हुज़ूर ग़ौसे आज़म abdul qadir jilani ghous pak रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का एक लक़ब मोहिउद्दीन भी है, यानि.....
Huzur abdul qadir jilani ghous pak ko mohiyuddin kyo kehte hai?
हुज़ूर गौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को मोहिउद्दीन क्यो कहते है?
हुज़ूर ग़ौसे आज़म abdul qadir jilani ghous pak रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का एक लक़ब मोहिउद्दीन भी है, यानि कि (दीन को ज़िन्दा करने वाला) मोहिउद्दीन लक़ब पड़ने की वजह हुज़ूर गौसे आज़म abdul qadir jilani ghous pak रज़ियल्लाहु तआला अन्हु खुद ही फरमाते हैं कि एक मर्तबा मैं नंगे पैर जुम्अ के दिन जंगलों के रास्ते से होते हुए बग़दाद जा रहा था,रास्ते में मुझे एक बहुत ही कमज़ोर और लागर शख्स मिला जो कि खुद से उठकर खड़ा भी नहीं हो सकता था, इतना ज़यादा कमज़ोर था,उसने मुझे आवाज़ देकर बुलाया मैं उसके पास पहुंचा तो कहने लगा कि अए अब्दुल क़ादिर मैं निहायत ही कमज़ोर हूं तुम मुझे सहारा देकर खड़ा कर दो, हुज़ूर गौसे आज़म abdul qadir jilani ghous pak रज़ियल्लाहु तआला अन्हु इरशाद फरमाते हैं कि मैंने जैसे ही हाथ देकर उसे उठाया वो तंदरुस्त हो गया और खूबसूरत शक्ल ज़ाहिर होने लगी अब उस शख़्स ने कहा कि क्या आप मुझे जानते हैं? मैंने कहा नहीं, तो उसने कहा कि मैं दीने इस्लाम हूं, मैं ऐसा ही कमज़ोर था जैसा कि आपने मुझे देखा, मगर रब ने आपकी वजह से मुझे ज़िन्दगी बख़्शी आप मोहिउद्दीन यानि दीन को ज़िंदा करने वाले हैं,फरमाते हैं कि फिर मैं वहां से जामा मस्जिद पहुंचा नमाज़ पढ़ी उसके बाद लोग हुजूम दर हुजूम चले आते हैं और हर कोई या शैख मोहिउद्दीन कहकर पुकारता , हालांकि इस बात का ज़िक्र अब तक मैंने किसी से ना की थी
एक लाख से भी ज़्यादा लोगों ने मेरे हाथ पर तौबा की और तक़रीबन 500 से ज़्यादा यहूदो नसारा ने इस्लाम क़ुबूल किया है
हुज़ूर गौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु 40 साल तक इशा के वुज़ू से फज्र की नमाज़ अदा की है
हदीसे पाक में आता है कि जब अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त अपने बंदों में से किसी को अपना खास क़ुर्ब अता फरमाता है तो हज़रते जिब्रील अलैहिस्सलाम को बुला कर इरशाद फरमाता है कि अए जिब्रील मैं फलां बन्दे से मुहब्बत करता हूं ,तू भी उससे मुहब्बत रख, और आसमान में निदा कर दो कि फरिश्ते भी उससे मुहब्बत करें तो हज़रते जिब्रील अलैहिस्सलाम जाकर फरिश्तों में ये ऐलान करते हैं कि अल्लाह तआला फलां बन्दे से मुहब्बत करता है और मैं भी उससे मुहब्बत करता हूं और तुम सब भी उससे मुहब्बत रखो, फिर आकर इसी तरह ज़मीन पर भी ऐलान किया जाता है और इस तरह उस बन्दे की मक़बूलियत तमाम जहान में फैल जाती है, ऐसी जीती जागती मिसाल हमारे पीरो मुरशिद हुज़ूर ताजुश्शरिय्या की ज़ात थी कि आप जहाँ से गुज़र जाते आपकी दीदार के लिए ऐसी भीड़ जमा हो जाती कि लोग तअज्जुब करने लगते और जब आप का विसाल हुआ तो आखिरी दीदार के लिए बरेली शरीफ़ में इतने लोग जमा हो गये कि उस से पहले किसी के इंतिक़ाल पर ऐसी भीड़ कभी जमा नहीं हुई थीा
कैसा भी वक़्त आ जाये मगर उसे हर हाल में सच ही बोलना चाहिये
सबक़
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