मसाइले ज़कात ज़कात किस पर फर्ज़ है, ? और कोनसे सामान पर फर्ज नही है ? क्या पाॅलिसी या F.D. की ज़कात निकालना जरूरी है? औरतो के पास जो जेवर होते है
मसाइले ज़कात
ज़कात किस पर फर्ज़ है, ? और कोनसे सामान पर फर्ज नही है ?
मसअला – जिसके पास 7.5 तोला सोना या 52.5 तोला चांदी या इसके बराबर की रकम पर साल गुज़र गई तो ज़कात फर्ज़ हो गई
📕 फतावा आलमगीरी,जिल्द 1,सफह 168
मसअला – हाजते असलिया यानि रहने का घर,पहनने के कपड़े,किताबें,सफर के लिए सवारियां,घरेलु सामान पर ज़कात फर्ज़ नहीं है
📕 फतावा आलमगीरी,जिल्द 1,सफह 160
एसी-फ्रिज-बाईक-फोर व्हीलर ये सब हाजते असलिया में दाखिल हैं मगर टी.वी हाजते असलिया में दाखिल नहीं है तो अगर किसी केपास 30111,रू की टीवी मौजूद है तो उस पर ज़कात फर्ज़ है और ये ज़कात टीवी पर नहीं निकलेगी बल्कि उस माल पर निकलेगी जो उसने एक गैर शरई चीज़ यानि टीवी पर खर्च कर रखी है,उसी तरह किसी के पास कई मकान हैं और वो सब उसके खुद के रहने के लिए है तो ज़कात नहीं लेकिन अगर किसी मकान में किरायेदार को बसा दिया और उसका किराया इतना है कि ये साहिबे निसाब को पहुंच जाये तो किराये पर ज़कात फर्ज़ होगी,उसी तरह दुकान पर तो ज़कात नहीं है मगर उसमे भरे हुये माल की ज़कात है माल से मुराद फक़त बेचने और खरीदने का सामान है उसके काम करने का सामान नहीं मस्लन उसके औज़ार मशीनें फर्नीचर पर्सनल इस्तेमाल का सामान नहीं,लिहाज़ा सब एहतियात से जोड़कर ज़कात अदा करी जाये
क्या पाॅलिसी या F.D. की ज़कात निकालना जरूरी है?
मसअला – पालिसी या F.D. अपने नाम है तो ज़कात फर्ज़ है लेकिन अपनी नाबालिग औलाद को देकर उनको मालिक बना दिया या उनके नाम से फिक्स किया तो ज़कात नहीं
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 11
ये मसअला भी खूब ज़हन में रखें रुपया या सोना चांदी अगर है तो उस पर ज़कात फर्ज़ है अगर चे किसी भी काम के लिए रखा हो मसलन हज के लिए रुपया रखा है या बेटी की शादी के लिए तो अगर निसाब से ज़्यादा है तो ज़कात देनी पड़ेगी,हां एक सूरत ये है कि अगर 5 लाख रुपया बेटी की शादी के लिए फिक्स किया तो अगर अपने नाम से करेगा तो ज़कात हर साल देनी होगी और अगर अपनी बेटी के नाम से फिक्स किया तो जब तक वो नाबालिग़ रहेगी उस पैसे पर ज़कात नहीं निकलेगी मगर जैसे ही वो बालिग़ होगी उस पैसे पर ज़कात फर्ज़ हो जायेगी अगर लड़की मालिक है तो लड़की पर ज़कात फर्ज़ हो गई
औरतो के पास जो जेवर होते है उन पर जकात का हुक्म?
मसअला – औरतों के पास जो ज़ेवर होते हैं उनकी मालिक औरत खुद होती है तो अगर सोना चांदी मिलाकर 52.5 तोला चांदी की कीमत, 30111, रु.बनती है तो औरत पर ज़कात फर्ज़ है,शौहर पर उसकी ज़कात नहीं शौहर चाहे तो दे और चाहे ना दे उस पर कुछ इलज़ाम नहीं,अगर शौहर अपनी बीवी के ज़ेवर की ज़कात नहीं देता तो औरत जितनी रकम ज़कात की बनती है उतने का ज़ेवर बेचकर अदा करे
📕 क्या आप जानते हैं,सफह 391
अनाज गल्ला और फलों पर जकात के अहकाम?
