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namaz ko jamat se padhna or 5 waqt ki namaj ka bayan (what is namaz?) Part-11

namaz ko jamat se padhna or 5 waqt ki namaj ka bayan (what is namaz?) Part-11

हिस्सा-11

नमाज़

पांच वक़्त की नमाज़ जमाअत से पढ़ने की फ़ज़ीलत

उम्मीद करते है कि तमाम मिम्बरान,फराइज़े नमाज़, शराइत़े नमाज़, वाजिब, सुन्नत,मुस्तहब वगैरह पढ़ लिये होगे, आज की पोस्ट में आप पढ़ेंगे कि कितने वक़्त की नमाज़ हम पर हर रोज़ फर्ज़ है और जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने की फ़ज़ीलत

namaz ko jamat se padhna or 5 waqt ki namaj ka bayan


हर अक़िल बालिग़ मुसलमान मर्द औरत पर 24 घन्टों में टोटल 5 वक़्त की नमाज़ फर्ज़ है उसके नाम येह हैं

  1. फजर
  2. ज़ुहर
  3. असर
  4. मग़रिब
  5. इशा

इन पांच वक़्तों की नमाज़ हर आक़िल बालिग मुसलमान मर्द औरत पर फर्ज़ है ,इस में काहिली सुसती नहीं करना चाहिए क्योंकि ये नमाज़ किसी भी ह़ाल में माफ़ नहीं है अल्लाह तआला क़ुरआन मजीद में इरशाद फरमाता है कि

तर्जुमा- क़ुरआन:--- बेशक नमाज़ मुसलमानों पर वक़्त बांधा हुआ फर्ज़ है

📕📚पारा 5, सूर ए  निसा आयत 103

बीच की नमाज़

यानि हर नमाज़ का वक़्त मुक़र्रर है तो जब भी नमाज़ का वक़्त आ जाऐ पाबंदी से नमाज़ अदा करना चाहिए इस में काहिली सुसती नहीं करना चाहिए अल्लाह तआला दूसरी जगह इरशाद फरमाता है

तर्जुमा क़ुरआन:---  निगेहबानी करो सब नमाज़ों की और बीच की नमाज़ की और अल्लाह के हुज़ूर अदब से खड़े रहो

📕📚पारा 2 सूर ए बक़रा आयत नं 238

इस आयत में भी सब नमाज़ों को पाबंदी से अदा करने का हुक्म दिया जा रहा है और बीच की नमाज़ की भी ताकीद आई है कि इसे भी पाबंदी से पढ़ो, बीच की नमाज़ से मुराद असर की नमाज़ है बुखारी शरीफ़ में है कि

ह़दीस:--- दरमियानी नमाज़ से मुराद असर की नमाज़ है

📕📚बुखारी शरीफ़ जिल्द 4 सफह 216 ह़दीस 6396

नमाज़े असर की ताकीद की ज़ाहिरी वजह ये समझ में आती है कि एक तो उस वक़्त दिन और रात के फरिश्ते जमा होते हैं

📕📚बुखारी शरीफ़ जिल्द 4 सफह 549 ह़दीस 7429

दूसरी वजह कि उस वक़्त कारोबार की मसरूफियत का वक़्त होता है तो उस ग़फ़लत के वक़्त में नमाज़ की पाबंदी करना ज़्यादा अहम है अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है

तर्जुमा क़ुरआन:--- और नमाज़ क़याम करो

📕📚पारा 1 सूर ए बक़रा आयत नं 43

इस आयत में यहूदियों से फरमाया गया है कि ऐ यहूदियों! तुम ईमान क़ुबूल कर के मुसलमानों की तरह़ पांच नमाज़ें उनके हुक़ूक़ और शराइत़ के साथ अदा करो,

📕📚तफ़्सीरे सिरातुल जिनान पारा 1 सूरह बक़रा आयत नं 43 तह़त

जमाअत के साथ नमाज़ अदा करने की तरग़ीब

इस आयत में जमाअत के साथ नमाज़ अदा करने की तरग़ीब भी है और अह़ादीस में जमाअत के साथ नमाज़ अदा करने की बहुत ही फ़ज़ीलत आई है, दो तीन ह़दीसें पेश करता हूँ पढ़ें और इल्म में इज़ाफ़ा करें- ह़ज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया है

ह़दीस:---- जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ना तन्हा नमाज़ पढ़ने से सत्ताइस दरजा ज़्यादा फ़ज़ीलत रखता है

📕📚बुखारी शरीफ़ जिल्द 1 सफह 232 ह़दीस 645

माशाअल्लाह -सुब्हान अल्लाह जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ना तन्हा नमाज़ पढ़ने से 27 दरजा ज़्यादा फ़ज़ीलत है,अगर हम जमाअत से अल्लाह की रिज़ा के लिए नमाज़ पढ़ते हैं तो अल्लाह हमारे गुनाहों को माफ़ फरमा देगा ह़दीस शरीफ़ में है कि

ह़दीस:--- जिसने कामिल (यानि मुकम्मल ) वुज़ू किया फिर फर्ज़ नमाज़ के लिए चला और इमाम के साथ नमाज़ पढ़ी उसके गुनाह बख़्श दिऐ जायेंगे 

📕📚शुअबुल ईमान जिल्द 3 सफह 9 ह़दीस 2727


माशाअल्लाह जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने से कैसे हम गुनाहों से पाक हो रहे हैं ये सब अल्लाह की महरबानियां और रसूल का करम है हम गुनहगारों पर ,अब एक ह़दीस जमाअत में सुसती जमाअत से नमाज़ न पढ़ने के तआल्लुक़ से पढ लें, ह़ज़रते अबू ह़ुरैरह से रिवायत है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया

ह़दीस:--- मुनाफ़ीक़ीन पर सबसे ज़्यादा भारी इशा और फजर की नमाज़ है, और वोह जानते कि इस में क्या है? यानि कितना सवाब है तो घसिटते हुए आते और बेशक मैंने इरादा किया कि नमाज़ क़ायम करने का हुक्म दूं फिर किसी को हुक्म करूँ कि लोगों को नमाज़ पढ़ाऐ और मैं अपने साथ कुछ लोगों को जिनके पास लकड़ियों के घठ्ठे हों उनके पास लेकर जाऊँ जो नमाज़ में हाज़िर नहीं होते और उनके घर उन पर आग से जला दूं

📕📚मुस्लिम शरीफ़ जिल्द 1 सफह 327 ह़दीस 252/651


अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर, हम सबको पाबंदी से नमाज़ अदा करना चाहिए, हर चीज़ की एक अलामत (पहचान)होती है और ईमान की अलामत (पहचान) नमाज़ है और क़यामत के दिन सबसे पहले बन्दे का हिसाब नमाज़ से शुरू होगा ,हर हाल में नमाज़ पढ़ें और पाबंदी से नमाज़ पढ़ें,जिसने नमाज़ छोड़ दी,उसका कोई दीन नहीं नमाज़ दीन (धर्म )का सुतून है,नमाज़ मोमिन की मेराज है,नमाज़ रूह़ की ग़िज़ा है,नमाज़ तमाम परेशानियों को दूर करने का ज़रिआ है

अल्लाह तआला हम सबको पंज वक़्ता नमाज़ पढ़ने की तौफ़ीक़ अता फरमाये,


नमाज़े फजर और उसके ज़रुरी मसाइल

फजर की नमाज़ में कुल 4 रकाअत हैं

02 रकाअत सुन्नते मुअक्किदा

02 रकाअत फर्ज़

फजर नमाज़ की 2 रकाअत, सुन्नते मुअक्किदा की फ़ज़ीलत

ह़ज़रते आएशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा से रिवायत है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया

