुआ और आप रंजीदा हो गए आप इसी हालत में मस्जिदे किब्लतैन में नमाज़ को हाज़िर हुए और हालाते नमाज़ में बार बार आसमान की जानिब देखते जाते कि शायद अब जिब्रील वही लेकर आते होंगे आखिरकार रब की रहमत जोश में आई और अपने महबूब की ख़ुशी के लिए ऐन नमाज़ की हालत में ही क़िब्ले को बदलने का हुक्म फ़रमाया इसी लिए उस मस्जिद को मस्जिदे क़िब्लतैन यानि दो क़िब्लों वाली मस्जिद कहा जाता है


20. अल्लाह का तुम पर बड़ा फ़ज़्ल है

📕📚 पारा 5,सूरह निसा,आयत 113 


हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम को पूरी दुनिया पर यानि इंसानो पर जानवरो पर खुशकी पर तरी पर हवा पर हुक़ूमत बख्शी मगर ये ना फ़रमाया कि मैंने सुलेमान पर फ़ज़्ल किया मगर हुज़ूर को फरमाता है कि मैंने आप पर फ़ज़्ल किया,दूसरी जगह इरशाद फरमाता है कि


21. और तुम्हें हाजत मंद पाया तो ग़नी कर दिया

📕📚 पारा 30,सूरह वद्दोहा,आयत 8


अब जिसको रब ग़नी करदे उसके ग़िना का अंदाजा कौन लगा सकता है,मगर ये बद अक़ीदा कोढी वो हैं कि जिसकी मिसाल उस मक्खी की तरह है जो पूरा खूबसूरत जिस्म छोड़कर ज़ख्म पर ही बैठा करती है,ठीक उसी तरह ये खबीस भी तमाम आयतों और हदीसों को छोड़कर सिर्फ उन आयतों और हदीसों की तरफ़ रुजू करते हैं जिनमे उन्हें हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में कमी निकालने का कुछ मौक़ा मिले हालांकि ऐसी कोई आयत और कोई हदीस नहीं जिससे कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की तनक़ीस होती हो मगर ये जाहिल उसका गलत मतलब निकालकर लोगों में फितना फैलाते हैं,जैसा कि वो बात जो मौज़ूये बहस थी,याद रखिये ईमान और कुफ़्र का ताल्लुक़ क़ल्ब से है मगर इख्तियार खुद का,जिसने जो मांगा नबी ने हर उस शख्स को हर वो चीज़ दी


यहां जो कुछ लिखा वो मेरे मुस्तफ़ा जाने रहमत सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इख्तियार का बस एक हर्फ है,पूरा ना तो मैं यहां लिख सकता हूं और ना आप पढ़ सकते हैं,मगर ईमान वालों के लिये उनकी शान को समझने के लिये एक हर्फ ही काफ़ी है और बे ईमान के लिये पूरी क़ुरानो हदीस भी कम है


खत्म--------

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🌹والله تعالیٰ اعلم بالصواب🌹


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