मसअला – सोने चांदी और रुपये पर ज़कात 2.5% यानि 100 रु में 2.5 रु है,मगर उश्र यानि अनाज गल्ला और फलों का तरीक़ा ये है कि अगर खेत को बारिश के पानी से सैराब किया तब 10वां हिस्सा यानि 10% उश्र निकालना होगा और अगर पानी को खरीदकर खेत सींचा है तो 20वां हिस्सा यानि 5% उश्र वाजिब है,युंही जानवरो की ज़कात में अलग अलग निसाब है
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 51
मसअला – 1.ऊँट 2.गाय-भैंस-बैल 3.बकरा-बकरी-दुम्बा इन पर ज़कात है और घोड़ा खच्चर वगैरह पर ज़कात नहीं,अगर इन जानवरों में से अपनी ज़रूरत के लिए यानि दूध या सवारी के लिए रख छोड़ा है तो ज़कात नहीं और अगर तिजारत करता है तब जानवरो पर नहीं बल्कि उस कीमत पर ज़कात है जिस कीमत पर खरीदा है,और अगर डेयरी या पोल्ट्री फॉर्म के लिए जानवरों को पाला कि उससे दूध का कारोबार किया जाए तब जानवर और उनकी खरीदी हुई कीमत किसी पर ज़कात नहीं बल्कि उससे जो कमाई होती है खर्च निकालने के बाद उस पैसे पर ज़कात देनी होगी,अब निसाब समझ लीजिये
ऊँट- 5 से कम हो तो ज़कात नहीं 5-9 में 1 बकरी,10-14 में 2 बकरी,15-19 में 3 बकरी,20-24 में 4 बकरी,फिर 25-35 ऊँट हुए तो 1 साल का ऊँट का बच्चा,36-45 तक में 2 साल का ऊँट का बच्चा,46-60 तक में 3 साल की ऊँटनी,61-75 तक में 4 साल की ऊँटनी,76-90 तक में 2 साल का 2 ऊँट का बच्चा,91-120 तक में 3 साल की 2 ऊँटनी,145 तक में 3 साल की ऊंटनी के साथ हर 5 पर 1 बकरी का बच्चा बढाते जाएँगी मसलन 125 में 3 साल की 2 ऊँटनी और 1 बकरी-130 में 3 साल की 2 ऊँटनी और 2 बकरी,फिर उसके बाद वैसे ही जैसे ऊपर गुज़रा
गाय- 29 तक ज़कात नहीं,30-39 तक में 1 साल का बछड़ा,40-59 तक में 2 साल का बछड़ा,फिर 60 में 1 साल का 2 बछड़ा,70 में 2 साल का 1 और 1 साल का 1 बछड़ा,80 में 2 साल का 2 बछड़ा,फिर इसी तरह करते जायेंबकरी- 39 तक ज़कात नहीं,40-120 तक में 1 बकरी,फिर 200 तक में 2 बकरी,फिर हर 100 में 1 बकरी
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 26-30
तफ्सीली मअलूमात के लिए बहारे शरीयत का मुताआला करें- ऊँट- 5 से कम हो तो ज़कात नहीं 5-9 में 1 बकरी,10-14 में 2 बकरी,15-19 में 3 बकरी,20-24 में 4 बकरी,फिर 25-35 ऊँट हुए तो 1 साल का ऊँट का बच्चा,36-45 तक में 2 साल का ऊँट का बच्चा,46-60 तक में 3 साल की ऊँटनी,61-75 तक में 4 साल की ऊँटनी,76-90 तक में 2 साल का 2 ऊँट का बच्चा,91-120 तक में 3 साल की 2 ऊँटनी,145 तक में 3 साल की ऊंटनी के साथ हर 5 पर 1 बकरी का बच्चा बढाते जाएँगी मसलन 125 में 3 साल की 2 ऊँटनी और 1 बकरी-130 में 3 साल की 2 ऊँटनी और 2 बकरी,फिर उसके बाद वैसे ही जैसे ऊपर गुज़रा-
गाय- 29 तक ज़कात नहीं,30-39 तक में 1 साल का बछड़ा,40-59 तक में 2 साल का बछड़ा,फिर 60 में 1 साल का 2 बछड़ा,70 में 2 साल का 1 और 1 साल का 1 बछड़ा,80 में 2 साल का 2 बछड़ा,फिर इसी तरह करते जायें
बकरी- 39 तक ज़कात नहीं,40-120 तक में 1 बकरी,फिर 200 तक में 2 बकरी,फिर हर 100 में 1 बकरी