ह़दीस:--- फजर की दो रकाअतें दुनिया व माफीहा यानि जो कुछ दुनिया में है उससे बेहतर है

📕📚सही मुस्लिम शरीफ़ सफह 360 ह़दीस 725


ह़ज़रते अब्दुल्लाह इब्ने उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हू से रिवायत है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया

ह़दीस:--- फजर की दोनों रकाअतों को लाज़िम कर लो,कि उसमें बड़ी फ़ज़ीलत है


📕📚अत्तरग़ीब वत्तरहीब जिल्द 1 सफह 223 ह़दीस 3

हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया है कि

ह़दीस:--- फजर की सुन्नतें न छोड़ो अगर'चेह तुम पर दुश्मन के घोड़े आ पड़ें

📕📚सुनन अबू दाऊद जिल्द 2 सफह 31 ह़दीस 1258


फजर का वक़्त

फजर की नमाज़ का वक़्त सुब्ह सादिक़ से तुलूअ आफ़ताब (सूरज निकलने )तक है,

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 447


सुब्हे सादिक़ एक रौशनी है जो जहाँ से आज आफ़ताब तुलूअ होने वाला है उसके ऊपर आसमान के किनारे में पूरब की जानिब में नज़र आती है,और आहिस्ता आहिस्ता बढ़ती जाती है यहाँ तक कि तमाम आसमान में फैल जाती है और उजाला हो जाता है,फजर की नमाज़ का वक़्त कम से कम 1 घंटा और 18 मिनट रहता है और ज़्यादा से ज़्यादा 1 घंटा और 35 मिनट रहता है

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 447/448


फजर नमाज़ के मुतअल्लिक़ अहम वो ज़रुरी मसाइल

मस्अला:- मर्दों के लिए अव्वल वक़्त में फजर की नमाज़ पढ़ने के बजाए ताख़ीर (देरी )करना मुस्तहब है यानि इतनी देर करना कि अस्फ़ार हो जाए यानि इतना उजाला फैल जाए कि ज़मीन रोशन हो जाए और आदमी एक दूसरे को आसानी से पहचान सकें

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 451


मस्अला:- मर्दों के लिए नमाज़े फजर अस्फ़ार में ऐसे वक़्त पढ़ना मुस्तहब है कि 40 से 60आयतें तरतील यानि ठहेर ठहेर कर (Reciting Slowly) से पढ़ सकें,और सलाम फेरने के बाद फिर इतना वक़्त बाकी रहे कि अगर किसी वजह से नमाज़ में कोई ख़राबी हो जाऐ और फिर से नमाज़ पढ़नी पड़े तो वुज़ू कर के तरतील यानि ठहेर ठहेर कर 40 से 60 आयतों तक दोबारा पढ़ सके

📕📚दुर्रे मुख़्तार जिल्द 2 सफह 30

📕📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 51

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 2 सफह 365

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 451


मस्अला:- औरतों के लिए हमेशा फजर की नमाज़ अव्वल वक़्त में पढ़ना मुस्तहब है,बाकी सब नमाज़ों में बेहतर है कि मर्दों की जमाअत का इंतिज़ार करें जब जमाअत पूरी हो जाए तब पढ़ें

📕📚दुर्रे मुख़्तार जिल्द 2 सफह 30

📕📚 फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 2 सफह 366

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 452


मस्अला:- नमाज़े फजर में इतनी ताख़ीर (देरी )करना मकरूह है कि आफ़ताब तुलूअ यानि सूरज निकलने का शक हो जाए

📕📚दुर्रे मुख़्तार जिल्द 2 सफह 30

📕📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 51

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 451


मस्अला:- सब सुन्नतों में क़वी तर (महत्वपूर्ण )फजर की सुन्नत है,, यहां तक कि बाज़ (चंद )अइम्म ए दीन ने इसको वाजिब कहा है,फजर की सुन्नतों की मशरूइयत का दानिस्ता इंकार करने वाले की तकफीर की जाएगी (यानि काफिर कहा जाऐगा) लिहाज़ा येह सुन्नतें बिला उज्र बैठकर नहीं हो सकतीं इसके अलावा येह सुन्नतें सवारी पर और चलती गाड़ी पर भी नहीं हो सकती, इन बातों में सुन्नते फजर का हुकुम मिस्ले वाजिब के हैं यानि वाजिब की तरह़ है

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 44

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 4 सफह 663


मस्अला:--- फजर की सुन्नम की पहली रकाअत में सूर ए फातिहा (अल्हम्दु शरीफ़) के बाद सूरह काफिरून (क़ुल-या-अय्युहल-काफिरून) और दूसरी रकाअत में सूर ए फातिहा के बाद सूर ए इख़लास (क़ुल-हुवल्लाहु-अह़द) पढ़ना सुन्नत है 

📕📚अत्तरग़ीब वत्तरहीब जिल्द 1 सफह 224 ह़दीस 5

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 4 सफह,660/665


मस्अला:- फर्ज़ नमाज़ की जमाअत क़ायत (शुरू ) हो जाने के बाद किसी भी नफ़्ल और सुन्नत का शुरू करना जायज़ नहीं सिवाए फजर की सुन्नत के,फजर की सुन्नत में यहां तक हुक्म है कि अगर येह मालूम है यानि (यक़ीन - विशवास) है कि सुन्नत पढ़ने के बाद जमाअत मिल जाएगी अगर'चेह क़ा'दा (तशह्हुद अत्तहियात) ही में शामिल होगा तो जमाअत से हटकर मस्जिद के किसी हिस्से में सुन्नत अकेला पढ़ ले और फिर जमाअत में शामिल हो जाए

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 614

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3/4 सफह 665/456


मस्अला:- अगर फजर की जमाअत क़ायम (शुरू) हो चुकी है और येह जानता है कि अगर सुन्नत पढ़ता हूं तो जमाअत जाती रहेगी तो सुन्नत न पढ़े और जमाअत में शरीक हो जाए, क्योंकि सुन्नत के लिए जमाअत को तर्क करना यानि छोड़ना नाजाइज़ और गुनाह है 

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 613/370

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 456


मस्अला:- फजर की सुन्नत पढ़ने में अगर जमाअत छूट जाने का ख़ौफ़ (भय )हो तो नमाज़ के सिर्फ वही अरकान अदा करें जो फर्ज़ और वाजिब हैं सुन्नत और मुस्तहब को छोड़ दे,यानि"सना"तअव्वुज़"(आउज़बिललाह) "तस्मिया"(बिस्मिल्लाह) यानि "सना" आउज़बिल्लाह और बिस्मिल्लाह छोड़ दे,और रुकूअ और सजदा में सिर्फ एक मरतबा तस्बीह पढ़े

📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 103


मस्अला:-अगर फर्ज़ से पहले फजर की सुन्नत नहीं पढ़ी है और फर्ज़ की जमाअत के बाद तुलूअ आफ़ताब (सूरज निकलने )तक अगर'चेह वसीअ वक़्त बाक़ी है और अब पढ़ना चाहता है तो जाइज़ नहीं

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 620

📕📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 53

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 455


मस्अला :- सुन्नतों को आफ़ताब तुलूअ होने के बाद यानि आफ़ताब बुलंद होने के बाद क़ज़ा करे,यानि सूरज निकलने के कम से कम 20 मिनट के बाद पढ़े- फर्ज़ के बाद,तुलूअ आफ़ताब (सूरज निकलने ) से पहले पढ़ना जाइज़ नहीं

