हिस्सा_06 जो शख्स़ हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मुहब्बत में महफिले मीलाद शरीफ मुनक़्क़िद करता है वो साल भर अमनो अमान से रहता है मीला...
हिस्सा_06
जो शख्स़ हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मुहब्बत में महफिले मीलाद शरीफ मुनक़्क़िद करता है वो साल भर अमनो अमान से रहता है
हिस्सा_06
जो शख्स़ हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मुहब्बत में महफिले मीलाद शरीफ मुनक़्क़िद करता है वो साल भर अमनो अमान से रहता है
मीलाद शरीफ-मीलाद शरीफ और क़ुर्आन
रिवायत ----- जो शख्स़ हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मुहब्बत में महफिले मीलाद शरीफ मुनक़्क़िद करता है वो साल भर अमनो अमान से रहता है
📕📚 बारह माह के फज़ायल,सफह 297
रिवायत ----- जो मीलाद शरीफ की खुशियां मनाते हैं और माल खर्च करते हैं उनके लिए अल्लाह के यहां बेशुमार अज्र है
📕📚 मदारेजुन नुबूवत,जिल्द 2,सफह 26
रिवायत ------ हज़रत सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी अलैहिर्रहमा के बहनोई हज़रत सुल्तान मलिक मुज़फ्फर उद्दीन बिन ज़ैन उद्दीन अलैहिर्रहमा खुद तो 5 दरहम के मामूली कपड़े पहनते मगर हर साल महफिले मीलाद शरीफ पर 3 लाख दीनार खर्च करते और उस महफिले पाक में मुल्क के मुअज़्ज़ज़ उल्मा व सुल्हा इकराम तशरीफ़ लाते,हाफिज़ अब्दुल खत्ताब बिन दहिया ने 625 हिजरी में मीलाद शरीफ पर एक किताब लिखी जो सुल्तान की महफिल में पढ़ी गयी जिस पर आपने उनको 1000 दीनार नज़राना पेश किया
📕📚 सीरते नबवी,जिल्द 1,सफह 45
📕📚 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 467
1 दरहम = 3.5 माशा चांदी
1 दिनार = 4.5 माशा सोना
4.5 माशा = 4.375 ग्राम
तो
300000 x 4.375 ग्राम = 1312500 ग्राम
1312500 / 1000 ग्राम = 1312.5 किलोग्राम
मतलब
13 कुंटल साढ़े बारह किलो सोना हर साल खर्च करते अगर सबसे कम किमत में सोने की कीमत के हिसाब से जोड़ें तो वैसे तो आजकल काफ़ी रेट में सोना चांदी है
3045 रू. पर ग्राम
3045 x 1312500 = 3,99,65,62,500
तकरीबन 400 करोड़ रूपये
ऐसे होते हैं गुलामाने मुस्तफा,एक बात तो तय है कि इतना पैसा खर्च करने के लिए भी कलेजा चाहिये जो कि सिर्फ सुन्नियों के पास ही मिलेगा किसी वहाबी बद अक़ीदे के पास नहीं,यहां पर कोई एक सवाल पैदा कर सकता है कि चलो मिलाद शरीफ मनाना जायज़ हो सकता है मगर इतना सोना या कसीर रुपया खर्च करने की क्या ज़रूरत है ये तो इसराफ़ यानि फिज़ूल खर्ची है तो इसका जवाब मेरे आलाहज़रत युं देते हैं और फरमाते हैं कि
रिवायत ---- एक सालेह ने अपने घर में महफिले मीलाद शरीफ मुनक़्क़िद की और उसमे 1000 शमां रौशन की,एक साहब वहां पहुंचे और ये कैफियत देखकर वापस जाने लगे तो बानिये महफिल ने उनसे हाल पूछा तो कहने लगे कि जो काम 1 शमां से हो सकता था आपने उसके लिए 1000 शमां क्यों रौशन की ये तो इसराफ है,तो वो फरमाते हैं कि अच्छा ठीक है आप जाकर वो शमां बुझा दीजिये जो मैंने गैर खुदा के लिए रौशन की हो वो गये और हर शमां पर फूंक मारकर बुझाते मगर कोई शमां ना बुझती,मालूम हुआ कि महफिले मीलाद शरीफ में जो भी खर्च होता है वो राहे खुदा में ही होता है और जिससे ताज़ीम ज़िक्र शरीफ मक़सूद हो उसमे कितना भी खर्च हो जाये हरगिज़ मना नहीं
📕📚 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 101
इस मौज़ू पर आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त का लिखा हुआ रिसाला "अकमालुत ताम्मा अलस शिर्किस सवाबिल उमूरिल आम्मा" पढ़ा जाये,जिसमे आपने दलीलों के अंबार लगा दिये और महफिले मीलाद को जायज़ और सुनन साबित फरमाया,मीलाद शरीफ पर अब वहाबियों का एक फतवा भी पढ़ लीजिये जिसे अज़ीज़ुर्रहमान देवबंदी ने दिया और जिस पर अशरफ अली थानवी की तस्दीक़ भी हुई,लिखते हैं
फतवा ---- मीलाद शरीफ की महफिल मनाना अगर उसमें बिदअत का दखल ना हो तो जायज़ बल्कि बेहतर है क्योंकि ये भी हुज़ूर के बाक़ी अज़कार की मिस्ल है
📕📚 फतावा इमदादिया,सफह 320
पूरी जमाते वहाबियत के ऊपर और एक कहर बरपाती हुई तहरीर पढ़ लीजिये वहाबियों के हकीमुल उम्मत अशरफ अली थानवी के पीरो मुर्शिद हाजी इम्दाद उल्लाह मुहाजिर मक्की लिखते हैं
रिवायत ---- मशरब फक़ीर का ये है कि महफिले मीलाद में शरीक होता हूं बल्कि ज़रियये बरकात समझ कर हर साल मुनक़्क़िद करता हूं और क़याम में लुत्फ व लज़्ज़त पाता हूं
📕📚 फैसला हफ्त मसला,सफह 111
अल्लाहु अकबर-- पीर मिलाद शरीफ में शरीक होता है बल्कि उसे सलाम पढ़ने में लुत्फ मिलता है और मुरीद हराम और शिर्क का फतवा दे रहा है अल्लाह ही जाने इनके यहां दीन किस चिड़िया का नाम है
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