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 26-30
कर्जदार पर ज़कात
मसअला – किसी पर 1 लाख रुपए क़र्ज़ हैं उसको कहीं से 1 लाख रुपये मिल गए अगर वो अपना क़र्ज़ नहीं चुकाता तो बुरा करता है मगर अब भी उस पर ज़कात फर्ज़ नहीं है
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 15
ज़कात किसको दें और किसको नहीं मगर सबसे पहले ये मसअला ज़हन में रखें कि ज़कात में तम्लीक शर्त है मतलब ये कि जिसको ज़कात या फ़ित्रे का रुपया कपड़ा या खाना दिया जा रहा है उसे मालिक बना दिया जाये और अगर युंही ज़कात के पैसो से किसी गरीब को खाना खिलाया या ऐसे नाबालिग को दिया जो माल पर क़ब्ज़ा भी ना कर सकता हो या जानवरों-परिंदों के लिए दाना पानी का इंतेज़ाम किया तो हरगिज़ ज़कात अदा ना होगी,हाँ ज़कात के पैसे का खाना देते वक़्त ये कहा कि चाहे खाओ और चाहे ले जाओ तो अब उसको मालिक बना दिया लिहाज़ा ज़कात अदा हो जायेगी
मसअला – सगे भाई-बहन,चाचा,मामू,खाला,फूफी,सास-ससुर,बहु-दामाद या सौतेले माँ-बाप को ज़क़ात की रक़म दी जा सकती है
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 60-64
मसअला – ज़कात,फित्रा या कफ्फारह का रुपया अपने असली मां-बाप,दादा-दादी,नाना-नानी,बेटा-बेटी,पोता-पोती,नवासा-नवासी को नहीं दे सकते
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 60
मसअला – कफन दफन में तामीरे मस्जिद में मिलादे पाक की महफिल में ज़कात का रुपया खर्च नहीं कर सकते किया तो ज़कात अदा नहीं होगी
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 24
मसअला – अफज़ल है कि ज़कात पहले अपने अज़ीज़ हाजतमंदों को दें दिल में नियत ज़कात हो और उन्हें तोहफा या क़र्ज़ कहकर भी देंगे तो ज़कात अदा हो जायेगी
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 24
मसअला – अफज़ल है कि ज़कात व फितरे की रक़म जिसको भी दें तो कम से कम इतना दें कि उसे उस दिन किसी और से सवाल की हाजत ना पड़े
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 66
मसअला – हदीस में है कि रब तआला उसके सदक़े को क़ुबूल नहीं करता जिसके रिश्तेदार मोहताज हो और वो दूसरों पर खर्च करे
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 65
मसअला – तंदरुस्त कमाने वाले शख्स को अगर वो साहिबे निसाब ना हो तो उसे ज़कात दे सकते हैं पर उसे खुद मांगना जायज़ नहीं
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 61
मसअला – जिसके पास खुद का मकान,दुकान,खेत या खाने का गल्ला साल भर के लिए मौजूद हो मगर वो साहिबे निसाब ना हो तो उसे ज़कात व फित्रा दे सकते हैं
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 62
मसअला – काफिर व बदमज़हब को ज़कात-फित्रा-हदिया-तोहफा कुछ भी देना नाजायज़ है अगर उनको ज़क़ात व फितरे की रकम दी तो अदा ना होगी
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 63-65
सुन्नी मदारिस को ज़कात व फित्रा देना कैसा?