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 616/ 462


मस्अला:- अगर फजर की नमाज़ क़ज़ा हो गई और उसी दिन निस्फुन्निहार के बाद (दोपहर सूरज ढलने) के बाद या उस दिन के बाद पढ़ता है तो अब सुन्नत की क़ज़ा नहीं हो सकती सिर्फ फर्ज़ की क़ज़ा करे,

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 620

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 4 सफह 664

आसानी से यूँ समझें कि अगर फजर क़ज़ा हो गई 

आसानी से यूँ समझें कि अगर फजर क़ज़ा हो गई और उसी दिन दस ग्यारह बजे तक यानि ज़वाल से पहले पहले पढ़ता है तो सुन्नत की भी क़ज़ा करे यानि सुन्नत भी पढ़े और अगर ज़ुहर में या उसके बाद पढ़ता है तो सिर्फ फर्ज़ पढ़ेगा

मस्अला:- तुलूअ फजर (सुब्हे सादिक़) यानि फजर का वक़्त शुरू होने के बाद से लेकर तुलूअ आफ़ताब (सूरज निकलने ) के बाद - और आफ़ताब (सूरज) बुलंद होने तक कोई भी नफ़्ल नमाज़ जाइज़ नहीं

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 455


सूरज निकलने के कम से कम 20 मिनट बाद पढ़ सकता है

मस्अला:- तुलूअ फजर (सुब्हे सादिक़) यानि फजर का वक़्त शुरू होने के बाद से तुलूअ आफ़ताब (सूरज निकलने ) तक क़ज़ा नमाज़ पढ़ सकता है लेकिन उस वक़्त मस्जिद में क़ज़ा न पढ़े क्योंकि लोग नफ़्ल पढ़ने का गुमान (ख़्याल) करेंगे और अगर किसी ने उसको टोक दिया तो बताना पड़ेगा कि नफ़्ल नहीं बल्कि क़ज़ा पढ़ रहा हूँ और क़ज़ा ज़ाहिर करना मना है लिहाज़ा उस वक़्त घर में क़ज़ा पढ़े

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 624


मस्अला:- फजर की नमाज़ का पूरा वक़्त अव्वल से आख़िर तक बिला किराहत है यानि फजर की नमाज़ अपने वक़्त के जिस हिस्से में पढ़ी जाएगी हरगिज़ मकरूह नहीं

📕📚बह़रुर राएक़ जिल्द 1 सफह 432

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 2 सफह 351

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 457


यानि फजर का वक़्त शुरू होने के बाद से सूरज निकलने तक किसी भी वक़्त फजर की नमाज़ पढ़ सकता है,

मस्अला:- किसी शख़्स को गुस्ल की हाजत है अगर वोह गुसल (स्नान) करता है तो फजर की नमाज़ क़ज़ा हो जाती है यानि इतना कम वक़्त है तो वह शख्स़ तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़ ले और गुस्ल करने के बाद नमाज़ का एआदा करे यानि फिर से पढ़े

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 371


मस्अला:- तुलूअ आफ़ताब यानि सूरज निकलने के वक़्त कोई भी नमाज़ जाइज़ नहीं,न फर्ज़,न वाजिब,न सुन्नत,न नफ़्ल न क़ज़ा बल्कि तुलूअ आफ़ताब (सूरज निकलने) के वक़्त सजद ए तिलावत और सजद ऐ सहव् भी नाजाइज़ है लेकिन अवामुन्नास (आम जनता के लोग ) से कोई शख्स़ तुलूअ आफ़ताब के वक़्त फजर की नमाज़ क़ज़ा करता हो तो उसको नमाज़ पढ़ने से रोकना नहीं चाहिए बल्कि नमाज़ के बाद उसको मस्अला समझा देना चाहिए कि तुम्हारी नमाज़ न हुई लिहाज़ा आफ़ताब बुलंद होने के बाद यानि तुलूअ आफ़ताब के 20 मिनट के बाद फिर से नमाज़ पढ़ ले

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 714

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 454


मस्अला:- लेकिन अगर तुलूअ आफ़ताब (सूरज निकलने )के वक़्त ही आयते सजदा पढ़ी तो बेहतर है कि सजदे में ताख़ीर करे लेकिन उसी वक़्त सजद ए तिलावत कर लिया तो जाइज़ है,

📕📚आलमगीरी जिल्द 1 सफह 48

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 454


मस्अला:- और अगर आयते सजदा गैर मकरूह वक़्त में पढ़ा था और सजद ए तिलावत मकरूह वक़्त में कर रहा है तो ये मकरूहे तैह़रीमी है

📕📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 52

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 454


मस्अला:- तुलूअ फजर (सुब्हे सादिक़) यानि फजर का वक़्त शुरू होने के बाद से तुलूअ आफ़ताब (सूरज निकलने ) के वक़्त में ज़िक्रे इलाही के सिवा हर दुनियावी काम मकरूह है

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 1 सफह 197


मस्अला:- आफताब तुलूअ यानि सूरज निकलने के वक़्त क़ुरआन शरीफ़ की तिलावत बेहतर नहीं लिहाज़ा बेहतर येह है कि तुलूअ आफ़ताब के वक़्त 20 मिनट तक तिलावते क़ुरआन के बदले ज़िक्र और दुरुद शरीफ़ में मशगूल रहे

📕📚दुर्रे मुख़्तार जिल्द 2 सफह 44

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह  455


मस्अला:- तुलूअ आफ़ताब (सूरज निकलने) के वक़्त तिलावते क़ुरआन मकरूह है 

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 2 सफह 359


मस्अला:- फजर की सुन्नत, वाजिब, और फर्ज़ नमाज़ चलती ट्रेन में नहीं हो सकती,अगर ट्रेन न ठहरे और नमाज़ का वक़्त भी निकल रहा हो तो चलती ट्रेन पर पढ़ ले और जब ट्रेन ठहरे तब नमाज़ का एआदा कर ले यानि फिर से पढ़ ले 

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 44

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 4 सफह 673


 नमाज़े ज़ुहर और उसके कुछ ज़रुरी मसाइल

आइये सबसे पहले जानते हैं कि ज़ुहर में कुल कितनी रकाअतें हैं तो ज़ुहर में कुल 12 रकाअत हैं वोह इस तरह हैं:-

  • सबसे पहले 4 रकाअत सुन्नते मुअक्किदा
  • फिर उसके बाद 4 रकाअत फर्ज़
  • फिर उसके बाद:-- 2 सुन्नते मुअक्किदा
  • फिर 2 रकाअत नफ़्ल
  • टोटल 12 रकाअत हुईं
  • ज़ुहर का वक़्त

ज़ुहर का वक़्त सूरज ढ़लने के बाद शुरू होता है और ठीक दोपहर के वक़्त किसी चीज़ का जितना साया (परछाई ) होती है उसके अलावा उसी चीज़ का दुगना डबल साया हो जाऐ तो ज़ुहर का वक़्त ख़त्म हो जाता है

📕📚मुख़्तसरुल क़ुदूरी सफह 153

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 449


ज़ुहर की सुन्नतों की फ़ज़ीलत

हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया

ह़दीस:- जो शख़्स ज़ुहर से पहले चार रकाअत और बाद में चार रकाअत को पाबंदी से पढ़े तो अल्लाह तआला उसको आग़ पर ह़राम फरमा देगा, यानि जहन्नम की आग उस पर ह़राम फरमा देगा

📕📚तिर्मिज़ी शरीफ़ जिल्द 1 सफह 435 ह़दीस 427

📕📚सुनन निसाई सफह 310 ह़दीस 1813


हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया

ह़दीस:- जिस ने ज़ुहर के पहले चार रकाअत पढ़ीं गोया उसने तहज्जुद की चार रकाअतें पढ़ीं

📕📚अल मोजमुल अवसत जिल्द 4 सफह 386 ह़दीस 6332


ज़ुहर नमाज़ के मुतअल्लिक़ ज़रुरी मसाइल

मस्अला:- ज़ुहर की नमाज़ का पूरा वक़्त अव्वल से आखि़र तक बिला किराहत है यानि ज़ुहर की नमाज़ अपने वक़्त के जिस हिस्से में पढ़ी जाएगी अस्लन मकरूह नहीं है

📕📚बह़रुर राएक़ जिल्द 1 सफह 432

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 2 सफह 351

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 547

यानि ज़ुहर का वक़्त शुरू होने के बाद और और ज़ुहर का वक़्त ख़त्म होने से पहले तक किसी भी वक़्त ज़ुहर नमाज़ पढ़ सकते हैं


मस्अला:- हदीस शरीफ़ और फ़िक़ह के हुक्म के मुताबिक़ (अनुसार )गर्मी के दिनों (Summer Days) में ज़ुहर की नमाज़ ताख़ीर से देर से (Late) पढ़ना मुस्तहब और मसनून है,और ताख़ीर से पढ़ने से  मुराद येह है कि वक़्त के दो हिस्से किऐ जाऐं पहला आधा हिस्सा छोड़ कर दूसरे आधे हिस्से में पढ़ें

📕📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 52

📕📚दुर्रे मुख़्तार व रद्दुल मुह़तार जिल्द 2 सफह 35

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 227

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 452


बुखारी और मुस्लिम ह़ज़रत अनस रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत करते हैं कि

ह़दीस:- हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब गर्मी होती तो नमाज़े ज़ुहर ठंडी करते और जब सर्दी होती तो जल्दी पढ़ लेते

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 2 सफह 367


बुखारी और मुस्लिम ह़ज़रते अबू ह़ुरैरह रज़ियल्लाहु तआला अन्हू से रिवायत करते हैं कि

ह़दीस:---हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि ज़ुहर को ठंडा कर के पढ़ो कि सख़्त गर्मी जहन्नम के जोश से है

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 211/ 367


सही बुखारी शरीफ़ बाबुल अज़ान में है कि ह़ज़रते अबू ज़र गिफ़ारी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु रिवायत करते हैं कि हम हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के साथ एक सफ़र में थे मोअज़्ज़िन ने इरादा किया तो फरमाया, ठंडा कर, यहाँ तक कि साया (परछाई ) टीलों के बराबर हो गया उस वक़्त अज़ान की इजाज़त फरमाइ और इरशाद फरमाया कि गर्मी की शिद्दत (सख़्ती )जहन्नम की सांस से है, तो जब गर्मी सख़्त हो, ज़ुहर को ठंडे वक़्त पढ़ो

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 2, सफह 211/367


मस्अला:- गर्मी के दिनों में ज़ुहर की नमाज़ ताख़ीर (देरी )से पढ़ना मुस्तहब है, लेकिन अगर गर्मियों के दिनों में ज़ुहर की नमाज़ की जमाअत अव्वल वक़्त में होती हो,तो मुस्तहब वक़्त के लिए जमाअत तर्क करना यानि छोड़ना जाइज़ नहीं लिहाज़ा अव्वल वक़्त में जमाअत के साथ पढ़ ले,

📕📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 52

📕📚दुर्रे मुख़्तार व रद्दुल मुह़तार जिल्द 2 सफह 35

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 452,


मस्अला:- अगर किसी ने ज़ुहर की जमाअत के पहले की 4 रकाअत सुन्नते मुअक्किदा न पढ़ी हो,और जमाअत क़ायम हो जाऐ तो जमाअत में शरीक हो जाए जमाअत के बाद 2 रकाअत सुन्नत पढ़ने के बाद ये जो सुन्नत छूट गई थी वोह पढ़ ले

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 617


मस्अला:- अगर 4 रकाअत सुन्नते मुअक्किदा पढ़ रहा है और जमाअत क़ायम हो जाऐ तो दो रकाअत पढ़ कर सलाम फेर दे,और जमाअत में शरीक़ हो जाऐ और जमाअत के बाद 2 रकाअत पढ़ने के बाद चार रकाअत नये सिरे से फिर से पढ़े

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 611


मस्अला:- ज़ुहर की नमाज़ के फर्ज़ से पहले जो 4 रकाअत सुन्नते मुअक्किदा है वोह एक सलाम से पढ़े और क़ादा ए ऊला पहला क़ादा में सिर्फ अत्तहिय्यात पढ़कर तीसरी रकाअत के लिए खड़ा हो जाना चाहिए और अगर भूल कर दुरुद शरीफ़ "अल्लाहुम्मा सल्ले अला मोहम्मदिन" या "अल्लाहुम्मा सल्ले अला सय्येदेना" पढ़ लिया तो सजद ए सहव वाजिब हो जायेगा ,इसके अलावा तीसरी रकाअत के लिए खड़ा हो तो सना और ताऊज़ (आउज़बिल्लाह )भी न पढ़े, ज़ुहर की नमाज़ के फर्ज़ के पहले की इन सुन्नतों की चारों रकाअत में सूर ए फ़ातिहा के बाद कोई सूरत भी ज़रुर पढ़ें

📕📚दुर्रे मुख़्तार जिल्द 2 सफह 550

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 636

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 4 सफह 667


मस्अला:- किसी को ज़ुहर की नमाज़ की जमाअत की सिर्फ एक ही रकाअत मिली यानि वोह शख़्स चौथी रकाअत में जमाअत में शामिल हुआ,तो इमाम के सलाम फेरने के बाद वोह तीन रकाअतें इस तरह़ पढ़ें

इमाम के सलाम फेरने के बाद खड़ा हो जाए, अगर पहले "सना" न पढ़ी थी तो अब "सना" पढ़ ले और अगर पहले "सना" पढ़ चुका है तो अब सिर्फ "आउज़बिल्लाह" से शुरू करें और पहली रकाअत में सूर ए फातिहा और सूरत दोनों पढ़कर रुकूअ और सजदा कर के का'दा में बैठे और का'दा में सिर्फ अत्ताहियात पढ़कर खड़ा हो जाए,फिर दूसरी रकाअत में भी सूर ए फातिहा और सूरत दोनों पढ़कर रुकूअ और सजदा कर के बगैर का'दा किए हुए तीसरी रकाअत के लिए खड़ा हो जाए और तीसरी रकाअत में सिर्फ अल्हम्दु शरीफ़ पढ़कर रुकूअ और सजदा कर के कादा ए आख़ीरा कर के नमाज़ मुकम्मल कर ले