सुन्नी मदारिस को ज़कात व फित्रा दे सकते हैं मगर वहाबी देवबंदी क़ादियानी खारजी शिया अहले हदीस जमाते इस्लामी वाले व इन बदअक़ीदों के मदारिस को ज़कात व फित्रा नहीं दे सकते अगर देंगे तो अदा नहीं होगी-
मसअला – बाप अपनी बालिग़ औलाद की तरफ से या शौहर बीवी की तरफ से ज़कात या सदक़ये फित्र देना चाहे तो बगैर उनकी इजाज़त के नहीं दे सकता
📕 फतावा अफज़लुल मदारिस,सफह 88
मसअला – ज़कात व फित्रा बनी हाशिम यानि कि सय्यदों को नहीं दे सकते
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 63
ज़कात
कंज़ुल ईमान – कुछ अस्ल नेकी ये नहीं कि (नमाज़ में ) मुंह मशरिक या मग़रिब की तरफ करो हाँ अस्ल नेकी ये है कि ईमान लाये अल्लाह और क़यामत और फरिश्तों और किताब और पैगम्बरों पर,और अल्लाह की मुहब्बत में अपना अज़ीज़ माल दें रिश्तेदारो और यतीमों और मिस्कीनों और राह गीर और साईलों को और गर्दने छुड़ाने में,और नमाज़ क़ायम रखे और ज़कात दे और अपना कौल पूरा करने वाले जब अहद करें और सब्र वाले मुसीबत और सख्ती में,और जिहाद के वक़्त यही है जिन्होंने अपनी बात सच्ची की,और यही परहेज़गार हैं
📕 पारा 2,सूरह बक़र,आयत 177
वैसे तो क़ुर्आन में तक़रीबन 150 मर्तबा सदक़े की ताकीद आई है जिसमे 70 से ज़्यादा बार नमाज़ के साथ ज़कात का हुक्म दिया गया है मगर ये आयत पेश करने का एक दूसरा मक़सद था,मक़सद ये था कि बाज़ लोग मुसलमानों को ये समझाने की कोशिश करते हैं कि “जिसने नमाज़ पढ़ी रोज़ा रखा हज किया ज़कात दी यानि बज़ाहिर मुसलमान हैं उसको काफ़िर किस तरह कहा जा सकता है क्योंकि हदीसे पाक में आता है कि जो हमारी नमाज़ पढ़े हमारे क़िब्ले को मुंह करे हमारा ज़बीहा खाये वो मुसलमान है” तो इस बात का रद्द तो अल्लाह ने क़ुर्आन में ही साफ साफ फरमा दिया है कि सिर्फ अपना मुंह मशरिक या मग़रिब की तरफ कर लेने से कोई मुसलमान नहीं हो जाता बल्कि मुसलमान होने के लिए अल्लाह और उसके नबियों उसकी किताबों उसके फरिश्तों और क़यामत पर ईमान लाना होगा वरना लाखों क्या करोड़ों बरस नमाज़ पढ़े अगर उसके महबूबो से बुग्ज़ो हसद रखेगा तो मलऊन बनाकर हमेशा के लिए जहन्नम में डाल दिया जायेगा इसे समझने के लिए इब्लीस की मिसाल काफी है,खैर अपने मौज़ू पर आते हैं जिस तरह ज़कात के बारे में काफी आयतें नाज़िल हुई उसी तरह बेशुमार हदीसों में भी इसका तज़किरा मिलता है चन्द का ज़िक्र करता हूं
हदीस – हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि जो लोग अपने माल की ज़कात नहीं अदा करेंगे तो क़यामत के दिन उनका माल गंजे सांप की शक्ल में उनके गले में पड़ा होगा और वो अपने जबड़ों से उसके मुंह को पकड़े होगा और कहेगा कि मैं तेरा माल हूं
📕 बुखारी,जिल्द 1,सफह 188