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 393 / 396

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3

📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 118


नोट:-- नमाज़े असर और इशा में अगर तीन रकाअत छूट जाए तो भी इसी तरतीब से पढ़ें

मस्अला:-फर्ज़ के पहले जो सुन्नते हैं उनको पढ़ लेने के बाद फर्ज़ नमाज़ पढ़ने तक किसी किस्म (प्रकार )की गुफ़्तगू (बातचीत ) नहीं करनी चाहिए क्योंकि सुन्नते कबलिया यानि फर्ज़ के पहले की सुन्नतें पढ़ने के बाद कोई ऐसा काम करना कि जिससे नमाज़ फासिद हो जाती है यानि कलाम (बातचीत ) करना, खाना पीना वगैरह, करने से सुन्नतों का सवाब कम हो जाता है, और बाज़ के नज़दीक सुन्नते ही जाती रहती हैं, लिहाज़ा कामिल (मुकम्मल )सवाब पाने के लिए और और जिनके नज़दीक सुन्नतें नहीं होती हैं, उस इख़्तिलाफ़ से बचने के लिए बेहतर है कि अगर सुन्नत और फर्ज़ के दरमियान किसी किस्म की बातचीत कर ली है,और अभी जमाअत क़ाइम होने में देर है कि जमाअत में शामिल होने में खलल न आऐगा, तो सुन्नतों का एआ़दा कर ले,यानि फिर से पढ़ ले, लेकिन फजर की सुन्नतों का एआ़दा करना जाइज़ नहीं

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 472


नमाज़े असर- और उसके कुछ ज़रूरी मसाइल

आइये सबसे पहले जानते हैं कि असर में कुल कितनी रकाअतें हैं तो नमाज़े असर में कुल 8 रकाअतें हैं वोह इस तरह हैं

  • सबसे पहले चार (4) रकाअतें सुन्नते गैर मुअक्किदा
  • उसके बाद चार (4) रकाअत फर्ज़
  • कुल 8 रकाअत हुईं

असर नमाज़ की सुन्नतों की फ़ज़ीलत

हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया

ह़दीस:- अल्लाह तआला उस शख़्स पर रह़म करे,जिस ने असर से पहले (यानि असर की फर्ज़ से पहले) चार रकाअतें पढ़ीं

📕📚सुनन अबी दाऊद शरीफ़ जिल्द 2 सफह 35 ह़दीस 1271


हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया

ह़दीस:--- जो असर (फर्ज़ ) से पहले चार रकाअतें पढे़ अल्लाह तआला उसके बदन को आग़ पर ह़राम फरमा देगा, 

📕📚अल मोजमुल कबीर जिल्द 23 सफह 281 ह़दीस 611


इसी तरह एक ह़दीस और है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने सहाब ए किराम के मजमा में जिस में ह़ज़रते उमर फारुक़े आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु भी थे, हुज़ूर ने फरमाया, जो असर से पहले चार रकाअतें पढे़ उसे आग़ न छुऐगी

📕📚अल'मोजमुल अवसत  जिल्द 2 सफह 77 ह़दीस 2580


असर की नमाज़ का वक़्त 

असर की नमाज़ का वक़्त ज़ुहर का वक़्त ख़त्म होने पर शुरू होता है और आफ़ताब (सूरज )के गुरुब होने (डूबने ) तक रहता है

📕📚मुख़्तसरुल क़ुदूरी सफह 154

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 450


इमाम इब्ने अबान हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि

ह़दीस:- "ज़ुहर" का वक़्त "असर" तक है,और "असर" का वक़्त "मगरिब" तक, और "मगरिब" का वक़्त "इशा" तक, और "इशा" का वक़्त "फजर" तक है,

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 2 सफह 320


असर नमाज़ के मुतअल्लिक़ कुछ ज़रुरी मसाइल

मस्अला:- असर की नमाज़ का वक़्त कम से कम एक घंटा 35 मिनट रहता है और ज़्यादा से ज़्यादा 2 घंटा 6 मिनट रहता है

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 450


मस्अला:- गुरुब आफ़ताब यानि सूरज डूबने के 20 मिनट पहले मकरुह वक़्त शुरू हो जाता है उस वक़्त कोई नमाज़ जाइज़ नहीं, न फर्ज़,न वाजिब, न सुन्नत,न क़ज़ा,न नफ़्ल बल्कि गुरुब आफ़ताब (सूरज डूबने )के वक़्त सजद ए तिलावत और सजद ए सहव भी जाइज़ नहीं

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 454


हाँ अगर उस दिन की असर नमाज़ नहीं पढ़ी तो सिर्फ असर के फर्ज़ पढ़ सकता है

मस्अला:- असर की नमाज़ में ताख़ीर (देरी ) मुस्तहब है, मगर इतनी ताख़ीर (देरी ) भी न करनी चाहिए कि आफ़ताब (सूरज )में जर्दी (पीलापन )आ जाए और आफ़ताब (सूरज )पर बे तकल्लुफ़ निगाह जम सके

📕📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 52


मस्अला:- तजुर्बे से ये बात साबित है कि आफ़ताब में जर्दी उस वक़्त आती है जब आफ़ताब गुरुब (सूरज डूबने )में 20 मिनट बाकी रहता है

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 5 सफह 138

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 452


मस्अला:- नमाज़े असर में अब्र यानि बादल (Cloud) के दिन यानि जिस दिन बदली हो,जल्दी करनी चाहिए लेकिन इतनी जल्दी न करनी चाहिए कि वक़्त से पहले पढ़ ले,अब्र (बादल )के दिन के अलावा बाकी दिनों में हमेशा ताख़ीर करना मुस्तहब है 

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 2 सफह 213


मस्अला:- असर की नमाज़ का मुस्तहब वक़्त हमेशा उसके वक़्त का निस्फे आख़िर है, मगर रोज़े अब्र ताज़ील चाहिए यानि बादल के दिन जल्दी पढ़ना चाहिए

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 2 सफह 352

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 453


मस्अला:-  असर का मुस्तहब वक़्त निस्फ़ आख़िर से मुराद येह है कि असर की नमाज़ के कुल वक़्त में से मकरुह वक़्त के 20 मिनट निकाल कर बाकी वक़्त के दो हिस्से करें और हिस्स ए अव्वल को छोड़कर हिस्स ए दौम से मुस्तहब वक़्त है हालांकि हिस्स ए अव्वल में भी कोई कराहत (नापसन्दीदगी ) नहीं

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 2 सफह 216

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 452


मस्अला:- गुरुब आफ़ताब यानि सूरज डूबने के 20 मिनट पहले का वक़्त ऐसा मकरूह वक़्त है कि उसमें कोई भी नमाज़ पढ़नी जाइज़ नहीं, लेकिन अगर उस दिन की असर की नमाज़ नहीं पढ़ी,तो उस वक़्त भी पढ़ ले ,अगरचे आफ़ताब गुरुब हो यानि (सूरज डूब )रहा हो, तब भी पढ़ ले लेकिन बिला उज्रे शरई इतनी ताख़ीर (देरी ) ह़राम है, हदीस में इसको मुनाफिक़ की नमाज़ फरमाया गया है

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 454


मस्अला:- जब सूरज को गुरुब (डूबने )में 20 मिनट बाकी रहे तब कराहत का वक़्त आ जायेगा, उस वक़्त आज की असर के सिवा हर नमाज़ मना हो जायेगा, 

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 2, सफह 215


यानि सिर्फ उसी दिन की असर के फर्ज़ पढ़ सकता है, असर की सुन्नत भी नहीं पढ़ सकता ,

मस्अला:---जब आफ़ताब गुरुब (यानि सूरज डूबने ) के क़रीब पहुंचे और कराहत का वक़्त आऐ उस वक़्त क़ुरआन मजीद की तिलावत बेहतर नहीं, कि बंद कर दी जाए और अज़कारे इलाहिया (अल्लाह का ज़िक्र )और दुरुद शरीफ़ वगैरह पढ़ा जाऐ उस वक़्त तिलावत मकरूह है

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 2 सफह  359

📕📚अहकामे शरीयत हिस्सा 2 मस्अला 52 सफह 31


मस्अला:- असर की नमाज़ के बाद नफ़्ल नमाज़ पढ़ना मना है, अगर उस वक़्त में नफ़्ल नमाज़ शुरू कर के तोड़ दी थी, उसकी क़ज़ा भी उस वक़्त में मना है,और अगर उस वक़्त उसकी क़ज़ा पढ़ ली तो न काफी है, क़ज़ा उसके ज़िम्मे से साक़ित न हुई यानि बाक़ी रही, 

📕📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 53

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 456


मस्अला:- असर की नमाज़ के बाद आफ़ताब गुरुब होने के 20 मिनट पहले तक क़ज़ा नमाज़ पढ़ सकता है, 

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 2 सफह 351 


मस्अला:- असर की सुन्नतें शुरू की थीं और जमाअत क़ाइम हो गई तो 2 रकाअत पढ़कर सलाम फेर दे, और जमाअत में शरीक हो जाए, सुन्नतों के एआदे की ज़रूरत नहीं, 

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 611


मस्अला:- एक शख़्स असर की जमाअत की चौथी रकाअत में शामिल हुआ, इमाम के सलाम फेरने के बाद वोह अपनी छूटी हुई तीन रकाअतें इस तरह पढ़ें कि,

इमाम के सलाम फेरने के बाद खड़ा हो जाऐ और "सना" अगर पहले ना पढ़ी थी तो अब पढ़ ले वरना, आउज़बिल्लाह से शुरू करें और सूर ए फ़ातिहा (अल्हम्दु शरीफ़ )और कोई सूरत पढ़कर रुकूअ और सजदा कर के का'दा में बैठे और का'दा में सिर्फ अत्तहिय्यात पढ़कर खड़ा हो जाए, फिर दूसरी रकाअत में सूर ए फ़ातिहा (अल्हम्दु )और सूरत पढ़े और रुकूअ सजदा के बाद बगैर का'दा किए खड़ा हो जाए और तीसरी रकाअत में सिर्फ सूर ए फ़ातिहा (अल्हम्दु शरीफ़ )पढ़कर रुकूअ और सजदा कर के का'दा ए आख़ीरा कर के नमाज़ पूरी करे

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 393


यानि पहली रकाअत में सूर ए फ़ातिहा और सूरत पढ़े और रकाअत पूरी कर के का'दा करे, और का'दा में सिर्फ अत्तहिय्यात पढ़कर खड़ा हो जाऐ, दूसरी रकाअत में भी सूर ए फ़ातिहा (अल्हम्दु शरीफ़) और सूरत पढ़े और रकाअत पूरी कर के का'दा न करे, और खड़ा हो जाऐ, तीसरी रकाअत में सिर्फ सूर ए फ़ातिहा (अल्हम्दु शरीफ़ ) पढ़े और का'दा ए आख़ीरा कर के नमाज़ पूरी करे, 


मस्अला:- असर की नमाज़ के फर्ज़ के पहले जो 4 रकाअत सुन्नत है वोह सुन्नते गैर मुअक्किदा है, इन चारों रकाअतों को एक सलाम से पढ़ना चाहिए और 2 रकाअत के बाद का'द ए ऊला (पहला का'दा) करना चाहिए, और का'द ए ऊला (पहला का'दा ) में अत्तहियात के बाद दुरूद शरीफ़ भी पढ़ना चाहिए और तीसरी रकाअत के लिए जब खड़ा हो तो तीसरी रकाअत के शुरू में "सना" पूरी पढ़े, और "आउज़बिल्लाह" भी पूरा पढ़े, क्योंकि सुन्नते गैर मुअक्किदा मिस्ले नफ़्ल है यानि नफ़्ल की तरह है, और नफ़्ल नमाज़ का हर का'दा मिस्ले का'द ए आख़ीरा है,लिहाज़ा हर का'दा में अत्तहियात और दुरुद शरीफ़ पढ़ना चाहिए,और पहले का'दा के बाद वाली तीसरी रकाअत के शुरू में "सना" और तअव्वुज़ (आउज़बिल्लाह )भी पढ़ना चाहिए, और हर रकाअत में सूर ए फातिहा के बाद सूरत भी मिलाना चाहिए

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 469

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 4 सफह 667


नमाज़े मग़रिब - और उसके कुछ ज़रुरी मसाइल

आइये सबसे पहले रकाअत जानते हैं कि मग़रिब में कुल कितनी रकाअतें हैं,तो मग़रिब में कुल 7 रकाअतें हैं वोह इस तरह हैं

  • सबसे पहले, 3 रकाअत फर्ज़
  • फिर उसके बाद 2 रकाअत, सुन्नते मुअक्किदा
  • और फिर 2 रकाअत नफ़्ल
  • कुल हुईं सात (7) रकाअतें

मग़रिब नमाज़ का वक़्त

मग़रिब नमाज़ का वक़्त सूरज डूबने से, इशा का वक़्त शुरू होने तक है, मग़रिब का वक़्त, कम से कम 1 घंटा 28 मिनट और ज़्यादा से ज़्यादा 1 घंटा 35 मिनट रहता है , हर रोज़ फजर नमाज़ और मग़रिब नमाज़ के वक़्त की मिक़दार बराबर होती है यानि जितने घंटा रोज़ाना फजर का वक़्त रहता है उतना ही मग़रिब का वक़्त होता है,न ज़्यादा और न कम होता है,तफ़सीली मालूमात के लिए देखें

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3


मग़रिब नमाज़ के मुतअल्लिक़ कुछ ज़रुरी मसाइल

मस्अला:- मग़रिब की अज़ान के बाद तीन छोटी आयतें या एक बड़ी आयत पढ़ने के वक़्त की मिक़दार (मात्रा) जितना वक़फ़ा (अंतर Interval) कर के नमाज़ की जमाअत के लिए इक़ामत (तकबीर) दे देनी चाहिए

📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 124

यानि मग़रिब की अज़ान के बाद जितना वक़्त तीन छोटी आयत या एक बड़ी आयत पढ़ने में जितना वक़्त लगता है इतनी देर के बाद तकबीर बोल देनी चाहिए

मस्अला:-  मग़रिब की अज़ान में बिला वजह शरई के, ताख़ीर करना सुन्नत के ख़िलाफ़ है

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 2 सफह 355

मस्अला:- अगर एक नुकता भर सूरज का किनारा गुरुब होने (डूबने )को बाकी था और नमाज़े मग़रिब की तकबीरे तैह़रीमा कही तो नमाज़ न हुई

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 2 सफह 360

मस्अला:- गुरुब आफ़ताब और मग़रिब के फर्ज़ के दरमियान नफ़्ल नमाज़ पढ़ना मना है

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 456


मस्अला:- मग़रिब की नमाज़ में इतनी देर करना कि छोटे-छोटे सितारे भी चमक आयें मकरुह  है

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 2 सफह 226


मस्अला:- गुरुब आफ़ताब के बाद मग़रिब की नमाज़ पढ़ने में दो रकाअत पढ़ने के वक़्त की मिक़दार (मात्रा ) से ज़्यादा दैर करना मकरुहे तन्ज़ीही है,और इतनी देर करना कि सितारे गुथ गए, तो मकरुहे तह़रीमी है, लेकिन शरई उज्र मसलन सफर या मरज़ बीमारी की वजह से इतनी ताख़ीर हो गई तो हरज (नुकसान ) नहीं