हदीस – हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जो सोने और चांदी का मालिक हुआ और उसने उसका हक़ अदा ना किया यानि ज़कात ना दी तो क़यामत के दिन आग के बने हुए पतरों से उसकी पेशानी और पहलु और पीठ को दागा जायेगा,और जिन्होंने अपने जानवरों की ज़कात ना दी तो क़यामत के दिन उसके ऊपर से तमाम जानवरों को गुज़ारा जायेगा जिससे कि वो रौंदा जायेगा
📕 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 318
हदीस – जिस पर हज फर्ज़ हुआ और हज ना किया और ज़कात फर्ज़ हुई और ज़कात ना दी तो मौत के वक़्त वो वापसी का सवाल करेगा (यानि जिस तरह काफ़िर पर अज़ाब मुसल्लत किया जायेगा और वो तौबा करने के लिए वापस दुनिया में आने की ख्वाहिश करेगा मआज़ अल्लाह ऐसा ही कुछ उस बदकार मुसलमान के साथ भी होगा कि जिससे वो वापस आकर अपना हक़ अदा करने की दुआ करेगा,मगर ऐसा होगा नहीं)
📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 165
हदीस – हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम फरमाते हैं कि मुसलमान को जो भी माल का नुक्सान होता है वो ज़कात ना देने के सबब से होता है
📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 7
फुक़्हा – शैतान हर तरह से इंसान को फरेब देने में लगा रहता है मगर जब कोई बंदा उसके फरेब में नहीं आता तो उसके माल से लिपट जाता है और उसको सदक़ा व खैरात करने से रोक देता है
📕 तिलबीसे इब्लीस,सफह 455
फुक़्हा – ताबईन रज़ियल्लाहु तआला अन्हुम की एक जमाअत किसी फौत शुदा के घर उसकी ताज़ियत को गई वहां मरने वाले का भाई आहो बका व चीख पुकार कर रहा था,इस पर तमाम हज़रात ने उसे सब्र करने की तालीम दी इस पर वो बोला कि मैं कैसे सब्र करूं जबकि मैं खुद अपने भाई पर अज़ाब होते देखकर आ रहा हूं,वाक़िया कुछ युं है कि जब सब उसे दफ्न करके चले गए तो मैं वहीं बैठा रहा अचानक अपने भाई के चिल्लाने की आवाज सुनी वो चिल्ला रहा था कि सब मुझे छोड़कर चले गए मैं यहां अज़ाब में हूं मेरे रोज़े मेरी नमाज़ें सब कहां गई,इस पर मुझसे बर्दाश्त ना हुआ मैंने कब्र खोदा तो देखता क्या हूं कि उसकी क़ब्र में आग भड़क रही है और उसके गले में आग का तौक़ पड़ा है मैंने सोचा कि वो तौक़ निकाल दूं तो देखो कि खुद मेरा हाथ जलकर सियाह हो गया अब बताइये मैं कैसे सब्र करूं,जब उससे पूछा गया कि तुम्हारे भाई पर ये अज़ाब क्यों आया तो वो कहने लगा कि वो नमाज़ रोज़े और दीगर इबादतें तो खूब करता था मगर ज़कात नहीं देता था,जब ये खबर सहाबिये रसूल हज़रत अबूज़र रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को मिली तो आपने फरमाया कि ये अल्लाह तआला ने तुमको इबरत हासिल करने के लिए दिखाया है वरना काफिरो मुशरिक पर तो अज़ाब दायमी है
📕 मुकाशिफातुल क़ुलूब,सफह 164
फुक़्हा – जो क़ौम ज़कात अदा नहीं करती तो मौला तआला उन पर से बारिश को रोक देता है (यानि सूखा अकाल पड़ जाता है)
📕 किताबुल कबायेर,सफह 59
लिहाज़ा मुसलमानों अपने माल की ज़कात पूरी पूरी ईमानदारी से अदा करें वरना अज़ाब के लिए तैयार रहें
✦ ज़कात क्या है ?
अल्लाह के लिये माल का एक हिस्सा जो शरियत ने तय किया उसका मुसलमान फकीर (जरूरतमंद) को मालिक बना देना शरीयत में ज़कात कहलाता है’
✦ ज़कात किसको दी जाये ?
ज़कात निकालने के बाद सबसे बडा जो मसला आता है वो है कि ज़कात किसको दी जाये ?
ज़कात देते वक्त इस चीज़ का ख्याल रखें की ज़कात उसको ही मिलनी चाहिये जिसको उसकी सबसे ज़्यादा ज़रुरत हो…वो शख्स जिसकी आमदनी कम हो और उसका खर्चा ज़्यादा हो। अल्लाह ने इसके लिये कुछ पैमाने और औहदे तय किये है जिसके हिसाब से आपको अपनी ज़कात देनी चाहिये। इनके अलावा और जगहें भी बतायी गयी है जहां आप ज़कात के पैसे का इस्तेमाल कर सकते हैं।
1. सबसे पहले ज़कात का हकदार कौन है?
“फ़कीर“:- फ़कीर कौन है? – फ़कीर वो शख्स है मानो जिसकी आमदनी 10,000/- रुपये सालाना है और उसका खर्च 21,000/- रुपये सालाना है यानि वो शख्स जिसकी आमदनी अपने कुल खर्च से आधी से भी कम है तो इस शख्स की आप ज़कात 11,000/- रुपये से मदद कर सकते है।
2. दुसरा नंबर पर ज़कात का हकदार कौन है?
“मिस्कीन” का: “मिस्कीन” कौन है? मिस्कीन वो शख्स है जो फ़कीर से थोडा अमीर है। ये वो शख्स है मानो जिसकी आमदनी 10,000/- रुपये सालाना है और उसका खर्च 15,000/- सालाना है यानि वो शख्स जिसकी आमदनी अपने कुल खर्च से आधी से ज़्यादा है तो आप इस शख्स की आप ज़कात के 5,000/- रुपये से उसकी मदद कर सकते है।
3. तीसरा नंबर पर ज़कात का हकदार कौन है?
“तारिके कल्ब” का: “तारिके कल्ब” कौन है? “तारिके कल्ब” उन लोगों को कहते है जो ज़कात की वसुली करते है और उसको बांटते है। ये लोग आमतौर पर उन देशों में होते है जहां इस्लामिक हुकुमत या कानुन लागु होता है। हिन्दुस्तानं में भी ऐसे तारिके कल्ब है जो मदरसों और स्कु्लों वगैरह के लिये ज़कात इकट्ठा करते है। इन लोगो की तनख्खाह ज़कात के जमा किये गये पैसे से दी जा सकती है।
4. चौथे नंबर पर ज़कात का हकदार कौन है?
“गर्दन को छुडानें में“: पहले के वक्त में गुलाम और बांदिया रखी जाती थी जो बहुत बडा गुनाह था। अल्लाह की नज़र में हर इंसान का दर्ज़ा बराबर है इसलिये मुसलमानों को हुक्म दिया गया की अपनी ज़कात का इस्तेमाल ऎसे गुलामो छुडाने में करो। उनको खरीदों और उनको आज़ाद कर दों। आज के दौर में गुलाम तो नही होते लेकिन आप लोग अब भी इस काम को अंजाम दे सकते है।
अगर कोई मुसलमान पर किसी ऐसे इंसान का कर्ज़ है जो जिस्मानी और दिमागी तौर पर काफ़ी परेशान करता है, या जेलों में जो बेकसूर और मासूम मुसलमान बाज़ शर्रपसंदों के फितनो के सबब फंसे हुए है आप ऐसे मुसलमानो की भी ज़कात के पैसे से मदद कर सकते है और उनकी गर्दन को उनपर होने वाले जुल्मो से छुडा सकते हैं।
5. पांचवा नंबर पर ज़कात का हकदार कौन है?