📕📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 52

📕📚दुर्रे मुख़्तार जिल्द 2 सफह 33

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 453


मस्अला:- मग़रिब के फर्ज़ के बाद दोनों सुन्नतें जल्दी पढ़ लेनी चाहिए और फर्ज़ व सुन्नत के दरमियान कलाम (बातचीत ) न करना चाहिए

📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 126


ह़दीस:- ह़ज़रते ह़ुज़ैफा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि

जो शख़्स बाद मग़रिब यानि मग़रिब की फर्ज़ पढ़ने के बाद कलाम (बातचीत ) करने से पहले दो रकाअतें पढे़, उसकी नमाज़ इल्लीय्यीन में उठाई जाऐगी

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 4 सफह 661


मस्अला:- जिस मुक़तदी को मग़रिब की तीसरी रकाअत मिली हो,वोह जब अपनी छूटी हुई दो रकाअतें पढे़,तब पहली रकाअत के बाद का'दा ज़रूर करे, यानि एक 1 रकाअत के बाद का'दा करे और उसमें सिर्फ अत्तहियात पढ़ कर खड़ा हो जाए, फिर दूसरी रकाअत पढ़े, और का'द ए आख़ीरा कर के नमाज़ मुकम्मल करे

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 392

📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 126


इशा की नमाज़ - और उसके कुछ ज़रुरी मसाइल

आइये सबसे पहले इशा में कुल कितनी रकाअतें हैं जानते हैं

  • इशा में कुल 17 रकाअतें हैं वोह इस तरह हैं
  • सबसे पहले चार (4) रकाअत सुन्नते गैर मुअक्किदा
  • फिर उसके बाद चार (4) रकाअत फर्ज़
  • फिर दो (2) रकाअत सुन्नते मुअक्किदा
  • फिर दो (2) रकाअत नफ़्ल
  • फिर तीन ( 3) रकाअत वित्र वाजिब
  • फिर दो (2) रकाअत नफ़्ल
  • कुल हुईं सत्तरह (17) रकाअत

📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 127

इशा नमाज़ की फ़ज़ीलत

ह़दीस:- हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया है कि

जिस ने इशा की नमाज़ जमाअत के साथ पढ़ी तो गोया उसने आधी रात इबादत की और जिसने फजर की नमाज़ पढ़ी तो गोया पूरी रात इबादत की

📕📚सहीह मुस्लिम शरीफ़ जिल्द 2 ह़दीस 1491

ह़दीस:- हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया है कि

मुनाफ़िक़ों पर इशा और फजर की नमाज़ से ज़्यादा कोई नमाज़ भारी नहीं,अगर इनको इशा और फजर की नमाज़ का सवाब मालूम हो जाऐ तो अगर चल नहीं सकते तो घुटनों के बल घसीटते हुए आते

📕📚बुखारी शरीफ़ जिल्द ह़दीस 657


ह़दीस:- हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया

फजर और इशा में चल कर मस्जिद आने वालों को क़यामत के दिन कामिल नूर (भरपूर उजाले)की बशारत दे दो

📕📚तर्मिज़ी शरीफ़ ह़दीस 223

📕📚सुनन अबी दाऊद शरीफ़ ह़दीस 561


इशा नमाज़ का वक़्त

इशा नमाज़ का वक़्त मग़रिब का वक़्त खत्म होते ही शुरू हो जाता है और तुलू ए फजर (सुबह सादिक) तक रहता है

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 2 सफस 226


इशा नमाज़ के मुतअ़ल्लिक़ ज़रुरी मसाइल

मस्अला:- ईशा की नमाज़ में तिहाई रात तक ताख़ीर (देरी ) करना मुस्तहब है और आधी रात तक ताख़ीर (देरी )मुबाह है 

📕📚दुर्रे मुख़्तार जिल्द 2 सफह 32

📕📚बह़रुर राएक़ जिल्द 1 सफह 430

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 453


मस्अला:-- नमाज़े ईशा की निस्फ़ शब (आधी रात )से ज़यादा ताख़ीर (देरी )मकरूह है 

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 2 सफह 355

📕📚बहारे बहारे जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 453


मस्अला:- अब्र (बादल )के दिन असर और इशा में ताज़ील (जल्दी )करना मुस्तहब है और बाकी नमाज़ों में ताख़ीर (देरी ) मुस्तहब है

📕📚अल हदाया जिल्द 1 सफह 41

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 453


मस्अला:- अगरचे ईशा की फर्ज़ नमाज़ और वित्र नमाज़ का एक ही वक़्त है लेकिन दोनों में बाहम आपस में तरतीब फर्ज़ है,अगर किसी ने ईशा के फर्ज़ से पहले वित्र की नमाज़ पढ़ ली तो वित्र की नमाज़ होगी ही नहीं वित्र कों फर्ज़ के बाद ही पढ़ना लाज़मी है

📕📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 51

📕📚दुर्रे मुख़्तार जिल्द 2 सफह 23

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 451


मस्अला:- अगर किसी ने इशा के फर्ज़ के पहले की 4 रकाअतें सुन्नते गैर मुअक्किदा न पढ़ीं हों और जमाअत के बाद पढ़ना चाहता है तो जमाअत के बाद की 2 रकाअत सुन्नते मुअक्किदा के बाद पढ़ सकता है इसमें कोई मुमानियत (मनाई ) नहीं है

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 617


मस्अला:- फर्ज़ के पहले की चार सुन्नते गैर मुअक्किदा शुरू की थी और जमाअत काइम (खड़ी )हो गई तो 2 रकाअत पढ़कर सलाम फेर दे,और जमाअत में शरीक हो जाए, सुन्नतों के एआ़दा की जरूरत नहीं यानि दूबारा पढ़ने की ज़रूरत नहीं

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 611

📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 128


मस्अला:- नमाजे़ इशा से पहले सोना (नींद करना) और इशा की नमाज़ के बाद दुनिया की बातें करना या दुनियावी किस्से कहानियां कहना सुनना मकरुह है हाँ ज़रूरी बातें, तिलावत ए क़ुरआन, ज़िक्र, दीनी मसाइल, सालेहीन के किस्से वाअज़ तक़रीर और नसीहत और महमान से बातचीत करने में हर्ज नहीं

📕📚दुर्रे मुख़्तार जिल्द 2 सफह 55

📕📚रद्दुल मुह़तार जिल्द 2 सफह 33

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 453


मस्अला:- इशा की नमाज़ में आखिरी 2 रकाअत नफ़्ल नमाज़, खड़े होकर पढ़ना अफ़ज़ल है,और दूना सवाब है,और बैठकर पढ़ने में भी कोई एतराज़ नहीं

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 661


वित्र की नमाज़ के मुतअ़ल्लिक़ ज़रुरी मसाइल

मस्अला:- नमाजे़ वित्र की तीन रकाअतें हैं और इस में का'द ए उला वाजिब है,का'द ए उला में सिर्फ अत्तहियात पढ़कर खड़ा हो जाना चाहिए,न दुरुद शरीफ़ पढ़े और न सलाम फेरे, और अगर का'द ए ऊला में नहीं बैठा और भूल कर खड़ा हो गया,तो लौटने की इजाज़त नहीं बल्कि आख़िर में सजद ए सहव् करें नमाज़ हो जायेगी,

📕📚दुर्रे मुख़्तार व रद्दुल मुह़तार जिल्द 2 सफह 532

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 4 सफह 654


मस्अला:- वित्र नमाज़ की तीनों रकाअतों में क़िराअत फर्ज़ है और हर रकाअत में सूर ए फातिहा के बाद सूरत मिलाना वाजिब है,