“कर्ज़दारों” का: आप अपनी ज़कात का इस्तेमाल मुसलमानों के कर्ज़ चुकाने में भी कर सकते है। जैसे कोई मुसलमान कर्ज़दार है वो उस कर्ज़ को चुकाने की हालत में नही है तो आप उसको कर्ज़ चुकाने के लिये ज़कात का पैसा दे सकते है और अगर आपको लगता है की ये इंसान आपसे पैसा लेने के बाद अपना कर्ज़ नही चुकायेगा बल्कि उस पैसे को अपने ऊपर इस्तेमाल कर लेगा तो आप उस इंसान के पास जायें जिससे उसने कर्ज़ लिया है और खुद अपने हाथ से कर्ज़ की रकम की अदायगी करें।
6. छ्ठां नंबर पर ज़कात का हकदार कौन है?
“अल्लाह की राह में“: “अल्लाह की राह” का नाम आते ही लोग उसे “जिहाद” से जोड लेते है। यहां अल्लाह की राह से मुराद (मतलब) सिर्फ़ जिहाद से नही है। अल्लाह की राह में “जिहाद” के अलावा भी बहुत सी चीज़ें है जैसे : बहुत-सी ऐसी जगहें है जहां के मुसलमान शिर्क और बिदआत में मसरुफ़ है और कुरआन, हदीस के इल्म से दुर है तो ऐसी जगह आप अपनी ज़कात का इस्तेमाल कर सकते है।
अगर आप किसी ऐसे बच्चे को जानते है जो पढना चाहता है लेकिन पैसे की कमी की वजह से नही पढ सकता, और आपको लगता है की ये बच्चा सोसाईटी और मुआशरे के लिये फ़ायदेमंद साबित होगा तो आप उस बच्चे की पढाई और परवरिश ज़कात के पैसे से कर सकते है।
7. और आखिर में ज़कात का हकदार कौन है?
“मुसाफ़िर की मदद“: मान लीजिये आपके पास काफ़ी पैसा है और आप कहीं सफ़र पर जाते है लेकिन अपने शहर से बाहर जाने के बाद आपकी जेब कट जाती है और आपके पास इतने पैसे भी नही हों के आप अपने घर लौट सकें तो एक मुसलमान का फ़र्ज़ बनता है की वो आपकी मदद अपने ज़कात के पैसे से करे और अपने घर तक आने का किराया वगैरह दें।
ये सारे वो जाइज़ तरीके है जिस तरह से आप अपनी ज़कात का इस्तेमाल कर सकते है। अल्लाह आप सभी को अपनी कमाई से ज़कात निकालकर उसको पाक करने की तौफ़ीक दें ! और अल्लाह तआला हम सबको कुरआन और हदीस को पढकर, सुनकर, उसको समझने की और उस पर अमल करने की तौफ़िक अता फ़रमाये।.....आमीन
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आसमानी किताबें (Aasmani Kitabe)
abdul qadir jilani सय्यिद अब्दुल क़ादिर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हिस्सा-01
- रमज़ान मुबारक
- नमाज़ के फर्ज़ों का बयान
- तकबीरे इन्तिक़ाल
- किसकी नमाज शुरू ही न हुई ?
- किसकी नमाज न हुई?
- गुंगा या जबान बंद हो, ऐसे व्यक्ति की तकबीरे तहरिमा कैसे होगी?
- तकबीरे तहरिमा की फजीलत कब मिलेगी?
- तकबीरे तहरिमा के लिए क्या कहना वाजिब है?
- तकबीरे तहरिमा में क्या करना सुन्नत है ?
- अगर इमाम तकबीरे इन्तिक़ाल यानि अल्लाहु अकबर बुलंद आवाज़ से कहना भूल गया
- जिसका आदमी का एक ही हाथ हो, वह तकबीरे तहरिमा कैैैसे करे ?
- मुकतदी और अकेले नमाज पढनेे वाला अल्लाह अकबर की आवाज ?
- दिन व रात में कुल कितनी नमाज है?
- फजर का वक़्त
- ज़ुहर का वक़्त
- असर का वक़्त
- मग़रिब का वक़्त
- इशा का वक़्त
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