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 4 सफह 654


मस्अला:-  वित्र नमाज़ की तीसरी रकाअत में क़िराअत के बाद और रुकूअ़ से पहले कानों तक हाथ उठाकर "अल्लाहु अकबर" कहकर हाथ बांध लेना चाहिए और फिर दुआ ए कुनूत पढ़कर रुकूअ़ करना चाहिए

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 4 सफह 654


मस्अला:-  वित्र में दुआ ए कुनूत पढ़ना वाजिब है,अगर दुआ ए क़ुनूत पढ़ना भूल गया और रुकूअ़ में चला गया, तो अब रुकूअ़ से वापस न लौटे बल्कि नमाज़ पूरी करे और सजद ए सहव् करे

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 645

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 4 सफह 656


मस्अला:- दुआ ए कुनूत आहिस्ता पढ़नी चाहिए इमाम हो या मुक़तदी या मुन्फरिद हो (अकेले पढ़ने वाला)अदा पढ़ता हो या क़ज़ा पढ़ रहा हो, रमज़ान शरीफ़ में पढ रहा हो या और दिनों में, हर सूरत में दुआ ए कुनूत आहिस्ता पढ़ी जायेगी,

📕📚रद्दुल मुह़तार जिल्द 2 सफह 536

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 4 सफह 655


मस्अला:- जिसको दुआ ए कुनूत याद ना हो वोह एक मर्तबा "रब्बा-आतिना-फिद्-दुनिया-हसनतंव-व-फिल-आख़िरती-हसनतंव-व-क़िना अज़ाबन्नार" पढ़ ले या 3 मर्तबा "अल्ला हुम्मग़ फिर लना" कहे

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 4 सफह 656

📕📚मोमिन की नमाज़ सफह 139


मस्अला :- वित्र की कुनूत में मुक़तदी इमाम की मुताबेअत करे, अगर मुक़तदी दुआ ए कुनूत से फारिग़ ना हुआ था कि इमाम रुकूअ़ में चला गया तो मुक़तदी इमाम के साथ देते हुए रुकूअ़ करे

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 4 सफह 656

इशा की नमाज़ क़ज़ा हो गई तो

मस्अला:- इशा की नमाज़ क़ज़ा हो गई तो वित्र की भी क़ज़ा पढ़नी वाजिब है,अगरचे कितना ही ज़माना गुज़र गया हो,क़सदन क़ज़ा की हो या भूले से क़ज़ा हो गई हो, जब इशा की क़ज़ा पढ़े तब वित्र की भी क़ज़ा पढे़ और वित्र में दुआ ए कुनूत भी पढ़े,अलबत्ता क़ज़ा पढ़ने में तकबीरे कुनूत के लिए हाथ न उठाए जबकि लोगों के सामने पढ़ता हो,ताकि लोगों को पता न चले कि येह क़ज़ा पढ़ता है क्योंकि नमाज़ क़ज़ा करना गुनाह है, और गुनाह का इज़हार करना (ज़ाहिर करना) भी गुनाह है लिहाज़ा क़ज़ा पढ़ते वक़्त किसी पर ज़ाहिर न होने दें कि क़ज़ा पढ़ता है, और अगर घर में या तन्हाई में वित्र की क़ज़ा पढ़ता हो तो तकबीरे कुनूत के लिए हाथ उठाए

📕📚फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 111

📕📚रद्दुल मुह़तार जिल्द 2 सफह 533

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 624

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 4 सफह 658


मस्अला :- रमज़ान में इशा की फर्ज़ की जमाअत में जो शामिल नहीं हुआ वोह वित्र की जमाअत में शामिल नहीं हो सकता, जिसने फर्ज़ तन्हा पढ़ी हो वोह वित्र भी तनहा पढ़े

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 481


मस्अला:- जो शख्स़ जागने पर एतमाद (विशवास-यक़ीन) रखता हो उस के लिए आखिर शब (अंतिम रात्रि) में वित्र पढ़ना मुस्तहब है, वरना सोने से पहले पढ़ ले,फिर अगर पिछले पहर आंख खुली तो तहज्जुद पढ़े लेकिन वित्र को दूबारा पढ़ना जाइज़ नहीं

📕📚दुर्रे मुख़्तार व रद्दुल मुह़तार जिल्द 2 सफह 34

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 3 सफह 453


मस्अला :- वित्र के बाद 2 रकाअत नफ़्ल पढ़ना अफ़ज़ल है, उसकी पहली रकाअत में सूर ए ज़िलज़ाल "(इजा ज़ुलज़िलतिल) और दूसरी रकाअत में सूर ए काफ़िरून (क़ुल या अय्युहल काफिरुन) पढ़ना अफ़ज़ल है, ह़दीस में है कि अगर रात में बेदार न हुआ तो येह दो रकाअतें तहज्जुद के क़ाइम मुक़ाम हो जायेंगी

📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 4 सफह 658


मस्अला:-- इशा की नमाज़ के बाद बगैर ज़रुरत के दुनियावी बातों में मशगूल होना मकरुह है

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 1 सफह 197


मस्अला:- इशा की नमाज़ के फर्ज़ से पहले जो 4 रकाअत सुन्नते गैर मुअक्किदा है उन चारों रकाअत को एक सलाम से पढ़ना चाहिए, 2 रकाअत के बाद का'द ए उला में अत्तहियात के बाद दुरुद शरीफ़ भी पढ़ना चाहिए और तीसरी रकाअत के लिए जब खड़ा हो तो सना तअव्वुज़ (आउज़बिल्लाह)भी पढ़ें क्योंकि सुन्नते गैर मुअक्किदा मिस्ले नफ़्ल है और नफ़्ल नमाज़ का हर का'दा मिस्ले का'द ए आख़ीरा है, लिहाज़ा हर का'दा में अत्तहियात और दुरुद शरीफ़ पढ़ना चाहिए और हर रकाअत में सूर ए फातिहा के साथ सूरत भी पढ़ना चाहिए

📕📚फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 3 सफह 469


मस्अला:- अवाम (जनता ) में से बहुत से लोग वित्र नमाज़ के बाद सजदा में जाकर "सुब्बुहुन क़ुद्दुसुन रब्बुना व रब्बुल मलाइकती वर रुह"  पढ़ते हैं और इस अमल के मुतअ़ल्लिक़ येह गुमान करते हैं कि इस अमल की ह़दीस शरीफ़ में बहुत ही फ़ज़ीलत आई है और बुजुर्गाने दीन येह अमल हमेशा करते आये हैं ये ग़लत है, हक़ीक़त येह है कि येह फैल (काम ) फुक़हा के नज़दीक मकरुह है और इस अमल की फ़ज़ीलत में जो हदीस ज़िक्र की जाती है वोह ह़दीस मौज़ू मनघड़ंत बातिल और बेअस्ल है इस पर अमल जाइज़ नहीं,फ़िक़ह (इस्लामी क़ानून) की मशहूर किताब गुन्या, तातारख़ानिया दुर्रे मुख़्तार और तह़तावी वगैरह में इस को मकरुह लिखा है क्योंकि एक खारजी अंदेशा (अज्ञात भय) के सबब कि जाहिल लोग इसे सुन्नत या वाजिब न समझने लगे

📕📚फतावा अफ़्रीका मस्अला नं. 37 सफह 50



🌹والله تعالیٰ اعلم بالصواب🌹

 to be continued....                                                                                         हिस्सा-10

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